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माता-पिता की सहभागिता से ही होगी बेहतर परवरिश

परंपरागत सोच है कि बच्चों की देखभाल घर पर रहकर मां करेंगी और बाहर जाकर कमाई पिता करेंगे। लेकिन बदले सामाजिक व कामकाजी हालात में पिता की पैरेंटिंग में भागीदारी बढ़ी है। अब घर पर रहकर फुलटाइम बेबी की देखरेख...
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परंपरागत सोच है कि बच्चों की देखभाल घर पर रहकर मां करेंगी और बाहर जाकर कमाई पिता करेंगे। लेकिन बदले सामाजिक व कामकाजी हालात में पिता की पैरेंटिंग में भागीदारी बढ़ी है। अब घर पर रहकर फुलटाइम बेबी की देखरेख व बच्चे को स्कूल लाने-ले जाने वाले पिता भी मौजूद हैं। ऑनलाइन रिमोट जॉब व मांओं के कामकाजी होने के चलते जिम्मेवारी बदली है। यूं भी बच्चे उस समय ज्यादा अच्छी परवरिश पाते हैं जब दोनों पैरेंट्स उनकी देखभाल और जरूरतें पूरी करते हैं।

नीलम अरोड़ा

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तीन बच्चे, 5-6 साल के रहे होंगे, एक कमरे में ‘घर घर’ खेल रहे थे। इनमें से दो लड़कियां परंपरागत मां-बेटी बनी हुई थीं व आपस में घरेलू बातों पर बहस कर रही थीं। तीसरा बच्चा चुपचाप खड़ा देख रहा था। जब उससे मालूम किया गया कि वह क्यों नहीं खेल रहा, तो उसका जवाब था, ‘मैं पिता हूं और मेरे लिए घर पर कुछ करने के लिए नहीं है।’

नयी पीढ़ी तक पहुंचती परंपरागत सोच

इस छोटे से नाटक से स्पष्ट हो जाता है कि हमने माता-पिता की जो भूमिकाएं बना रखी हैं, वे कैसे नई पीढ़ी तक पहुंचती हैं कि मां का काम घर की देखभाल करना है व पिता का काम बाहर जाकर पैसा कमाना है। बावजूद इसके कि कार्यस्थल पर महिलाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है, लेकिन घरेलू मंच पर महिला व पुरुष होने के मुताबिक परंपरागत भूमिकाएं मौजूद हैं। यही वजह है कि समाजशास्त्री कहते हैं कि कामकाजी महिलाओं को ‘सेकेंड शिफ्ट’ भी करनी पड़ती है। अपनी एक पुस्तक में फेसबुक की पूर्व सीईओ शेरेल सेंडबर्ग ने उन महिलाओं पर उंगली उठाई है जो बच्चों की परवरिश के वर्षों के दौरान अपने कैरियर पर विराम लगा देती हैं।

पिता के लिए परिवार व कामकाज में संतुलन

आलोचक आरोप लगा रहे हैं कि सेंडबर्ग ने उन रोजमर्रा की जरूरतों व उलझनों को नजरअंदाज कर दिया है जिनका एक औसत महिला को सामना करना पड़ता है। लेकिन केवल कामकाजी महिला की विभिन्न भूमिकाओं पर फोकस करके हम एक महत्वपूर्ण मुद्दे को नजरअंदाज कर देते हैं। एक कामकाजी पिता कार्य व परिवार में किस तरह संतुलन स्थापित करे? जब तक यह प्रश्न पुरुषों के लिए प्रासंगिक नहीं होगा तब तक तब तक महिलाओं को बराबरी का अधिकार नहीं मिलेगा और वो बच्चों के संदर्भ में परंपरागत धारणाओं से ही चिपकी रहेंगी।

बदली भूमिकाओं में पिता

बहुत सी योग्य व प्रतिभाशाली महिलाएं बच्चों की परवरिश के लिए अपनी नौकरी छोड़ देती हैं और घर पर रहना बेहतर समझती हैं। विडंबना कहिये या कुछ और, यह विकल्प पुरुषों को उपलब्ध नहीं है क्योंकि परंपरागत स्टीरियो टाइप के कारण उन पर सामाजिक दबाव बना रहता है। हम पिता को रोटी कमाने वाला और मां को रोटी खिलाने वाला ही समझ रहे हैं। लेकिन तब क्या होता है, जब परंपरागत भूमिकाएं बदल जाती हैं यानी मां दफ्तर जाती है व पिता डाइपर बदलता है?

घर में रहकर बच्चे पालने वाले फादर

कम से कम पश्चिम में ऐसे पिताओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। इंग्लैंड में बच्चों की परवरिश करने के लिए घर पर रहने वाले पिताओं का प्रतिशत अब लगभग 10 हो गया है। डेढ़ दशक पहले जो आर्थिक मंदी का दौर आया था, उससे अमेरिका में भी ऐसे सामाजिक परिवर्तन आए थे, जिनकी कुछ दशक पहले कल्पना करना कठिन था। चूंकि बड़ी संख्या में पुरुषों को अपनी जॉब गंवानी पड़ी , इसलिए महिलाएं ही परिवार की एकमात्र ब्रेडविनर बन गईं। पुराने समय में बच्चों की देखभाल करने में पुरुष उस समय भी कम समय निवेश करते थे, जब वह बेरोजगार होते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि इससे उनकी मर्दानगी पर प्रश्न उठने लगेंगे। इसलिए वह ज्यादा समय अकसर शौक पूरा करने या क्लब-पार्टी आदि में व्यतीत करते थे। लेकिन समाज में परिवर्तन के कारण अब ज्यादा संख्या में पुरुष बच्चों की बुनियादी देखभाल में लगे हुए हैं, जबकि उनकी पत्नियां फुलटाइम काम कर रही हैं।

कामकाज के बदले तरीकों का असर

लेकिन ऐसा नहीं है कि बच्चे की देखभाल व परवरिश करने की जिम्मेदारी पिता केवल आर्थिक कारणों से ही उठा रहे हैं। यह बहस ‘स्टे एट होम डैड’ (घर पर रहकर बच्चों की परवरिश करने वाले पिता) जर्मी स्मिथ ने अपनी पुस्तक में की है। ज्यादातर जोड़े अपने बच्चों को डे केयर में रखना पसंद नहीं करते। इंटरनेट के आने से कार्य करने का तरीका काफी बदल गया है कि लोग पार्ट टाईम वर्क कर रहे हैं या अपने घर से ही काम कर रहे हैं। अगर पुरुष का जॉब अपनी पत्नी की तुलना में अधिक लचीला है, तो वह बच्चों को स्कूल ले जाने लाने, उन्हें ट्यूशन क्लास ले जाने-लाने और डॉक्टर के पास ले जाने का काम चुन सकता है।

परवरिश की बुनियादी सीख

बच्चों की बुनियादी परवरिश करने वाले ज्यादातर पिता स्वीकार करते हैं कि आरम्भ में उन्हें यह काम कठिन प्रतीत हुआ था। लेकिन जिस तरह नई मांएं काम सीख जाती हैं, उसी तरह समय के साथ पिता भी बेहतर होते जाते हैं। इन पुरुषों ने यह भी कहा कि उनका अपने बच्चों से तालमेल अधिक बढ़ जाता है, जिसे वह किसी कीमत पर भी खोना नहीं चाहेंगे। प्रोफेसर ऐरन रोशलिन ने 214 स्टे एट होम पिताओं का अध्ययन किया और पाया कि जिनको सामाजिक समर्थन है वह सम्पूर्ण संतुष्टि की दृष्टि से बेहतर कर रहे हैं।

इंग्लैंड में एक अध्ययन किया गया जिसमें 19000 बच्चे शामिल थे। इस अध्ययन से मालूम हुआ कि जिन बच्चों के पिता ने उनके जन्म के समय कार्य से छुट्टी ली थी और परवरिश में सहयोग करने के लिए समय निकालते थे, उनको भावनात्मक व व्यवहार सम्बंधी समस्याएं उन बच्चों की तुलना में कम थीं, जिनके पिता परवरिश में सहयोग नहीं कर रहे थे। बच्चे उस समय ज्यादा अच्छी परवरिश पाते हैं जब दोनों पैरेंट्स उनकी देखभाल करते हैं और उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं। -इ.रि.सें.

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