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पहाड़ों की गोद में नयनाभिराम झील

नैनीताल
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नैनीताल, एक आकर्षक हिल स्टेशन है, जो अपनी खूबसूरत झीलों, हरे-भरे पहाड़ों और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यह जगह न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक महत्ता और सांस्कृतिक धरोहर भी पर्यटकों को आकर्षित करती है। नैनीताल की माल रोड, बोटिंग और आसपास की अन्य झीलों का दृश्य अनमोल अनुभव प्रदान करते हैं।

अमिताभ स.

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उत्तराखंड के कुमाऊं पहाड़ों पर बसे नैनीताल की उत्तर भारत वालों के दिल में खास जगह है। दक्षिण भारत के ऊटी और कोडेकनाल हिल स्टेशनों में तो झील का आनंद मिलता है, लेकिन उत्तर भारत में नैनीताल में ही ऐसा निराला मजा है। टेढ़े- मेढ़े पहाड़ी रास्तों से गुजर कर, हिमालय के बीचोंबीच, समुद्री तल से 6538 फुट की ऊंचाई पर बसा है। नैनीताल जो चारों ओर से हरे- भरे पहाड़ों और देवदार, चिनार, चीड़, बांस वगैरह के पेड़ों से घिरा है।

हिंदुस्तानियों को भी अंग्रेजों की तरह नैनीताल की खूबसूरती भाती रही है। जिम कोर्बेट ने कई सालों तक नैनीताल को अपना घर बनाया और अपनी किताबों में नैनीताल के सौंदर्य को खूब सराहा। उनसे पहले, कुमाऊं कमिशनर ट्रेल ने नैनी लेक को सबसे पहले सन‌् 1818 से 1830 के बीच देखा। एक और गौरे घुमक्कड़ पी. बैरज ने 1841 में पहले पहल नैनीताल को देखा और तारीफ़ में अख़बारों में बाकायदा लेख लिखे- छापे। अगले साल उसने मैजिस्ट्रेट से एक दर्जन हिल रेस्ट हाउस बनाने की इजाजत ली, और बनाए।

माल रोड की रौनकें

सभी हिल स्टेशनों की तरह नैनीताल का आकर्षण माल रोड ही है। इस पर पैदल तफ़रीह कीजिए, या अपनी कार-बाइक में भी घूम सकते हैं। हालांकि पैदल चलने वालों की सुविधा के लिए शाम 6 से आधी रात तक वाहनों की आवाजाही रोक दी जाती है। नैनी झील के चारों तरफ़ माल रोड घूमती है। सुबह-सवेरे झील के किनारे-किनारे सड़क पर पैदल टहलना मजेदार अनुभव है। उत्तरी छोर पर हल्के ढलानों के बाद सीधे खड़े पहाड़ हैं। चढ़ाई की तरफ़ को मल्लीताल कहते हैं। उधर दक्षिण छोर पर हल्के ढलान के बाद गहराती निचाई है, जिसे तल्लीताल कहते हैं। शहर की तरह नैनी झील भी दो हिस्सों में बंटी है- तल्लीताल और मल्लीताल। इधर से उधर और उधर से इधर बोटिंग नहीं कर सकते। इसलिए उधर का बोटें इधर और इधर की बोटें उधर नहीं जातीं।

नैनीताल का सचमुच दिल है नैनी झील। झील कुदरती है और नयन यानी आंख के आकार की है। खासी लम्बी-चौड़ी झील है- लम्बाई 1372 मीटर और चौड़ाई 360 मीटर। बोटिंग का निराला लुत्फ है- चापू और पैडल वाली बोटें तैरती हैं। पहले हवाई पट्टी वाली किश्तियां भी तैरा करती थीं। पैडल बोट को खुद ही पैडल मार-मार कर चलाना पड़ता है। इसलिए चलाने से पहले ख्याल रहे कि पैडल बोट पर झील में ज्यादा आगे तक न निकल जाएं। वरना अच्छे-अच्छों को लौटते वक्त खासी दिक्कत पेश आती है। क्योंकि पैडल मार-मार कर लौटते हुए हिम्मत जवाब दे देगी। 1970 के दशक की सुपर हिट फ़िल्म ‘कटी पतंग’ में, सुपर स्टार राजेश खन्ना और आशा पारेख पर फ़िल्माया गीत ‘जिस गली में तेरा घर न हो बालमा, उस गली से हमें तो गुजरना नहीं...’ में नैनी झील का ख़ूबसूरत निखर कर रूपहले पर्दे पर छा जाती है।

और क्या- क्या देखना

नैनीताल में देखने लायक़ अकेली नैनी झील नहीं है। आसपास पहाड़ों पर आधा दर्जन और झीलें हैं। खास-खास हैं- भीम ताल, नकुचिया ताल और सत ताल। नैनीताल से 22 किलोमीटर परे भीमताल है, और भीमताल से 5 किलोमीटर आगे नकुचिया ताल। यह कुमाऊं की सबसे गहरी झील है। झील पर खिले कमल के फूल बेहद ख़ूबसूरत लगते हैं। सत ताल तो सात झीलों के समूह का नाम है। राम ताल, सीता ताल, लक्ष्मण ताल, भरत ताल, शत्रुघ्न ताल, हनुमान ताल और पन्ना ताल। ये भीम ताल से करीब 10 किलोमीटर पश्चिम की ओर हैं। झील के इर्द-गिर्द चीड़ और बाज के घने वन हैं। हरा-भरा नजारा खासा सुकून देता है। उधर नैनीताल से करीब 8 किलोमीटर परे, राम नगर की ओर, सड़क मार्ग पर, खुर्पाताल गांव बसा है। यहां इसी नाम की झील भी है, जिसका आकार ‘गाय के खुर’ जैसा है। इसका व्यास क़रीब आधा किलोमीटर है, और चारों ओर पहाड़ियों से घिरी है।

नैनीताल के अन्य आकर्षणों में हनुमान गढ़ी मन्दिर, नयना देवी मन्दिर, चायना पीक, स्नो व्यू, पाषाण देवी मन्दिर, गुफ़ा महादेव वगैरह खास हैं। एरिल एक्सप्रेस रोप-वे ट्रॉली का लुत्फ भी उठा सकते हैं- रोप-वे सीधे ऊंचे शिखर पर महज 5 मिनट में ले जाती है। पैदल चढ़ाई चढ़ें तो पहुंचने में करीब एक घंटा लगता है। हालांकि, चढ़ाई ज्यादा नहीं है, केवल दो किलोमीटर ही है, लेकिन जरा तीखी है। समुद्र तल से 7450 फ़ुट ऊंचे शिखर को ही स्नो व्यू कहते हैं। यहां से साफ़ मौसम में, नंदा देवी की चोटी पर ढकी सफ़ेद बर्फ को देखना दिलकश लगता है। नैनीताल जू, टिफ़िन टॉप और लैंड्स एंड भी मशहूर पर्यटन स्थल हैं।

बड़ा बाज़ार में शॉपिंग

नैनीताल आते-जाते कैंची धाम, रामगढ़, देव गुरु, मुक्तेश्वर, काकड़ी घाट, कोरा बाग, सीतावनी, ढिकुली, गरजिया देवी वगैरह भी जा सकते हैं। यहां जाएं या न जाएं, लेकिन प्रकृति प्रेमियों को राम नगर के कोर्बेट नेशनल पार्क जरूर जाना चाहिए। राम नगर नैनीताल से क़रीब 67 किलोमीटर की दूरी पर है। यह भारत का पहला प्राणी उद्यान है। पार्क हर साल 15 नवंबर से 15 जून तक पर्यटकों के लिए खुलता है।

नैनीताल की माल रोड के एक छोर पर है सदियों पुराना बाजार। नाम है बड़ा बाजार। खचाखच दुकानों से भरा है, और दिन भर रौनकें गुलजार रहती हैं। फल, जेम, अचार, शर्बत वगैरह की ज्यादा दुकानें हैं। शॉपिंग कर कर भर-भर बैग सौगातें लेकर पर्यटक अपने-अपने शहर लौटते हैं। बड़ा बाजार की बड़ी खासियत है कि यहां तमाम साइज और शेप की मोमबत्तियां खरीद सकते हैं। मोमबत्तियां परियों जैसी प्रतिमाओं के डिज़ाइन की हैं। मोमबत्तियों की इतनी रेंज-वैरायटी देश के कम ही शहरों में मिलती है।

माल रोड पर दिल्ली के द एम्बेसी और मोती महल नाम के मशहूर रेस्टोरेंट भी हैं। एक शाकाहारी रेस्टोरेंट का तो नाम ही चांदनी चौक है। अंदर-बाहर की सजावट भी दिल्ली के दिल चांदनी चौक से मिलती- जुलती हैं। अन्य हिल स्टेशनों की तरह लकड़ी की आंच पर सामने भुने भुट्टे भी यहां-वहां मिलते हैं।

ज्यादा दूर नहीं

दिल्ली से नैनीताल की दूरी क़रीब 300 किलोमीटर है। इसे सड़क के रास्ते तय करने में 7 घंटे लगते हैं। शताब्दी ट्रेन में साढ़े 5 घंटे में काठगोदाम पहुंचते हैं। आगे 35 किलोमीटर की चढ़ाई क़रीब एक घंटे में पूरी करते हैं। दिल्ली से नैनीताल नेशनल हाई वे 24 से हापुड़ से रामपुर और आगे एन एच 87 से नैनीताल वाया काठगोदाम पहुंचते हैं।

कब है जाना

साल के ज्यादातर महीनों में नैनीताल जा सकते हैं। मॉनसून में आने- जाने में ज़रा दिक़्क़तें हो सकती हैं। सर्दियों में कड़ाके की ठंड के बावजूद मज़े आते हैं। फिर भी, बेस्ट महीने मार्च, अप्रैल और मई हैं। जून भी बेहतर है, लेकिन पर्यटकों की भीड़ बढ़ जाती है। फिर अक्तूबर और नवंबर भी सीजन सुहावना होता है। कभी-कभार दिसम्बर आख़िर और जनवरी शुरू में बर्फ़ भी पड़ती है।

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