लुम्बिनी फेस्टिवल सिर्फ सांस्कृतिक आयोजन भर नहीं है। यह बौद्ध विचारों और विरासत का एक जीवंत मंच है। जहां संवाद और आध्यात्मिकता को प्रश्रय दिया जाता है। यह फेस्टिवल बुद्ध के मूल संदेश यानी शांति, करुणा, धैर्य और समानता आज भी समाज को दिशा देने की शक्ति रखते हैं।
भारत और नेपाल की साझा सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल अध्याय है लुम्बिनी फेस्टिवल। नेपाल स्थित लुम्बिनी में ही भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसलिए ऐतिहासिक और आध्यात्मिक विरासत को जीवंत करने वाला महत्वपूर्ण लुम्बिनी फेस्टिवल हर वर्ष भारत के हैदराबाद शहर में मनाया जाता है। यह फेस्टिवल इस साल 13 से 15 दिसंबर तक है। यह फेस्टिवल मूलरूप से बौद्ध परंपरा, दक्षिण भारतीय संस्कृति, शांति, सहिष्णुता और कला का अनूठा संगम होता है। यह सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि इसमें बुद्ध के विचार, करुणा, समानता, मध्यम मार्ग और शांति को आधुनिक समाज तक पहुंचाने का माध्यम भी है।
लुम्बिनी फेस्टिवल आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग और बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव है। इसका उद्देश्य भगवान बुद्ध के जन्मस्थल लुम्बिनी की ऐतिहासिक स्मृतियों को जीवित रखना और भारत-नेपाल के आध्यात्मिक संबंधों को सशक्त करना है। यह उत्सव हर साल दिसंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में हैदराबाद के नागार्जुन कुंड और आसपास के बौद्ध विरासत स्थलों पर मनाया जाता है। भगवान बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था, लेकिन उन्होंने ज्ञान भारत में प्राप्त किया और यहीं धर्मचक्र परिवर्तन व महापरिनिर्वाण हासिल किया। इस उत्सव के माध्यम से शांति, करुणा और बौद्ध दर्शन का संदेश फैलाने का प्रयास किया जाता है।
लुम्बिनी फेस्टिवल आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के राज्य सांस्कृतिक पर्यटन को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करता है तथा शांति, अहिंसा और करुणा का प्रसार करता है। यह उत्सव बौद्ध मूल्यों के प्रति समाज को जागरूक करने का महोत्सव है। उत्सव की शुरुआत दीप प्रज्वलन और बौद्ध भिक्षुकों के पारंपरिक शांति-चक्र उद्घोष से होती है। सबसे पहले बौद्ध भिक्षुओं द्वारा प्रार्थना और प्रवचन का कार्यक्रम सम्पन्न होता है, जिसमें धम्म प्रवचन, सुत्त पाठ और ध्यान सत्र जैसे कार्यक्रम आध्यात्मिक अनुभव को गहन बनाते हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा बौद्ध देशों की लोक प्रस्तुतियां मंचित होती हैं, जिसमें दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य, नेपाल-भूटान की पारंपरिक नृत्य शैलियां, बुद्ध की जीवनकथाओं पर आधारित नाट्य मंचन और बौद्ध गीतों तथा भजनों का सामूहिक गायन प्रस्तुत किया जाता है। इस फेस्टिवल का एक और महत्वपूर्ण कार्यक्रम नागार्जुन कुंड, अमरावती स्तूप और संग्रहालय के विशेष टूर आयोजित करना भी है। पुरातत्वविद और शोधकर्ता आगंतुकों को धरोहर की ऐतिहासिकता पर व्याख्या देते हैं। साथ ही इन तीन दिनों के उत्सव में आंध्र प्रदेश का पारंपरिक हस्तशिल्प, मिट्टी की कलाकृतियां, बौद्ध प्रतीक, हथकरघा उत्पाद आदि सभी का प्रदर्शन होता है।
फूड स्टॉल पर विशेष रूप से दक्षिण भारतीय और नेपाली व्यंजनों को परोसा जाता है, जो फेस्टिवल में आने वाले आगंतुकों को एक नई सांस्कृतिक अनुभूति देता है। इस दौरान यहां अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सेमिनार आयोजित किए जाते हैं, जिनके विशेष सत्रों में मध्यम मार्ग, वैश्विक शांति, पर्यावरणीय संतुलन और बौद्ध कला पर विद्वानों का विमर्श होता है। आंध्र प्रदेश कभी महायान बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन की कर्मभूमि रहा है। यह फेस्टिवल युवा पीढ़ी को बताता है कि आंध्र और तेलंगाना की भूमि कभी बौद्ध ज्ञान का केंद्र थी, जिसका आज भी संरक्षण किया जाता है। बहुभाषी और बहुराष्ट्रीय प्रस्तुतियां इस फेस्टिवल की सांस्कृतिक विविधता को उत्कृष्ट ढंग से प्रस्तुत करती हैं। ध्यान, योग और शांति यात्राएं जो कि बौद्ध स्थलों के भ्रमण हेतु की जाती हैं, इस फेस्टिवल को विशेष रूप प्रदान करती हैं। बुद्ध का विचार ‘अपदीपो भव’ यानी ‘स्वयं दीपक बनो’, आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना बौद्धकाल में था। इ.रि.सें.

