अणुशक्ति, आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का अनूठा संगम
रावतभाटा, राजस्थान का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण शहर है, जो अणुशक्ति और आध्यात्मिकता का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यहां स्थित राजस्थान परमाणु ऊर्जा केंद्र और ऐतिहासिक बाड़ौली मंदिर समूह इसे वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाते हैं। चंबल नदी के किनारे बसा यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य और विज्ञान में योगदान दोनों के लिए प्रसिद्ध है।
नयनतारा
कोई शहर छोटा हो या बड़ा या चाहे कोई कस्बा ही क्यों न हो। हर शहर, हर महानगर और हर कस्बे की अपनी एक निजी पहचान, एक निजी विशेषता होती है,जो हर किसी से अलग होती है। रावतभाटा, जो अणुशक्ति और आध्यात्मिकता का संगम है, एक ऐसा शहर है जहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ धार्मिकता का भी महत्व है।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित रावतभाटा शहर, दुनिया के नक्शे में अपनी एक अलग ही अहमियत रखता है। शिक्षा नगरी कोटा से महज 50 किमी दूर स्थित रावतभाटा वैश्विक स्तर पर जहां मुख्यतः परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान से जुड़ी वजहों से प्रसिद्ध है। वहीं देश के भीतर इसकी ख्याति 9वीं शताब्दी में निर्मित बाड़ौली मंदिर समूह के कारण है। ये मंदिर इसे भारत की रहस्यमयी आध्यात्मिक नगरी होने का गौरव देते हैं। साथ ही यह छोटा-सा खूबसूरत शहर चंबल नदी के किनारे बसा होने और चारों ओर से हरियाली व पहाड़ियों से घिरा होने के कारण श्राजस्थान का स्वर्गश् कहलाता है।
अपनी प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए विख्यात रावतभाटा शहर देश के सामरिक, वैज्ञानिक व औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। भारत के शहरी एटलस में रावतभाटा का इसलिए भी विशेष स्थान है, क्योंकि यहां स्थित राजस्थान परमाणु ऊर्जा केंद्र और भारी पानी संयंत्र, अपनी तरह के विशिष्ट संस्थान हैं जो भारत की विश्व पटल पर हैसियत बनाते हैं। ये संयंत्र भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और देश की ऊर्जा सुरक्षा में योगदान करते हैं। रावतभाटा परमाणु ऊर्जा, अनुसंधान और अपने औद्योगिक योगदान के कारण विश्वस्तर पर प्रसिद्ध है। यह भारत के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण परमाणु ऊर्जा केंद्रों में से एक है। इन दिनों यह अपने पीएचडब्ल्यूआर प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर, संयंत्र, इसकी उन्नत टेक्नोलॉजी और फ्यूल उत्पादन के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार चर्चा में है। रावतभाटा एक परमाणु ऊर्जा हब में तब्दील हो चुका है, जो विकसित भारत का ऊर्जा भविष्य है। समूचे देश में परमाणु ऊर्जा के भविष्यकालिक लक्ष्य यहीं होने वाले अनुसंधानों से पूरे होंगे।
रावतभाटा से होकर बहने वाली चंबल नदी में बना राणा प्रताप सागर बांध और इसके आसपास का क्षेत्र पिकनिक और फोटोग्राफी के लिए दस्तावेजी हो जाता है। मगर यह बात सही है कि इस विशष्ट नगरी का सबसे बड़ा लैंडमार्क राजस्थान परमाणु ऊर्जा केंद्र ही है, जो भारत का प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र है। यह संयंत्र न केवल ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि शहर की पहचान का भी एक प्रमुख हिस्सा है। भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन में रावतभाटा का योगदान अकेले 30 फीसदी से ज्यादा है। भारत में परमाणु ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता 7,480 मेगावाट है। जो कि भारत के कुल परमाणु ऊर्जा उत्पादन के 30 अनुपात या उससे कुछ ज्यादा है। भविष्य में रिएक्टर विस्तार के साथ यह योगदान और बढ़ेगा। यह छोटा-सा शहर राष्ट्रीय सुरक्षा और परमाणु नीति में भी अपनी ख़ास भूमिका निभाता है। इसकी भौगोलिक स्थिति भी इसे ख़ास बनाती है, खासकर सुरक्षा की दृष्टि से। यहां रक्षा अनुसंधान और परमाणु ऊर्जा आयोग की कुछ विशेष प्रयोगशालाएं भी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के पीएचडब्ल्यूआर आधारित परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का देशभर में मुख्य केंद्र है। तेजस फाइटर जेट्स और पनडुब्बियों के लिए परमाणु फ्यूल अनुसंधान से भी इसका गहरा संबंध है।
इस तरह देखा जाये तो रावतभाटा भारत के परमाणु ऊर्जा मानचित्र में एक ‘स्पाइन’ की तरह है। यह न केवल देश के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा केंद्रों में से एक है, बल्कि यह भविष्य के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों, अनुसंधानों और फ्यूल निर्माण का भी प्रमुख केंद्र है। आने वाले सालों में रावतभाटा की भूमिका और भी बढ़ेगी, खासकर भारत के 700 मेगावाट प्रेशराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर विस्तार कार्यक्रम के तहत। इ.रि.सें.