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पेड़ की शाखाओं पर थैली में पलता एक नन्हा संसार

थैली वाला मेढ़क

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थैली वाले मेढ़क की अनोखी जीवन शैली जानिए, जो अपनी पीठ पर बच्चों को पालता है और बिना पानी के भी पेड़ों पर जीवित रहता है—प्रकृति का अद्भुत करिश्मा!

थैली वाला मेढ़क नई दुनिया का मेढ़क है। यह दक्षिणी अमेरिका के अनेक भागों में पाया जाता है। इस मेढ़क की खोज सन‌् 1843 में हुई थी। जीव वैज्ञानिकों के अनुसार थैली वाला मेढ़क एक सामान्य वृक्ष मेढ़क है। थैली वाले मेढ़क की अनेक जातियां हैं। अधिकांश थैली वाले मेढ़क आकार में बहुत छोटे होते हैं। इनकी लंबाई आधा सेंटीमीटर से लेकर तीन सेंटीमीटर तक होती है, किंतु कुछ जातियों के थैली वाले मेढ़क दस सेंटीमीटर तक लंबे हो सकते हैं। थैली वाले मेढ़क का रंग मुख्य रूप से हरा होता है एवं शरीर पर कत्थई रंग के धब्बे, चित्तियां अथवा धारियां होती हैं। इस प्रकार के रंग होने के कारण इनमें कैमाफ्लाज बहुत अधिक बढ़ जाता है तथा यह आसपास के पर्यावरण से पूरी तरह मिल जाते हैं। यही कारण है कि वृक्षों की शाखाओं और पत्तियों पर बैठा हुआ वृक्ष मेढ़क सरलता से दिखाई नहीं देता। थैली वाले मेढ़क की शारीरिक संरचना वृक्ष मेढ़क से बहुत मिलती-जुलती है। सामान्य वृक्ष मेढ़क के समान ही थैली वाले मेढ़क के पंजों की उंगलियों के सिरों पर गद्दीदार चूषक होते हैं, जिनकी सहायता से ये वृक्षों की शाखाओं अथवा पत्तियों से लटके रहते हैं, किंतु थैली वाले मेढ़क के पैर सामान्य वृक्ष मेढ़क की अपेक्षा अधिक मजबूत और शक्तिशाली होते हैं।

थैली वाले मेढ़कों में अंडों और बच्चों की देखभाल का एक विशिष्ट ढंग होता है। इनमें अलग-अलग जातियों की मादाओं द्वारा दिए जाने वाले अंडों की संख्या में काफी भिन्नता होती है। छोटी मादाएं प्रायः 4 से लेकर 7 तक योल्क से भरे अंडे देती हैं, किंतु बड़ी मादाएं 200 तक अंडे दे सकती हैं। सभी मादाएं अपने अंडों को पीठ पर बनी थैली में डाल लेती हैं। कुछ मादाएं यह कार्य स्वयं करती हैं और कुछ में अंडों को मादा की थैली में डालने का कार्य नर करता है। इनके अंडों का पोषण थैली के भीतर ही होता है तथा ये थैली के भीतर तब तक रहते हैं, जब तक ये छोटे से मेढ़क नहीं बन जाते। किंतु अधिक अंडे देने वाली मादाएं टैडपोल अपनी थैली में नहीं रखतीं और इन्हें बाहर निकाल देती हैं। ये टैडपोल अपना कुछ समय पानी के भीतर व्यतीत करते हैं और मेढ़क बनने के बाद पानी से बाहर आ जाते हैं तथा वृक्षों पर रहने लगते हैं। थैली वाले मेढ़क का समागम और प्रजनन बड़ा रोचक होता है। सामान्य मेढ़कों की तरह इनमें भी बाह्य समागम तथा बाह्य निषेचन होता है, किंतु असामान्य ढंग के समागम एवं प्रजनन के कारण थैली वाले मेढ़कों को अंडे देने के लिए पानी के भीतर नहीं जाना पड़ता।

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समागम काल में नर-मादा दोनों एक-दूसरे की ओर आकर्षित होते हैं तथा मादा के निकट आने पर नर उसे कसकर पकड़ लेता है और उसकी पीठ पर सवार हो जाता है। नर और मादा दोनों ही इस स्थिति में कुछ समय तक रहते हैं। इसके बाद जैसे ही मादा के अंडे निकलने वाले होते हैं, वह अपना शरीर पिछले पैरों पर इस प्रकार उठा लेती है कि उसकी पीठ सिर की ओर झुक जाती है और उसका प्रजनन अंग ऊपर की ओर हो जाता है। अब मादा की स्थिति ऐसी हो जाती है कि उसके प्रजनन अंग से अंडे निकलकर लुढ़कते हुए सीधे थैली में चले जाते हैं। नर मेढ़क मादा की पीठ पर पहले से ही सवार रहता है। जैसे-जैसे अंडे थैली के मुंह पर पहुंचते हैं, नर उन्हें अपने शुक्राणुओं से निषेचित करता जाता है। सभी अंडों के थैली के भीतर पहुंच जाने के बाद थैली का मुंह बंद हो जाता है। अब मादा की पीठ की सतह ऊपर से फूली हुई दिखाई देने लगती है। इसके बाद नर-मादा अलग-अलग हो जाते हैं। मादा की पीठ पर बनी इस थैली में ही अंडों का पोषण होता है। इन अंडों तक ताज़ी हवा पहुंचने के लिए समय-समय पर मादा अपने पिछले पैर की एक उंगली अपनी पीठ पर ले जाती है और थैली के छिद्र जैसे द्वार को खोल देती है। इससे अंडों को ताज़ी हवा मिलती रहती है।

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जैसा कि अभी-अभी बताया गया है कि अधिक अंडे देने वाली बड़ी मादा केवल अपने अंडों को ही थैली में रखकर इनका पोषण करती है। बड़ी मादाओं में थैली के भीतर अंडे रखने का कार्य नर करता है। इनमें मादा के प्रजनन अंगों से अंडों के निकलने के बाद नर इन्हें निषेचित करता जाता है और थैली के भीतर पहुंचाता जाता है। इन मादाओं के अंडे जैसे ही फूटते हैं और उनसे टैडपोल निकलते हैं, वैसे ही यह पानी के पास पहुंच जाती है और अपने पीछे के दोनों पैरों को अपनी पीठ पर रख लेती है, फिर दोनों पंजों की पहली उंगली थैली के छिद्र के भीतर डालकर उसका मुंह खोलकर चौड़ा कर देती है। इसके बाद दाहिना पैर नीचे कर लेती है और बाईं ओर से ज़ोर लगाती है, जिससे बाईं ओर के टैडपोल एक-एक करके निकलना आरंभ हो जाते हैं। इसके बाद बायां पैर नीचे कर लेती है और दाहिना पैर ऊपर करके दाहिनी ओर से ज़ोर लगाती है, जिससे दाहिनी ओर के टैडपोल निकलना आरंभ हो जाते हैं। इस प्रकार यह दो सौ तक टैडपोल निकालती है। बड़ी मादा मेढ़क प्रायः अपने अंडों को 100 दिन से लेकर 110 दिन तक अपनी थैली में रखती है। इसके बाद अंडे फूटते हैं और उनसे टैडपोल निकल आते हैं और पानी में चले जाते हैं, जहां 26 दिन में इनके पिछले पैर निकलने लगते हैं तथा इसके 19 दिन बाद आगे के पैर निकलना आरंभ हो जाते हैं और थैली से निकलने के बाद 56 दिन से 60 दिन के मध्य में छोटे से मेढ़क के रूप में दिखाई देने लगते हैं। छोटी मादाओं, अर्थात कम अंडे देने वाली मादाओं में मेढ़क का पूरा विकास मादा की थैली के भीतर ही होता है। इ.रि.सें.

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