रजनी अरोड़ा
वैसे तो हर मौसम में डायबिटीज़ के मरीज़ों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं लेकिन मानसून का मौसम उनमें डायबिटिक फुट की समस्या को बढ़ा देता है। ऐसे मरीज़ों को अपने पैरों की खास देखभाल की ज़रूरत होती है।
डायबिटीज़ के मरीज़ों के पैरों में हमेशा जलन, सुन्न होना, झुनझुनी, कंपन जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं, जिनकी वजह से पेशेंट को चलने में दिक्कत होती है उन्हें किसी तरह के स्पर्श या सेंसेशन का पता नहीं चल पाता, गर्म-ठंडे का अहसास नहीं होता। बारिश के मौसम में जगह-जगह बैक्टीरियायुक्त जल-भराव से पैर अक्सर गीले रह जाते हैं जिससे उन्हें फंगल और बैक्टीरियल इंफेक्शन होने का ख़तरा रहता है।
खतरे को समझें…
पैरों में खुजली या मामूली-सा जख्म या घाव भी खतरनाक हो सकता है क्योंकि उसे भरने या ठीक होने में बहुत टाइम लग जाता है। जल्द उपचार न कराया जाए तो इंफेक्शन बढ़ भी सकता है जो धीरे-धीरे पैर के टिशूज डैमेज करना शुरू कर देता है। पैरों के तंत्रिका तंत्र (न्यूरेापैथिक सिस्टम) को क्षति पहुंचती है और ब्लड सर्कुलेशन में बाधा आती है। जिससे इंफेक्शन बढ़ने के चांस बढ़ जाते हैं। मरीज़ों के पैरों में दुर्गन्ध, एडिमा, अल्सर, सेप्टीसीमिया, गैंगरीन, विकृति जैसी कई समस्याएं बढ़ जाती हैं। कई बार तो पैर काटने की नौबत भी आ जाती है। डाॅक्टरों का मानना है कि भारत में डायबिटीज के करोड़ों पेशेंट हैं जिनमें से 7-15 प्रतिशत पेशेंट के पैरों में ऐसी समस्या देखने को मिलती है। उन्होंने ऐसे पैरों को डायबिटिक फुट की संज्ञा दी है।
मानसून की मुश्किलें
डायबिटीज पेशेंट के लिए बरसात का मौसम थोड़ा मुश्किल भरा होता है क्योंकि यह उमस या नमी के साथ अपने साथ कई बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन जो लाता है।
अक्सर पानी में भीगे पैैरों को गंदा और गीला छोड़ दिया जाता है जो मूलतः इंफेक्शन का कारण बनता है। ऐसे में इंफेक्शन से बचाव के लिए उन्हें अपने पैर की स्पेशल केयर की जरूरत पड़ती है ताकि उनके पैर को किसी तरह का नुकसान न हो।
इन तरीकों से करें देखभाल
0 डायबिटिक फुट पेशेंट को इस मौसम में नंगे पांव नहीं चलना चाहिए क्योंकि किसी कीट के काटने या किसी भी तरह का घाव होना उनके लिए नुकसानदेह हो सकता है।
0 बारिश के मौसम में डायबिटीज के मरीज़ को अपने पैरों को नमी से बचाना बहुत ज़रूरी है। पैरों में कम चिकनाई वाली ग्रंथियां होती हैं जो उन्हें ड्राई करती हैं और उनमें दरारें पड़ सकती हैं। इन दरारों में दर्द तो रहता ही है, बारिश के मौसम में इनसे इंफेक्शन के चांस भी रहते हैं इसलिए उन्हें रोज़ स्क्रबर से साफ करके तौलिये से सुखा कर माॅश्चराइजिंग क्रीम ज़रूर लगानी चाहिए। जिससे वो ड्राई न रहें और उनमें दरारें न पड़ें।
0 बारिश में भीगे पैरों को साफ पानी में कुछ बूंदें डिटाॅल की डाल कर अच्छी तरह धोकर सुखाएं। जरूरी हो तो टाॅवल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। पैरों की उंगलियों के बीच वाले हिस्सों को इंफेक्शन से बचाने के लिए एंटी बैक्टीरियल टेलकम पाउडर लगाएं। उसके बाद पैरों को पंखे के नीचे कम से कम 5 मिनट ज़रूर रहने दें। इससे पैरों का बैक्टीरिया और बदबू से बचाव हो सकेगा।
0 बारिश के दौरान पैरों के नाखूनों में अवांछित गंदगी से बचने के लिए समय-समय पर ट्रिम करते रहें। काटते वक्त ध्यान रखें कि इन्हें चौकोर शेप में काटें जिसमें कोने न हों। इससे जूतों या जुराबों में अटककर नाखून में किसी तरह का जख्म होने की आशंका नहीं रहती। डायबिटीज के मरीज़ों के लिए पैरों में जख्म होना खतरनाक हो सकता है।
0 मानसून के दौरान जहां तक हो सके, बंद जूते न पहनें क्योंकि इनसे पैरों में पसीना आ सकता है और बारिश का पानी अंदर रह सकता है। नमी और ठंड के कारण ट्रेंच फीट, फंगल इंफेक्शन हो सकते हैं। इनके बजाय क्रोक्स, फ्लोटर्स, फ्लिप फ्लॉप या फिर सैंडलनुमा खुले वाॅटरप्रूफ जूते पहनना ही उपयुक्त है। जूते आरामदायक होने चाहिए। आगे का हिस्सा चौड़ा होना चाहिए।
0 जूतों की रोज़ाना अंदर-बाहर से सफाई जरूरी है ताकि उनमें नमी और मिट्टी न रह जाए। नमी में जूतों में बैक्टीरिया पनपते हैं। धूप निकलने पर कुछ देर धूप में जरूर बैठें।
(सर गंगा राम अस्पताल, दिल्ली के डॉक्टर मोहसिन वली से बातचीत पर आधारित)