विवाह की शुभता सोने के गहनों संग
आर्थिक व तकनीकी तरक्की के चलते रीति-रिवाजों में बड़े बदलाव आ चुके हैं। विवाह आयोजनों में भी इसका असर स्पष्ट दिखाई देता है। पर आज भी भारतीय शादी में ढोल-नगाड़े कम हों तो चलता है, लेकिन सोने की चमक फीकी हो तो मानो रस्में अधूरी रह गई हों। दरअसल, भारतीय परंपराओं में सोना बहुत शुभ माना जाता है उसे लक्ष्मी का स्वरूप कहा जाता है। यूं भी मंडप में दुल्हन बिना गहनों के अधूरी सी लगती है। कीमतें बांस-सी बढ़ती हैं, फिर भी सोना शादियों में चमक बिखेरता है।
आज भी समाज में
हालांकि प्राचीन समय से कन्यादान की रस्म को सबसे बड़ा दान कहा जाता है। साथ ही सोने को परिवार के मान-सम्मान का प्रतीक भी माना जाता रहा। सोना पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता आ रहा है। लेकिन आधुनिकता के बावजूद आज भी नवविवाहिता की हैसियत सोने से ही आंकी जाती है। कई बार तो रिश्तेदारों की बातें व नये अपनों के ताने कम सोने से शृंगार वाली दुल्हन को सहने पड़ते हैं।
कहावतों में भी सोना
जनमानस में सोना गहरे तक रचा-बसा है। उसकी महत्ता सोने से जुड़ी कहावतों-’सोने सी दुल्हन’, ‘सोने से तोलना’ आदि- में भी जाहिर है। रिश्तेदार अक्सर पूछ ही लेते हैं- ‘कितने सेट हैं ‘, ‘कितना गहना चढ़ाया’।
मॉडर्न ज्वैलरी डिजाइन
बदलते दौर में ज्वैलरी के मेटीरियल व डिजाइन भी बदले हैं। प्लेटिनम के अलावा लाइट कृत्रिम व इमिटेटिव ज्वैलरी भी ट्रेंड में हैं। केरल जैसी गोल्ड प्लेटेड ज्वैलरी भी विकल्प है। ये देखने में पारंपरिक व आकर्षक होती है वहीं हल्की व किफायती भी। इस सबके बावजूद शादियों में स्वर्णाभूषण ‘रिप्लेसेबल’ नहीं।
महंगाई का असर
सोने के नित उछलते भाव का सीधा असर भारतीय शादियों पर पड़ रहा है। ऐसे ही सोना महंगा होता रहा तो आम आदमी का विवाह का बिगड़ा बजट परेशानी बढ़ाएगा।