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बदले मौसम के अनुकूल लाभकारी जीवनशैली

बरसात का मौसम गर्मी से राहत तो दिलाता है लेकिन इन दिनों में वातावरण में नमी भर जाती है। उमस के चलते कई तरह की बीमारियां भी सिर उठाती हैं। ऐसे में सेहत की संभाल के लिए खानपान समेत जीवनशैली...
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बरसात का मौसम गर्मी से राहत तो दिलाता है लेकिन इन दिनों में वातावरण में नमी भर जाती है। उमस के चलते कई तरह की बीमारियां भी सिर उठाती हैं। ऐसे में सेहत की संभाल के लिए खानपान समेत जीवनशैली में कई बदलाव करने जरूरी हैं। वहीं कुछ सावधानियां भी बरतनी चाहिये।

प्रो. अनूप कुमार गक्खड़

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भीषण गर्मी के उपरान्त वर्षा ऋतु का आगमन राहतकारी महसूस होता है। श्रावण और भाद्रपद मास में वर्षा ऋतु के दौरान आकाश में बादल छाये रहते हैं। सूर्य, चंद्रमा और तारे भी बादलों से ढके रहते हैं। धूप कम निकलती है। चारों ओर जलधाराएं बहती हैं। धरती कीचड़ और जल जमाव से भरी रहती है। शरीर गीले होने की संभावनाएं बनी रहती हैं।

मौसम का शरीर पर प्रभाव

ऋतुओं का प्रभाव वातावरण के साथ-साथ हमारे शरीर पर भी पड़ता है। बरसात के मौसम में वातावरण में नमी होने के चलते उठने, बैठने और कार्य करने में स्फूर्ति की कमी महसूस हो सकती है। दरअसल, इस ऋतु में स्वभाव से ही शारीरिक बल अल्प हो जाता है। भोजन पचाने वाली जठराग्नि मन्द हो जाती है। इन दिनों में वात का प्रकोप होता है। दरअसल, शरीर में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार खानपान की जरूरतें बदलनी जरूरी हो जाती हैं।

कुछ नियमों का करें पालन

बरसात के मौसम में वात शमन के लिए तेल का प्रयोग करना चाहिए और पंचकर्म में से बस्ति कर्म का प्रयोग बेहतर है। वर्षा ऋतु में दही का उपयोग उचित होता है। वहीं नमकीन और खट्टी वस्तुएं विशेष रूप से फलदायक होती हैं। पुराने अन्न जौ व गेहूं आदि का प्रयोग हितकर है। पुराने शहद, काले नमक व दही का पानी का सेवन खास तौर पर हितकारी है। इस मौसम में उबालकर ठण्डा किया गया पानी पीना चाहिए। जिस दिन वर्षा अधिक हो उस दिन पर्याप्त मात्रा में खट्टे, नमकीन व चिकनाई युक्त भोजन का सेवन करना चाहिए। इस काल में खानपान की वस्तुओं के साथ शहद का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। सोंठ चूर्ण मिलाकर दही का पानी पीना भी लाभकारी है।

मौसम का प्रभाव

वर्षा का जल जो भूमि पर गिरने से पहले एकत्रित कर लिया जाता है वह पीने के लिए सभी प्रकार के पानी में श्रेष्ठ माना जाता है। हालांकि वर्षा ऋतु में नदियों का जल पीने के लिए सबसे निकृष्ट होता है। खास बात यह कि वर्षा ऋतु में विष का प्रभाव सबसे अधिक होता है। इस मौसम में घाव आदि की पट्टी हर दूसरे दिन बदलनी चाहिए। इस नमी वाली ऋतु में जल और गीली वायु के स्पर्श से जड़ी-बूटियों के स्वाभाविक गुण व असर कम हो जाते हैं। वहीं पंचकर्म जैसे संशोधन कर्म भी जल व शीतल वायु के स्पर्श से मन्द प्रभाव वाले हो जाते हैं।

खास सावधानियां

अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ रखें। घर-आंगन में रखी चीजों, गड्ढों व गमलों आदि में पानी जमा न होने दें। घर में रोजाना अच्छी गुणवत्ता वाली धूप अवश्य जलाएं। वहीं शरीर में सुगन्धित द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही स्वच्छ एवं हल्के वस्त्र पहनने चाहिए। अच्छा रहेगा यदि फूलों की माला का प्रयोग पहनने के लिए किया जाए। पुराने अनाज जौ-गेहूं आदि का प्रयोग करें। इस दिनों में मूंग की दाल का सेवन उत्तम है। सभी तरह के भोजन को ढक कर रखें। खास तौर से खाने पीने की वस्तुओं के साथ पुराने शहद का प्रयोग करें लेकिन घी के साथ शहद का सेवन करने से बचा जाये। जल दूषित हो जाता है तो उसे उबालकर पीना ही अनुकूल रहता है।

इन गतिविधियों से भी रखें परहेज

पैदल नहीं चलना चाहिए। अनावश्यक मकान की छत पर, नदी के किनारे अथवा जहां गिरने का भय हो, ऐसे स्थान पर नहीं जाना चाहिए। नदी का पानी पीने से हो सके तो बचें। वर्षा ऋतु में दिन में सोना सेहत के लिए ठीक नहीं माना जाता है। वहीं इस मौसम में सामर्थ्य से ज्यादा व्यायाम करने से बचना चाहिए। अधिक पैदल चलना और सूर्य की किरणों का सेवन करने से बचना बेहतर है। ध्यान रखें कि जूते बंद रहें व ज्यादा देर तक शरीर गीला न रहे। तेज धूप से बचें। खास बात है कि सत्तू का घोल बरसात में नहीं पीना चाहिए।

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