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बर्तनों के चुनाव से पहले जान लें जोखिम भी

रसोई घर
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आज भी काफी घरों में खाना पकाने के लिए रसोई में एल्यूमिनियम के बर्तनों को जगह दी जाती है। खास तौर पर इसलिए कि ये सस्ते हैं, हल्के हैं और जल्दी गर्म हो जाते है। लेकिन कई अध्ययनों के मुताबिक, इनकी सतह के साथ अम्लीय व नमकीन खाने प्रतिक्रिया करते हैं जिससे कई किस्म के रोग लगने की आशंका रहती है।

सस्ते के चक्कर में आप रसोई में एल्यूमिनियम के बर्तनों को जगह दे रहे हैं। शायद आप नहीं जानते कि ये बर्तन कितने खतरनाक हैं। बता दें कि एल्यूमिनियम एसिडिक या नमकीन खाना पकाने पर प्रतिक्रिया करता है, जिससे यह धातु अन्न या अन्य खाद्य पदार्थों में घुल सकती है। टमाटर, नीबू, विनेगर आदि जितने अधिक एसिडिक पदार्थ होंगे, एल्यूमिनियम उतना अधिक निकलता है । एक अध्ययन में खट्टे सूप पकाने पर 3–5 मिलीग्राम एल्यूमिनियम मिलने का सबूत सामने आया—जो स्वास्थ्य के लिहाज से चिंता का विषय हो सकता है। खास बात यह है कि इसका मस्तिष्क से भी संबंध है।

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एल्यूमिनियम के स्वास्थ्य पर प्रभाव

वर्ष 1960 के अध्ययन से अल्जाइमर और एल्यूमिनियम के बीच संबंध का संदेह सामने आया था, हालांकि अल्जाइमर्स एसोसिएशन ने इस संबंध की पुष्टि नहीं की। बता दें कि गुर्दे एल्यूमिनियम को बाहर निकाल देते हैं, लेकिन गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त लोग इसके संचय और हड्डियों की कमजोरी के जोखिम में पड़ सकते हैं। चूहों पर किये गए अध्ययन से भी संकेत मिला है कि पुराने, खरोंच वाले बर्तन से लीचिंग (धातु घुलने की प्रक्रिया संबंधी) से जीन और प्रजनन स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। शोधों में पाया गया कि कुछ विकृत, स्क्रैप-आधारित एल्यूमीनियम बर्तनों में लेड, कैडमियम और आर्सेनिक की मात्रा स्वास्थ्य जोखिम स्तर से बहुत ऊपर थी। वहीं पशुओं पर अध्ययन में बच्चों में न्यूरोलॉजिकल विकास की बाधा की आशंका भी सामने आई है । भारतीय मानक ब्यूरो यानी बीआईएस सुझाव देता है कि 12–24 महीने के बाद एल्यूमिनियम बर्तन बदल देना चाहिए, क्योंकि नई सतह धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाती है।

इसलिए खतरनाक हैं एल्यूमीनियम के बर्तन

एल्यूमीनियम एक हल्की धातु है, जो तेजी से गर्म होती है और इसलिए लंबे समय से रसोई में इसके बर्तनों का चलन रहा है। लेकिन वैज्ञानिक शोध यह स्पष्ट करते हैं कि एल्यूमीनियम अधिक गर्म होने पर भोजन में घुल सकता है, खासकर जब उसमें अम्लीय चीजें (जैसे टमाटर, नीबू आदि) पकाई जाती हैं। यह शरीर में धीरे-धीरे जमा होकर कई प्रकार की बीमारियों जैसे अल्जाइमर, हड्डियों की कमजोरी, किडनी रोग और तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है।

आसान विकल्प हैं उपलब्ध

आज बाज़ार में स्टेनलेस स्टील, कास्ट आयरन (लोहे), तांबे, कांसे और मिट्टी के बर्तनों की भरमार है, जो स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित ही नहीं बल्कि कई मामलों में लाभकारी भी हैं। लोहे की कढ़ाही में भोजन पकाने से शरीर को आयरन मिलता है, वहीं मिट्टी के बर्तन भोजन को प्राकृतिक स्वाद और पोषण प्रदान करते हैं।

सोच बदलने की ज़रूरत

शहरीकरण और सुविधा की चाह में हम जो भी सस्ता और टिकाऊ दिखता है, उसे अपनाने लगते हैं — एल्यूमीनियम धातु के बर्तन उन्हीं में से एक हैं। लेकिन यह सोच बदलनी होगी। जिस तरह हम प्लास्टिक को बाय-बाय कहने की कोशिश कर रहे हैं, उसी तरह अब एल्यूमीनियम के बर्तनों से भी दूरी बनाना जरूरी है।

गलत उपयोग खतरनाक

एल्यूमिनियम के बर्तन स्वास्थ्य के लिए पूर्णत जहरीले नहीं हैं, लेकिन उनकी गलत उपयोग पद्धति और पुराने व विकृत हालात खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि एसिडिक या नमकीन पकवानों के दौरान एल्यूमिनियम से बचाव करें। यकीनी बनाएं कि उपयोग के दिनों में बर्तन की सतह कायम रहे—बर्तन बदलें और खरोंचों से बचें। समय के साथ लीचिंग और भारी धातु संचय घटित होते हैं, जिन्हें रोकने के लिए सही बर्तन और उपयोग की समझ जरूरी है। यह ध्यान में रखना जरूरी है कि स्वस्थ रसोई का अर्थ केवल स्वच्छ खाना नहीं, बल्कि सही बर्तन का चुनाव भी है।

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