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नागा संस्कृति के साझे रूप का उत्सव

हॉर्नबिल महोत्सव
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हॉर्नबिल महोत्सव नागालैंड की सांस्कृतिक विविधता का अद्भुत उत्सव है, जो हर साल 1-10 दिसंबर को कोहिमा के पास किसामा हेरिटेज विलेज में आयोजित होता है। इस महोत्सव में नागा जनजातियों के पारंपरिक गीत, नृत्य, कला, शिल्प, भोजन, और आधुनिक कार्यक्रम जैसे रॉक कंसर्ट और बाइक रैली का प्रदर्शन होता है।

भारत की उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों में बसे नागालैंड की पहचान, जितनी उसकी पहाड़ी सुंदरता से बनती है, उससे कहीं ज्यादा यह उसकी जनजातीय संस्कृति से निर्मित होती है। नागालैंड में 17 से अधिक प्रमुख जनजातियां हैं, इन सबकी अपनी अलग-अलग भाषाएं, परंपराएं, पोशाकें, मिथक, नृत्य-गीत और जीवनशैली है। नागालैंड की इन विभिन्न जातियों को अक्सर उनकी भौगोलिक दूरियों और ऐतिहासिक कारणों से एक-दूसरे से पृथक माना गया है। लेकिन साल 2000 से शुरू हुए एक उत्सव ने इन सभी जनजातियों को इंद्रधनुषी धागे में पिरोकर एक कर दिया है और यह उत्सव है- हाॅर्नबिल महोत्सव। आज इसे पूरी दुनिया ‘फेस्टिवल आॅफ फेस्टिवल्स’ के नाम से जानती है। इस महोत्सव के कारण नागालैंड की सारी जनजातियां 1 से 10 दिसंबर तक जब यह सालाना महोत्सव सम्पन्न होता है, तब इंद्रधनुषी धागे में गुंथकर एक हो जाती हैं और फिर अपनी साझी सतरंगी आभा बिखेरती हैं।

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लोकस्मृति का महोत्सव

वास्तव में हाॅर्नबिल महोत्सव नागालैंड की जनजातीय लोकस्मृति का आख्यान है। पिछली सदी के आखिरी दशक में नागालैंड में सरकार के स्तर पर यह महसूस किया गया कि यहां अलग-अलग जनजातियों के कारण पारंपरिक धरोहरें तेजी से आधुनिकता के दबाव में गायब होती जा रही हैं। इसलिए तत्कालीन सरकार ने नागालैंड की सभी जनजातियों के युवाओं के बीच एक साझे महोत्सव की कल्पना की, ताकि इनके बीच अपनी अपनी जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान और रीति-रिवाजों को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए हाॅर्नबिल जैसे एक फेस्टिवल की परिकल्पना की। यह सोच इतनी सही और संवेदनशील साबित हुई कि महज एक दशक में ही हाॅर्नबिल महोत्सव ने न केवल समूचे नाॅर्थ ईस्ट को बल्कि पूरे भारत को अपने सांस्कृतिक चुंबकत्व से दीवाना बना दिया। हाॅर्नबिल महोत्सव नाम भारत के एक पक्षी पर रखा गया है, जो नागालैंड में खासतौर पर लोककथाओं और प्रतीकात्मकता का प्रधान हिस्सा है।

विविधता का जीवंत प्रदर्शन

हाॅर्नबिल महोत्सव हर साल दिसंबर में नागालैंड की राजधानी कोहिमा के पास स्थित किसामा हेरिटेज विलेज में आयोजित होता है। इस उत्सव में जनजातीय संस्कृति का भव्य प्रदर्शन होता है। इस जीवंत सांस्कृतिक दर्शन से रूबरू होने को अब पूरे नॉर्थ–ईस्ट, समूचे भारत और विदेशों से भी लोग आते हैं। यह उत्सव नागाआें की सामुदायिक संरचना को व्यापक बनाता है। इस उत्सव में गाये जाने वाले परंपरागत युद्ध गीत और नृत्य, लकड़ी की नक्काशी व रंगीन आभूषणों की प्रदर्शनी सबका मन मोह लेती है। इस सांस्कृतिक उत्सव हाॅर्नबिल में पारंपरिक व्यंजनों का अलग ही आकर्षण रहता है।

इस उत्सव के दौरान हेरिटेज विलेज किसामा समूचे नागालैंड का सांस्कृतिक उत्सव बनकर सामने आता है। प्रत्येक जनजाति का सामुदायिक घर, इस हेरिटेज विलेज में अपने पारंपरिक रूप में तैयार किया जाता है। जहां इस दौरान आग जलती है, लोग इसके इर्दगिर्द बैठकर कहानियां सुनाते हैं और देश-विदेश से आये पर्यटक नागालैंड की जनजातियों की अनकही बारीकियां देखते, समझते हैं।

एकता की डोर

हाॅर्नबिल महोत्सव ने नागालैंड की सभी जनजातियों को एक साझे पुल के जरिये जोड़ दिया है। पहले तो अलग-अलग जनजातियां एक-दूसरे के अस्तित्व को नहीं स्वीकारती थीं। इस महोत्सव के शुरू होने के बाद अब उन सभी जनजातियों मंे पूरे साल ये होड़ रहती है कि हाॅर्नबिल महोत्सव में कौन-सी जनजाति अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुति से सबका मन मोह लेगी। इस प्रतिस्पर्धा के कारण नागालैंड की जनजातीय संस्कृति जो 2000 के पहले डूबने के कगार पर थी, अब पूरे नागालैंड में सभी समुदायों की अपनी अपनी संस्कृति विकास के चरम पर है।

परंपरा और आधुनिकता

हाॅर्नबिल केवल अपने अतीत का वैभव प्रस्तुत करने के अलावा युवा राॅक कंसर्ट, बाइक रैली, एडवेंचर स्पोर्ट्स, फैशन शो, फोटोग्राफी एक्सपोर्ट और फूड फेस्ट का बढ़-चढ़कर प्रदर्शन करते हैं। यह महोत्सव आधुनिकता के साथ-साथ अपनी परंपराओं का उत्सव मनाता है और अपनी परंपराओं को आधुनिकता का पूरक बनाता है। इस महोत्सव के शुरू होने के बाद जिस तरह से नागालैंड में जनजातियों के बीच भाईचारा, एकता और अपने को श्रेष्ठ साबित करने की आंतरिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है, इसके कारण इस सांस्कृतिक महोत्सव ने नागालैंड को सांस्कृतिक रूप से पुनर्जीवित किया है।

आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण

नागालैंड का बड़ा हिस्सा आज भी ग्रामीण और हस्तशिल्प आधारित अर्थव्यवस्था पर चलता है। हाॅर्नबिल महोत्सव यहां के स्थानीय कारीगरों, बुनकरों, किसानों और पकवान बनाने वालों तथा लकड़ी के शिल्पकारों के लिए जितनी साझी खुशियां लाता है, उससे कहीं ज्यादा साझा कारोबार लाता है। इससे स्थानीय होटलों, ट्रांसपोर्ट और होम स्टे की कमाई कई गुना हो जाती है।

कैसे पहुंचे

निकटतम एयरपोर्ट दीमापुर है, जो यहां से 70 किलोमीटर दूर है। टैक्सी/बस—दीमापुर से कोहिमा और यहां से किसामा तक टैक्सी की नियमित सेवा है।

मुख्य आकर्षण

जनजातीय गीत, परंपरागत युद्ध-नृत्य, नागा फूड फेस्टिवल, राॅक कंसर्ट और नाइट कार्निवल, हस्तकला बाजार, फोटोग्राफी और फिल्म फेस्टिवल और हाल के सालों में जुड़ा बाइक रैली व एडवेंचर। इ.रि.सें.

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