बच्चे अपनी समर वेकेशंस यानी छुट्टियों के समय को सकारात्मक और रचनात्मक ढंग से बिताएं, यह यकीनी बनाना अभिभावकों का जिम्मा है। पैरेंट्स समय बिताने का माध्यम समझकर स्मार्ट गैजेट्स बच्चों के हाथ में थमा देने से पहले इनके खतरों को समझें। दरअसल, बच्चों में स्क्रीन में गेम्स खेलने की लत से बढ़ रही स्वास्थ्य समस्याएं खूब सामने आ रही रही हैं। आपके परिवार में भी कोई बच्चा घंटों मोबाइल में गेम खेलता है, तो समय रहते चेत जाएं। उसकी जीवनचर्या बदलने में सक्रिय भागीदारी निभाएं।
डॉ. मोनिका शर्मा
छुट्टियों में बच्चों को मिलने वाले फ्री समय के इस्तेमाल को लेकर अब और सजगता आवश्यक है। आजकल बच्चे स्कूली रूटीन में ही अपना काफी समय स्क्रीन पर गेम खेलने में बिताते हैं। हाल ही में सामने आया एक मामला इस मोर्चे पर चेताने वाला है। दिल्ली में मोबाइल पर गेम खेलने की लत के कारण एक 19 साल के लड़के को रीढ़ की हड्डी की सर्जरी करवानी पड़ी। करीब 12 घंटे तक अपने कमरे में अलग-थलग रहने की वजह से उसे आंशिक लकवा हो गया था। धीरे-धीरे उसकी रीढ़ की हड्डी झुक गई और ब्लैडर पर कंट्रोल तक खोने लगा। मोबाइल गेमिंग एडिक्शन के कारण अस्पताल पहुंचने पर उसे चलने में भी मुश्किल हो रही थी। बच्चों में स्क्रीन में गेम्स खेलने की लत से बढ़ रही स्वास्थ्य समस्याएं अब खूब हो रही हैं। आपके परिवार में भी कोई बच्चा घंटों मोबाइल में गेम खेलता है, तो समय रहते चेत जाएं। छुट्टियों के समय को सकारात्मक और रचनात्मक ढंग से बिताने के मार्ग तलाशें।
स्मार्ट गैजेट्स खिलौने नहीं
छुट्टियों में समय बिताने के लिए स्मार्ट गैजेट्स को खिलौने न बनाएं। अभिभावक बच्चों को पहले आदत और आगे चलकर लत की उस स्थिति तक न पहुंचाएं। एकबार स्मार्ट स्क्रीन में गेम्स खेलने की लत लग जाने पर बच्चे इनके बिना खुश रहना ही भूल जाते हैं। तकलीफदेह है कि दादी-नानी के घर आए बच्चे भी ऑनलाइन गेम्स में ही गुम रहते हैं। अभिभावक समय बिताने का माध्यम समझकर गैजेट्स बच्चों के हाथ में थमा देने से पहले इनके खतरों को समझें। इनसे पैदा होने वाले जोखिमों को याद रखें। बचपन सहेजने के लिए जिन कोशिशों की दरकार है, उनमें मासूम मन को इन टेक्नीकल गैजेट्स के जाल से बचाना सबसे अहम है। अब जरूरी हो गया है कि बच्चों को गैजेट्स की दुनिया में खेलने या समय बिताने भर के लिए न धकेलें। एक बार मोबाइल में गेम्स खेलने की आदत हो जाये तो इनसे बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है। आदत हो जाने पर कुछ बच्चे स्मार्ट फोन या आइपैड न देने पर जिद करते हैं। गुस्सा दिखाते हैं। छोटे-छोटे बच्चे हाइपर हो जाते हैं। स्पष्ट है कि व्यवहार की समस्याएं देने वाली चीज़ें खिलौने नहीं हो सकतीं।
अनजान न बनें अभिभावक
आज शहरी ही नहीं, गांवों-कस्बों में रहने वाले अभिभावकों को भी इन गैजेट्स से होने वाली तकलीफों की जानकारी है। कमोबेश सभी जानते हैं कि इनका हद से ज़्यादा इस्तेमाल नुकसानदेह है। फिर भी घर -घर में बच्चे इन स्मार्ट गैजेट्स के साथ घंटों खेलते हैं। कहीं न कहीं इस अनदेखी की वजह बड़ों का स्वार्थ भी होता है। उनके पास न बच्चों से बात करने का समय है और न ही खेलने का। ऐसे में स्मार्ट गैजेट्स बच्चों को व्यस्त रखने का सबसे सहज तरीका लगने लगे हैं। मॉल, मूवी, ट्रेवलिंग या घर। बच्चों के फुर्सत के लम्हे स्क्रीन स्क्रॉल करते बीत रहे हैं। कुछ अपने काम में खलल न पड़ने की चाह तो कुछ बच्चों के मासूम मन की ख्वाहिश। अभिभावकों ने तकनीक से मिली सहूलियत को बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बनाकर समस्या खड़ी कर ली है। सब कुछ जानते-समझते की जा रही यह अनदेखी कई मामलों में बीमारियां पैदा कर रही है। अमेरिका और इंग्लैण्ड जैसे देशों में तो अभिभावक महंगी फीस चुकाकर बच्चों को मोबाइल की लत से छुटकारा दिला रहे हैं।
सजग होना होगा
आंगन की खिलखिलाहट माने जाने वाले बच्चे स्क्रीन के दायरे तक सिमटकर व्याधियों के घेरे में आने लगें तो सचेत होना जरूरी है। इस मोर्चे पर परिजनों की भूमिका अहम है, क्योंकि बच्चों का मन स्क्रीन की मन-मुताबिक़ चलने वाली दुनिया से बाहर नहीं आ सकता। ऑनलाइन खेल बच्चोंा को खूब पसंद आते हैं। ऐसे में घर के बड़ों का सचेत होना ही बच्चों को इनसे होने वाली शारीरिक मानसिक व्याधियों से बचा सकता है। अभिभावक स्मार्ट गैजेट्स के उन खतरों की अनदेखी न करें जो नयी पीढ़ी की सेहत और स्वभाव दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस मायावी दुनिया में खोये रहने से बच्चों का हेल्थ , बिहेवियर, इटिंग हैबिट्स और सामाजिक जीवन सभी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। अफसोस कि स्मार्ट गैजेट्स की लत बच्चों में अस्वस्थ जीवनशैली को जन्म दे रही है।
जीवनशैली बदलें
छुट्टियों में बच्चों को सधी-स्वस्थ जीवनशैली की ओर मोड़िये। स्मार्ट गैजेट्स से दूरी के लिए जीवनशैली का बदलाव ही पहला कदम है। फुर्सत के ये दिन डिजिटल लाइफस्टाइल से दूर उनके साथ समय बिताने, आउटडोर गेम्स खेलने और सार्थक कम्युनिकेशन करने के मुफीद समय है। इसके लिए खुद पेरेंट्स इन गैजेट्स की जद से बाहर आएं। टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन के नाम पर जिंदगी से ही दूर होते अभिभावक खुद भी सचेत हों और फिर बच्चों को लती बनने से बचाएं। स्क्रीन की दुनिया में खेल खेलने में गुम बच्चों की एक अलग ही दुनिया बन जाती है। बच्चे वास्तविक संसार के बजाय वर्चुअल वर्ल्ड में सहज महसूस करने लगते हैं। शारीरिक व मानसिक रूप से मेहनत करना भूल जाते हैं। ऑनलाइन गेम्स खेलते हुए किसी भी परेशानी से क्विट करने की आदत हो जाती है। संघर्ष की सोच और वास्तविक जीवन की समझ से परे बनने वाला उनका व्यक्तित्व विचार-व्यवहार के मोर्चे पर दिशाहीन हो जाता है। ऐसी स्थितियां जिंदगी में हर पहलू पर तकलीफें पैदा करती हैं।