अंतर्राष्ट्रीय जगुआर दिवस जंगलों और जैव विविधता की सुरक्षा पर ध्यान खींचता है, संकट और संरक्षण की वैश्विक पुकार है।
जगुआर विश्व की उन अद्वितीय और रहस्यमयी बड़ी बिल्ली प्रजातियों में से है, जिनकी उपस्थिति जंगलों के स्वस्थ होने के साथ-साथ जैव विविधता की भी प्रतीक मानी जाती है। मगर आज यह प्रजाति खतरे में है। आवास विनाश, अवैध शिकार और मानव तथा वन्यजीव संघर्ष के कारण इसका अस्तित्व संकटग्रस्त हो चुका है। इसलिए जगुआर संरक्षण के प्रयासों को वैश्विक स्तर पर एकजुटकर जागरूकता बढ़ाने, वैज्ञानिक प्रयासों को समर्थन देने तथा नीति निर्माण में मजबूती लाने के लिए 29 नवंबर को हर साल अंतर्राष्ट्रीय जगुआर दिवस मनाया जाता है।
इस दिवस को मनाए जाने की परंपरा 2018 से शुरू होती है, जब यूएनईपी (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम), जैव विविधता संरक्षण संगठनों और लैटिन अमेरिकी देशों ने आधिकारिक रूप से घोषित किया था, जिसके प्रमुख उद्देश्य —
- जगुआर के तेजी से घटते प्राकृतिक आवास की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करना।
- अवैध शिकार, अवैध व्यापार और तस्करी के विरुद्ध जागरूकता फैलाना।
- जगुआर के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
- वन संरक्षण, नदी घाटियों और वर्षा वनों के संरक्षण को बढ़ावा देना ताकि जगुआर के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बना रहे।
- हैबिटैट हेल्प सेंटर मॉडल को प्रोत्साहित करना, जिसमें जगुआर के लिए सुरक्षित गलियारे बनाए जाते हैं।
जगुआर को भारत में यूं तो आमतौर पर जगुआर ही कहते हैं, पर कुछ लोग इसे अमेरिकी चीता या अमेरिकी तेंदुआ भी कह देते हैं। क्योंकि मूलतः यह अमेरिकी महाद्वीप में पाया जाता है और देखने में बिल्कुल भारतीय तेंदुए जैसा लगता है। हालांकि इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसे चीता कहना गलत है, क्योंकि यह चीता प्रजाति का नहीं है। यह भारतीय तेंदुए से आकार, शक्ति और व्यवहार में भी अलग है, इसलिए सही तो यही होगा कि इसे हम हिंदी में भी जगुआर ही कहें। क्योंकि इसे तेंदुआ कहने से भारतीय तेंदुए और इसकी विशेषता में गड्डमड्ड हो सकता है।
बहरहाल, दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में भी जगुआर दिवस का महत्व इसलिए है, क्योंकि भारत में भी बाघ संरक्षण (प्रोजेक्ट टाइगर) वास्तव में टाइगर को बचाने वाला एक सफल मॉडल इस्तेमाल में लाया जाता है। इसी तरह जगुआर को भी प्रोजेक्ट बनाकर संरक्षित करने की बात चल रही है। भारत में बाघ, तेंदुआ और हिम तेंदुआ की जो प्रजातियां हैं, वे मूलतः जगुआर जैसी नहीं हैं—बस कुछ मिलती-जुलती हैं। लेकिन जगुआर के संकट से हम इसी प्रजाति की भारतीय बड़ी बिल्लियों के संरक्षण के बारे में बेहतर सोच सकते हैं। यही वजह है कि भारतीय वन्यजीव विशेषज्ञ इन देशों के जगुआर संरक्षण प्रोजेक्ट से बहुत कुछ सीखते हैं और लैटिन अमेरिकी विशेषज्ञ भारत के प्रोजेक्ट टाइगर से बहुत कुछ सीखने की कोशिश करते हैं।
बहरहाल, अंतर्राष्ट्रीय जगुआर दिवस अन्य वन्य दिवसों जैसा नहीं है, बल्कि यह संकेतक है इस बात का कि हमारा ग्रह किस तरह के वन्य जीवन से संकटग्रस्त होता जा रहा है। अतः हमें उष्णकटिबंधीय जंगलों की रक्षा करनी चाहिए। स्वच्छ नदियों का भविष्य सुरक्षित करना चाहिए और जैव विविधता के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। अगर हम इस दिवस के चलते ये बातें सीखते हैं, तो भारत के लिए भी जगुआर दिवस का वैसा ही महत्व है, जैसा दुनिया के अन्य विशेषकर लैटिन अमेरिकी देशों के लिए है। इ.रि.सें.

