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नजरिया बदलने से टलेगा गुस्सा

एंगर मैनेजमेंट
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दीप्ति अंगरीश

माना कि गुस्से पर काबू करना मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन तो नहीं है। बेशक यह प्राकृतिक भावना है। घर हो या बाहर, आप तो कोई बात पसंद नहीं आई, तो बिना सोचे-समझे सामने वाले को कुछ भी बोल देते हैं। जब बात ठंडी होती है, तब अपने पर गुस्सा आता है कि ऐसा-वैसा क्यों बोला? बात यहीं खत्म नहीं होती। अगली बार आवेश में आएं तो उसे काबू करें, क्योंकि यह आपको अंदर से खोखला कर देता है। मसलन, मन अशांत रहता है, काम में मन नहीं लगता, रात्रि में नींद नहीं आती, मन हमेशा निगेटिव सोचता है, तनाव बना रहता है और गुस्से से चेहरे के हाव-भाव बिगड़ते हैं। धीरे-धीरे उसका प्रभाव हमारी सेहत व चेहरे पर दिखाई देने लगता है।

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क्यों आता है गुस्सा?

गुस्सा आने के भी कई कारण हैं। कुछ लोग स्वभाव से क्रोधी होते हैं। कई लोगों की नजर में छवि गुस्सैल की बन जाती है। सोचते बाद में हैं, पहले रिएक्ट करते हैं, कुछ परिस्थितियों के सामने अपने मन मुताबिक कुछ नहीं कर पाते तो उन्हें क्रोध आता है। कुछ लोग दूसरों को आगे बढ़ता देख मन ही मन ईर्ष्या करते हैं और स्वभाव क्रोधी हो जाता है। कई बार दूसरे लोग आपको इतना इरिटेट करते हैं जिससे आप अपना आपा खो बैठते हैं। कुछ लोग गुस्से को दबाए रखते हैं और अचानक आप गुस्सा दूसरे पर निकाल देते हैं। कभी-कभी आप मेहनत करते हैं, उसका लाभ दूसरे उठा लेते हैं, तब भी आप को गुस्सा आता है। कई बार आप अपनी बात ठीक तरीके से सामने नहीं रख पाते और दूसरा आपको गलत समझता है, तब भी गुस्सा आता है। परिवार में उचित मान-सम्मान न मिलने के कारण, उम्मीद पूरी न होने पर, अधिक काम करने पर और शारीरिक मजबूरियां होने पर भी गुस्सा आ सकता है।

शहर की जीवनशैली से कड़वाहट

महानगरों में सड़कों पर जाम का लगना और आपका सुबह-शाम सड़कों पर होना रोजमर्रा का जीवन है। हाल ही में कई शोध पत्र आया है, जिसमें कहा गया है कि जाम बड़े महानगरों में तनाव और बढ़ती चिंता का कारण बन सकता है। जब हम लगातार प्रदूषण वाले तत्वों, शोर और दूषित हवा के संपर्क में रहते हैं तो शरीर में तनाव हार्मोन बढ़ने लगते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि प्रदूषण में रहने और बाहर निकलने पर बारीक पार्टिकल्स खासकर पीएम 2.5 कण न्यूरोजेनेरेटिव डिसऑर्डर (Neurodegenerative Disorders) यानि भ्रम की स्थिति और अल्जाइमर जैसी बीमारियों का शिकार बनाने का खतरा पैदा करते हैं। इसके अलावा मेट्रो सिटीज में बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से नींद पर भी असर पड़ रहा है। इन महानगरों में रहने वाले लोगों का स्लीप पैटर्न खराब हो रहा है। नतीजा, आपको कई बार जरा सी बात पर भयंकर गुस्सा आता है।

जब आए गुस्सा तो बदलें खुद को

आप दूसरों को अपने अनुरूप ढाल नहीं सकते, लेकिन खुद को बदल सकते हैं। जीवनशैली और सोच का पैटर्न बदलकर यह संभव है। अगली बार जब गुस्सा आए, तो इसे अपने पर हावी नहीं होने दें। प्रयास शुरू कर दें कि आप अपनी ऊर्जा को पॉजिटिव खर्च करें जैसे खेलकर, व्यायाम करके और अपनी रुचियों को आगे बढ़ाकर। रोज सुबह 10 मिनट तक ब्रीदिंग व्यायाम भी करें। इससे नकारात्मक सोच बाहर निकलती है और सकारात्मक सोच अंदर जाती है। गुस्सा क्यों आया है? इस पर अपने मन की बातों को डायरी में लिखें। ऐसा करने से आपको अहसास होगा कि मैं इसमें कहां स्टैंड करता हूं, गुस्सा कितनी देर में आता है, कितनी बार आता है और धीरे-धीरे गुस्सा कम होता जाएगा।

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