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गर्मियों में अपनाएं ठंडा-मीठा खानपान

हम गर्मी को दूर तो भगा नहीं सकते, लेकिन खानपान और रहन-सहन के तरीकों में परिवर्तन कर अपने आप को इस प्रकार ढाल सकते हैं कि इस मौसम का परेशानी भरे प्रभाव कम से कम हों। इस समय मीठी, ठंडी...
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हम गर्मी को दूर तो भगा नहीं सकते, लेकिन खानपान और रहन-सहन के तरीकों में परिवर्तन कर अपने आप को इस प्रकार ढाल सकते हैं कि इस मौसम का परेशानी भरे प्रभाव कम से कम हों। इस समय मीठी, ठंडी और तरल वस्तुएं अधिक लेनी चाहिए। शर्करा मिश्रित सत्तू, घी और दूध के साथ चावल का सेवन गर्मी के मौसम में लाभकारी है।

प्रो. अनूप कुमार गक्खड़

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आकाश का निर्मल और सुगन्धित वातावरण जब गर्म वायु से व्याप्त हो जाए, कोयल और भंवरों के गुंजन के स्थान पर पक्षी जल की तलाश में इधर-उधर घूमते दिखायी दें। पलाश, मौलश्री, आम और अशोक के वृक्षों से भरे उपवन और जंगलों में पुष्प शोभायमान होना बंद हो जाएं, छोटे वृक्ष, तृण और लताएं नष्ट होने लगें, पत्ते झड़ने लगें और नदियों में जल कम हो जाए, तो संकेत होते हैं कि

बसंत के मौसम का स्थान गर्मी के मौसम ने ले लिया है।

गर्मी का प्रभाव हमारे शरीर पर भी

गर्मियों के मौसम में सूर्य की प्रखर किरणें संपूर्ण जगत के साथ-साथ मनुष्य के शरीर को भी प्रभावित करती हैं। सूर्य अपनी तीक्ष्ण किरणों से नमी का शोषण कर लेता है। मनुष्य के शरीर में भी जलीय अंश कम होने लगता है और वात दोष की वृद्धि होने लगती है। अच्छा-भला व्यक्ति भी मौसम के प्रभाव के कारण कष्ट में आ जाता है।

कैसे रहें इस मौसम में

हम गर्मी को दूर तो भगा नहीं सकते, हां, हम खानपान और रहन-सहन के तरीकों में परिवर्तन कर अपने आप को इस प्रकार ढाल सकते हैं कि इस मौसम का कष्टकारी प्रभाव हम पर कम से कम हो। इस मौसम के कारण शरीर में जो परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं, उन्हीं के अनुरूप हमें अपना आहार और विहार व्यवस्थित कर लेना चाहिए। इस समय मीठी, ठंडी और तरल वस्तुएं अधिक लेनी चाहिए। ठंडी वस्तुएं और शर्करा मिश्रित सत्तू खाने से, घी और दूध के साथ चावल खाने से गर्मी के मौसम में कोई कष्ट नहीं होता। नए मिट्टी के बर्तन में रसाला या श्रीखंड, गुड़ के साथ आम के रस को पका कर तेल और सौंठ से मिलाकर अनार, अंगूर, फालसा, जामुन के रस से बना पाक, और शर्बत का सेवन करने से गर्मी का मौसम आनंदमयी हो जाता है। चंद्रमा और तारों से शीतल किए गए दूध में शर्करा डाल कर गर्मियों में पीने से इस मौसम का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। अंजीर, फालसा, नारियल के फलों का प्रयोग भी शरीर के शोषण को कम करता है।

ताड़ के पत्तों से निर्मित पंखों से हवा, सुगंधित वस्त्रों का प्रयोग, और ऐसे स्थान में रहने से जहां पानी के फव्वारे चलते हों, और रात में जल में कपूर मिलाकर रखकर अगले दिन उसी का प्रयोग करने का निर्देश आयुर्वेद के ग्रंथों में हैं। शरीर पर चंदन का लेप करने से भी गर्मी के मौसम का असर कम हो जाता है।

इनसे बचें तो गर्मी भी है आनंददायक

गर्मी का मौसम अपने आप में ही पीड़ादायक होता है। अज्ञानता वश अगर हम उन वस्तुओं का सेवन करें जो शरीर को और सुखाने का काम करें, तो गर्मी का मौसम हमारे लिए परेशान करने वाला बन जाएगा। अतः इस मौसम में नमकीन, खट्टी, गर्म और तीखी वस्तुओं से यथासंभव बचना चाहिए। इस ऋतु में शराब से परहेज करें। शहद का सेवन भी गर्म काल में नहीं करने का निर्देश आयुर्वेद के ग्रंथों में किया है।

लाभकारी भी है गर्मी का मौसम

नींद किसे नहीं प्रिय होती? ऐसे व्यक्तियों के लिए गर्मी का मौसम वरदान साबित होता है। भारत में आने वाले छः मौसमों में से अकेला गर्मी का मौसम ही ऐसा है जिसमें दिन में सोना लाभकारी है। इस काल में रातें छोटी होती हैं और दिन लंबे होते हैं। मनुष्य के शरीर में रूखापन बढ़ जाता है जोकि दिन में सोने से ठीक हो जाता है। शेष काल में अगर कोई व्यक्ति दिन में सोता है तो उसे पित्तज और कफज रोग होते हैं।

पानी खूब पिएं

यह संदेश हम बचपन से ही किसी न किसी माध्यम से यदा-कदा प्राप्त करते आ रहे हैं। पर आयुर्वेद के ग्रंथों में केवल दो ऋतुएं ही ऐसी बतायी गई हैं जिनमें जितनी इच्छा हो उतना पानी पिया जा सकता है। एक गर्मियों की ऋतु और एक शरद ऋतु। इस समय आप जितना भी पानी पी सकते हैं।

सदाबहार नियमों को न बदले

बेशक बसंत में रूखा भोजन करना हमारी प्राथमिकता रहता हो हो, लेकिन गर्मियों में हम ठंडी तासीर वाली वस्तुओं का ही सेवन करते हैं। पर कुछ निर्देश ऐसे हैं जिनका पालन हम बसंत और गर्मियों में भी करते हैं। जैसे कि आयुर्वेद के ग्रंथों में बसंत के मौसम में झरने और कुएं के जल के सेवन का निर्देश है। गर्मियों में भी इन्हीं का जल पीने को शास्त्रकारों ने लिखा है। इसी तरह बसंत के मौसम में दही न खाने का जो निर्देश है, उसी का पालन गर्मियों में करने को कहा गया है।

भारत ही ऐसा देश है जिसकी भौगोलिक स्थिति इस प्रकार की है कि हम एक वर्ष में छः ऋतुओं का आनंद ले सकते हैं। ले भी क्यों न, जब हमारे ऋषि-मुनियों ने विभिन्न प्रभाव वाली सभी ऋतुओं में उनके अनुरूप ही खानपान और रहन-सहन की व्यवस्था बना रखी है।

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