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आयुर्वेद में भी है डेंगू का कारगर उपचार

सेहत आयुर्वेद में डेंगू के उपचार के लिए विभिन्न औषधियां दी जाती हैं जो ज्वर, डिहाइड्रेशन, प्लेटलेट कमी, रक्तस्राव और कमजोरी दूर करने में कारगर मानी जाती हैं। आयुर्वेदिक पद्धति से डेंगू इलाज के विभिन्न पहलुओं पर सर गंगाराम अस्पताल,...

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सेहत

आयुर्वेद में डेंगू के उपचार के लिए विभिन्न औषधियां दी जाती हैं जो ज्वर, डिहाइड्रेशन, प्लेटलेट कमी, रक्तस्राव और कमजोरी दूर करने में कारगर मानी जाती हैं। आयुर्वेदिक पद्धति से डेंगू इलाज के विभिन्न पहलुओं पर सर गंगाराम अस्पताल, दिल्ली की आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. प्रीति छाबड़ा से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

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डेंगू वेक्टर-जनित रोग है जो संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फ्लेविवाइरस के फैलने से होता है जिसे फैलाता है मादा एडीज एजिप्टी मच्छर। यह बरसात के मौसम में रुके हुए पानी में तेजी से पनपने वाला धारीदार मच्छर होता है। जब एडीज मच्छर डेंगू से पीड़ित व्यक्ति को काटता है, तो उससे वो खुद संक्रमित होने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति को काटता है और डेंगू के वायरस उसके शरीर में पहुंचा देता है। इस वायरस से 3-4 दिन बाद शरीर की रक्त संचार प्रणाली प्रभावित होने लगती है। ब्लड प्लेटलेट काउंट कम होने लगते हैं, इम्यूनिटी कम होकर कमजोरी औैर बदन दर्द होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर साल करीब 100 मिलियन व्यक्ति इसका शिकार होते हैं। मेडिकल साइंस में डेंगू को बोन, ब्रेकबोन, हेमरेजिक या रैश फीवर नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में डेंगू को विषम, अभिषंगत या सन्निपातक ज्वर कहा जाता है।

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डेंगू ज्वर का पैटर्न

डेंगू ज्वर के दौरान शुरू के दो-तीन दिन में बुखार बहुत तेज होता है, उसके बाद एकाध दिन तक नॉर्मल होता है, फिर तेज बुखार चढ़ता है। 3-5 दिन के बाद तेज बुखार रहे तो मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है। उसके शरीर की सूक्ष्म कोशिकाओं में से रक्त स्राव होने लगता है।

एक्यूट ज्वर

इसमें मरीज को बुखार आना, सिर में दर्द, पीठ दर्द, मांसपेशियों, जोड़ों में दर्द रहता है। भूख नहीं लगती, पेट या सीने में दर्द की शिकायत रहती है। चेहरे लाल होना, शरीर में रैशेज हो जाते हैं

डेंगू हेमरेजिक ज्वर

बुखार कंट्रोल न होने पर डेंगू बुखार शरीर की गंभीर धातुओं में प्रवेश कर जाता है। तब इसे डेंगू हेमरेजिक फीवर कहा जाता है। इसमें मसूड़ों, नाक आदि से रक्त स्राव होने लगता है। कई मरीजों की आंखें बहुत लाल हो जाती हैं। कई मरीज के गेस्ट्रोइंटस्टाइन में रक्त स्राव के कारण मल काले रंग का हो जाता है। मरीज को चक्कर-उल्टियां आने, सांस लेने में तकलीफ, तंद्रा की स्थिति, नींद न आना, सीने में भारीपन, चिड़चिड़ापन, हाथ-पैर ठंडे पड़ना जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।

डेंगू शॉक सिंड्रोम

शरीर की विभिन्न रक्त धमनियों की सूक्ष्म कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है जिसकी वजह से कई अंगों से रक्त स्राव होने लगता है। मरीज दिग्भ्रमित अवस्था में आ जाता है। इसमें डिहाइड्रेशन की समस्या यानी मूत्र आना कम हो जाता है, आंसू, तालू, जीभ, होंठ सूखने लगते हैं।

ऐसे किया जाता है उपचार

डेंगू ज्वर को कंट्रोल करने के साथ सबसे पहले रिहाइड्रेशन पर जोर दिया जाता है। लिक्विड डाइट ज्यादा दी जाती है। आयुर्वेद में जड़ी-बूटियां दी जाती हैं जैसे संशमनी वटी, गिलोय का काढ़ा, गोदन्ती भस्म, अमृथोथराम काश्याम सिरप, सुदर्शन घनवटी, श्वेत चिरायता, तुलसी। डेंगू के उपचार के लिए कई तरह की औषधियों को एक-दूसरे के साथ मिलाकर दिया जाता है जैसे- रक्त चंदन, मिश्री, मुलैठी, धनिया, आंवला, वासा, द्राक्षा। इसके अलावा रिसर्च में साबित हुआ है कि पपीते के पत्ते का जूस डेंगू फीवर के उपचार में काफी सहायक होता है। आयुर्वेद चिकित्सक मरीज की स्थिति के आधार पर षडंगपानीय भी पीने के लिए दे सकते हैं। यह ज्वर में डिहाइड्रेशन ज्यादा होने पर दिया जाता है। यह पानी ज्वर का ताप दूर कर इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन को ठीक करता है, इसके सेवन से रक्त में प्लेटलेट बढ़ते हैं।

स्थिति गंभीर होने पर

मरीज की स्थिति गंभीर होने पर यानी मुंह या नाक से रक्त स्राव हो रहा है, तो चिकित्सक द्वारा खजूर, लासा, वासा तर्पण का सेवन करने को दिया जाता है। इससे मरीज को पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है। इसके अलावा मलद्वार मार्ग से रक्त स्राव होने पर मोजरस का शीरपाक, मूत्र मार्ग से रक्त स्राव होने पर शतावरी दूध में पकाकर शीरपाक रोगी को दिया जाता है। नाक से रक्त स्राव होने पर दूर्वा जैसी औषधियों के रस की कुछ बूंदें नाक में डाली जाती हैं।

आहार

आहार का विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है जैसे- रक्तशाली या पुराना चावल, औषधीय घी का उपयोग किया जाता है। नारियल पानी, आंवला, अनार का जूस दिया जाता है। सफेद पेठा का सेवन काफी फायदेमंद है। इसके अलावा पतली खिचड़ी, दलिया, उबली सब्जियां, दाल का पानी, सब्जियों का सूप, फल और उनके जूस, जौ का पानी दिया जा सकता है।

रखें सावधानी

इन सभी चीजों का उपयोग हमेशा आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में व परामर्श से ही करना चाहिए। चिकित्सक मरीज की स्थिति के आधार पर ही आयुर्वेदिक उपचार में दी जाने वाली युक्तियों की डोज़ और औषधियों का चयन करता है। सेल्फ-मेडिकेशन करना मरीज को नुकसान पहुंचा सकता है। वहीं डेंगू फीवर से बचने के लिए पानी स्टोर करते समय साफ-सफाई का ध्यान रखना जरूरी है। आयुर्वेद में धूपन को भी महत्व दिया गया है जिसमें अपराजिता, सर्षव और नीम की पत्तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे मच्छर दूर रहते हैं।

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