व्यापार के साथ लोक परंपरा का दर्शनीय मंच
सोनपुर का पशु मेला एशिया का सबसे बड़ा और विश्वविख्यात मेला है, जो धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से ग्रामीण भारत की समृद्धि और परंपरा का जीवंत प्रतीक है।
आज का दौर इंटरनेट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल पेमेंट और ई-कॉमर्स का दौर है। यहां तक कि लोग अब पालतू और रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोगी पशुओं की खरीदारी के लिए भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे समय में भी सदियों से लगने वाला बिहार का सोनपुर पशु मेला न सिर्फ आज भी लग रहा है बल्कि उसका पहले की तरह आकर्षण भी मौजूद है। सोनपुर मेला जो करीब 2,000 साल पुराना माना जाता है, उसकी जो महत्ता पहले थी, आश्चर्यजनक ढंग से उसकी वही महत्ता आज भी बरकरार है। यह इस बात का सबूत भी है कि जिंदगी की कुछ बुनियादी जरूरतें और उनका आकर्षण कभी भी कम नहीं होता।
लोकजीवन से जुड़ा मेला
सोनपुर का पशु मेला न केवल पशुओं की खरीद-फरोख्त की दृष्टि से एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का अद्वितीय पशु मेला है बल्कि यह अपनी धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकी दृष्टि से भी विशिष्ट आयोजन है। यह मेला बिहार ही नहीं, पूरे भारत की ग्रामीण आत्मा और उसकी जीवनशैली का प्रतिनिधित्व भी पेश करता है। इस मेले में पशुओं का व्यापार तो होता ही है, लेकिन यह भक्ति, संस्कृति और लोक परंपराओं का भी महाकुंभ है। गंगा और गंडक नदियों के संगम पर सोनपुर में लगने वाला यह मेला अपने पीछे कई पौराणिक आख्यानों की थाती रखता है, तो ग्रामीण जीवन की परंपरा का भी सबसे विश्वसनीय स्रोत भी है। इसी कारण इस आईटी युग मंे भी यह ग्रामीण पशु मेला भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को जीवित रखे है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार
सोनपुर का पशु मेला भारत की परंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक बड़ा और धड़कता केंद्र है। इस मेले में गाय, भैंस, बैल, घोड़े, ऊंट और हाथी तक बिकते हैं और इन पशुओं की यहां खरीद-फरोख्त मौर्यकाल से होती आ रही है। यह मेला स्थानीय किसानों और पशु पालकों के लिए कमाई का एक बड़ा अवसर होता है। आज यह मेला आधुनिक डेयरी तकनीकों और पशु पालन संबंधी योजनाओं के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहां अनगिनत डेयरी उत्पादों और कृषि उपकरणों की विशिष्ट प्रदर्शनी भी लगायी जाती है। यही कारण है कि अब यह मेला सिर्फ पशु विक्रय मेला नहीं बल्कि ग्रामीण विकास का संवाद मंच बन चुका है। जहां किसानों को आधुनिक जानकारी और स्थानीय व्यापारियों को तमाम तरह के लाभ मिलते हैं।
पर्यटन और विरासत
आज के इस आईटी युग में भी अगर सोनुपर पशु मेला इस कदर लोकप्रिय है, तो इसमें पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत से दोचार होने का भी आकर्षण मौजूद है। वास्तव में सोनपुर के पशु मेले को अनुभव आधारित पर्यटन का विशिष्ट केंद्र माना जाता है। इस मेले में देश-विदेश के लाखों लोग सिर्फ बेचने, खरीदने के लिए ही नहीं आते बल्कि इस मेले की सांस्कृतिक आत्मा को जीने के लिए भी आते हैं। इस मेले में आज भी लोकनृत्यों, लोकगीतों, नुक्कड़ नाटकों, हस्तशिल्प और लोकभोजनों का हर तरफ आकर्षण मौजूद होता है। वास्तव में इस मेले में आकर हम एक ऐसे ग्रामीण भारत से रूबरू होते हैं। इसलिए विदेशी पर्यटक इस पशु मेले का भारत की ग्रामीण संस्कृति का ओपन एयर म्यूजियम भी कहते हैं। यहां का हाथी बाजार, हालांकि आज पहले के मुकाबले बहुत छोटा और विरासत के रूप में ही मौजूद है। बिहार सरकार सोनपुर मेले को हेरिटेज टूरिस्ट के रूप में भी प्रमोट करती है, जिससे स्थानीय लोगों की आय में इजाफा होता है और वैश्विक स्तर पर भारत की सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है।
परंपरा का डिजिटलीकरण
सोनपुर पशु मेला अब केवल भौतिक रूप में यहां की धरती पर ही नहीं लगता, इसका एक बड़ा और व्यापक डिजिटल संस्करण भी मौजूद है। बिहार पर्यटन विभाग की वेबसाइट, सोशल मीडिया एकाउंट और ऑनलाइन बुकिंग सुविधाओं के जरिये देशभर के लोग इस मेले से डिजिटल दुनिया में रूबरू होते हैं। वे डिजिटल तरीके से खरीद-फरोख्त भी करते हैं। एक तरह से यह डिजिटल और पारंपरिक लोकजीवन का बेहद सुंदर संगम है। सोनपुर का मेला सिर्फ व्यापार मेला नहीं बल्कि विभिन्न समुदायों के मिलने-जुलने, रिश्ते बनाने और अनुभव साझा करने का मंच भी है। इसलिए ग्रामीण समाज में यह मेला सामाजिक बंधन और लोकसंवाद की परंपरा को भी प्रोत्साहित करता है। यह लोक मेला वास्तविक सामाजिक जुड़ाव का अनुभव देता है। यहां किसान, व्यापारी, शिल्पकार, संगीतकार और लोककला सब मिलकर आम नागरिक जीवन की बेहद सतरंगी तस्वीर पेश करते हैं। यही वजह है कि आज के इस डिजिटल युग में इस मेले का आकर्षण जरा भी कम नहीं है। इ.रि.सें.
