लाल पत्थरों में बसा फतेहपुर सीकरी अकबर के सपनों का शहर है, जहां इतिहास आज भी सांस लेता है। बुलंद दरवाजा, जोधाबाई महल, अनूप तालाब और शेख सलीम चिश्ती की दरगाह इसकी पहचान हैं। यह जगह मुगल स्थापत्य, संगीत और सूफी परंपरा का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है।
आगरा जाने वाले हर पर्यटक को ताजमहल के दीदार के साथ-साथ फतेहपुर सीकरी जरूर घूमने की सलाह दी जाती है। फतेहपुर सीकरी के किले की भव्यता आज भी देखने लायक है। इसे मुगल बादशाह अकबर के सपनों का शहर कहा जा सकता है। इसके नाम का अर्थ है ‘विजय का शहर’। किले की इमारतों पर हिंदू-मुस्लिम कारीगरी का अनूठा तालमेल झलकता है। आज फतेहपुर सीकरी भले ही सुनसान है, लेकिन कभी यह हिंदुस्तान की गौरवमयी राजधानी रहा है। इसकी स्थापना करीब 450 साल पहले मुगल बादशाह अकबर ने 1569 से 1585 के बीच करवाई थी।
फतेहपुर सीकरी को किलाबंद शहर कहा जा सकता है। हालांकि इसे अधिक समय तक मुगल हुकूमत की राजधानी बनने का गौरव नहीं मिला, लेकिन आज भी यह अनूठे स्थापत्य कला का नमूना पेश करती है। बुलंद दरवाजा, बादशाही दरवाजा, पंच महल, जोधाबाई महल और बीरबल भवन सीकरी की प्रमुख निशानियां हैं। दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, अनूप तालाब और दौलतखाना भी देखने योग्य हैं। सारा किला लाल पत्थरों से बना है। यहीं बीरबल की हंसी-ठिठोली गूंजती थी और तानसेन के रसमय संगीत से वातावरण सराबोर हो उठता था।
अनूप ताल और तानसेन के राग
सबसे खास है अनूप तालाब। यह एक छोटा-सा ताल है, जो छोटे-छोटे पुलों से जुड़ा है। यहीं तानसेन अपने संगीत से दरबार को मंत्रमुग्ध कर देते थे। ताल के बीचोंबीच स्थित मंच पर तानसेन दिन में चार अलग-अलग राग गाते थे। पर्यटकों को घुमाने वाले गाइड भी रस लेकर कई कहे-अनकहे किस्से सुनाते हैं। मिसाल के तौर पर कहा जाता है कि तानसेन ने अपने रागों से अकबर की बेटी मेहरून्निसा का मन मोह लिया था और उससे विवाह किया था। एक बार राग मेघ मल्हार गा कर तानसेन ने बारिश करा दी थी, और कहा जाता है कि उनका निधन राग दीपक गाते हुए आग से जलने से हुआ था। हालांकि इन कथाओं के ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलते।
इसी किले में एक छोटी-सी इमारत और है, जिसका नाम है ‘आंख मिचौली’। कहते हैं कि यह अकबर की सबसे पसंदीदा जगह थी। यहीं वे अपनी बेगमों के साथ खेल खेला करते थे। किले में प्रवेश 175 फुट ऊंचे बुलंद दरवाजे से होता है। कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा एशिया का सबसे ऊंचा फाटक है। दरवाजे तक पहुंचने के लिए 52 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। दरवाजे पर पुराने जमाने के किवाड़ आज भी शोभा बढ़ाते हैं।
दरगाह पर मन्नत
ऊंची चारदीवारी के बीचोंबीच सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है। इतिहास बताता है कि शेख सलीम चिश्ती ने बादशाह अकबर और उनकी हिंदू बेगम जोधाबाई को पुत्र रत्न का आशीर्वाद दिया था। पीर बाबा के नाम पर ही अकबर ने अपने बेटे का नाम सलीम रखा। यही नहीं, उन्होंने शेख सलीम चिश्ती के सम्मान में यहां पूरा नया शहर बसाया।
आज भी अनेक भक्त शेख सलीम चिश्ती साहब की दरगाह पर पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगते हैं। विशाल बरामदे में सफेद संगमरमर से बनी दरगाह में भक्त गुलाब के फूल और चादर चढ़ाते हैं तथा संगमरमर की जालियों पर पवित्र धागा बांधते हैं। उन्हें विश्वास है कि उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी। दरगाह की जालियां संगमरमर को बारीकी से नक्काशी कर बनाई गई हैं और हर जाली का डिजाइन दूसरी से अलग है।
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह सफेद चमकते पत्थरों से निर्मित है। यहां आज भी कव्वालियों की महफिलें होती रहती हैं। हर साल रमजान के पावन महीने में दरगाह पर उर्स मुबारक मनाया जाता है। पास ही एक विशाल जामा मस्जिद है, जिसे मक्का की मस्जिद की तर्ज पर बनाया गया बताया जाता है। इसका डिजाइन हिंदू और पारसी वास्तुकला से प्रेरित है। यह मस्जिद इतनी बड़ी है कि इसमें एक लाख लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं।
शूकरी से फतेहपुर सीकरी तक
कभी यह सीकरी नाम का छोटा-सा गांव था, जिसे मुगल बादशाह अकबर ने नहीं, बल्कि बाबर ने खोजा था। यहीं बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया था। अपनी विजय की खुशी में उसने गांव का नाम ‘शूकरी’ रखा, जिसका अर्थ है ‘शुक्रिया’। बाद में नाम परिवर्तित होकर ‘सीकरी’ हो गया। सन् 1569 में गुजरात पर विजय प्राप्त करने के बाद अकबर ने इस शहर को बसाया।
ऐतिहासिक तथ्य है कि बादशाह अकबर की कोई औलाद नहीं थी। तब उन्होंने अपनी एक बेगम के साथ पैदल अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जाकर दुआ मांगी। रास्ते में उन्होंने मशहूर सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से भी आशीर्वाद लिया। शेख सलीम चिश्ती ने भविष्यवाणी की कि अकबर के तीन पुत्र होंगे। अकबर ने अपने पहले पुत्र का नाम सलीम रखा और राजधानी सीकरी बसाने का निश्चय किया। लेकिन बाद में पानी की कमी के कारण उसे अपना निर्णय बदलना पड़ा। करीब 16 साल में बने इस किले में अकबर केवल 14 वर्ष ही रहे।
पहले आगरा, फिर फतेहपुर सीकरी
फतेहपुर सीकरी जाने से पहले अधिकांश पर्यटक आगरा में ताजमहल देखने पहुंचते हैं। आगरा उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में यमुना नदी के किनारे बसा है। दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 200 किलोमीटर है। हवाई यात्रा से लगभग 35 मिनट में आगरा पहुंचा जा सकता है। ट्रेन से यह यात्रा 2 घंटे में पूरी होती है—शताब्दी ट्रेन नई दिल्ली से आगरा कैंट तक केवल 2 घंटे में पहुंचा देती है। सड़क मार्ग से दिल्ली से आगरा पहुंचने में करीब साढ़े तीन घंटे लगते हैं।
आगरा से फतेहपुर सीकरी की दूरी लगभग 36 किलोमीटर है, जो एक घंटे में तय की जा सकती है।
यदि पक्षियों की दुनिया से रूबरू होना चाहें, तो आगे भरतपुर जाना भी सुविधाजनक है।
सर्दियों में फतेहपुर सीकरी घूमना सबसे उपयुक्त रहता है। मानसून के दौरान यहां की सैर में बाधाएं रहती हैं, जबकि गर्मियों में यहां घूमना कठिन होता है—लू के थपेड़ों के बीच पत्थर की गर्म जमीन पर चलते-चलते पैर झुलस जाते हैं।

