360 डिग्री पर दुनिया को देखने की शक्तिशाली खिड़की
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी से बातचीत
आप ढाई दशक लंबी पत्रकारिता के अनुभव के बाद विश्वविद्यालय के कुलगुरु का दायित्व निभा रहे हैं, आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं?
मेरी प्राथमिकता अंतिम वर्ष के उन विद्यार्थियों पर विशेष रूप से है, जो आने वाले कुछ ही महीनों बाद देश के मीडिया संस्थानों की सेवाओं में उतरने वाले हैं। किसी अखबार, टीवी चैनल या रेडियो में। मैं स्वयं 25 साल तक लगातार मीडिया में ही रहा हूं और अधिक समय रिपोर्टिंग में। मैंने स्पेशल रिपोर्टिंग के लिए पांच साल तक लगातार आठ बार भारत घूमा है। कुछ किताबें हैं। मैं चाहूंगा कि फील्ड की चुनौतियों पर अपने विद्यार्थियों से बात करूं। उन्हें अपने अनुभवों से लाभान्वित करूं। इसलिए अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की एक संयुक्त साप्ताहिक क्लास में मैं उनके बीच नियमित रहने के लिये प्रतिबद्ध हूं। ताकि हम अपने अनुभवों को बांटें और शिक्षा केवल एकतरफा न हो। हमें यह भी पता होना चाहिए कि किसकी रुचि किस विषय में है और वहां वह क्या नया कर सकता है। साथ ही हमें उसकी तैयारी करनी है।
साल 1990 में रोपे गए एक पौधे के एक वृक्ष के रूप में आकार लेने को किस तरह देखते हैं?
विश्वविद्यालय ने साढ़े तीन दशक की यात्रा में कई पड़ाव देखें हैं। साल 1990 में एक छोटी सी इमारत से 50 एकड़ के भव्य परिसर तक की यह यात्रा उतार-चढ़ावों से भरी रही है। इसकी सफलता की बानगी बीस राज्यों के दो हजार विद्यार्थी हैं। इन तीन दशकों में यहां से निकले विद्यार्थी देश के हर मीडिया संस्थान, रेडियो, टीवी, प्रिंट, डिजिटल, विज्ञापन, सिनेमा और संचार के प्रत्येक माध्यम में डटे हुए हैं। हमारे सात पूर्व छात्रों को रामनाथ गोयनका अवार्ड मिले हैं। दो को दो-दो बार मिले हैं। मैं स्वयं इसी विश्वविद्यालय के दूसरे बैच का विद्यार्थी हूं। नए परिसर में बहुत कुछ नया करने की गुंजाइश है।
इस दौरान आप क्या कुछ नया कर रहे हैं?
नए सत्र में हम सौ साल की पत्रकारिता के कुछ यादगार फ्रंट पेजों की एक गैलरी सजा रहे हैं। सौ साल में भारत में घटी महत्वपूर्ण घटनाएं तब के अखबारों में कैसे कवर हुईं। देश भर से हमने ये महत्वपूर्ण दस्तावेज जुटाए हैं। इनमें भारत में पत्रकारिता के विकास की यात्रा भी दिखाई देगी और सरदार भगतसिंह की फांसी से लेकर स्वाधीन भारत में आपातकाल, पंजाब और कश्मीर में आतंक के विस्तार की कहानी भी। डाइंग आर्ट मान ली गई कार्टून की विधा को लेकर भी विश्वविद्यालय में आने वाले समय में एक कार्टून गैलरी दिखाई देगी। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हम एक मीडिया लैब बनाने जा रहे हैं, जहां अलग-अलग विभागों के विद्यार्थी मीडिया के विभिन्न माध्यमों की ट्रेनिंग पेशेवर विशेषज्ञों से लेंगे। हमारी कोशिश होगी कि यह एक प्रोडक्शन हाउस की तरह स्थापित हो, जहां उच्च कोटि का कंटेंट तैयार हो।
आप प्रशिक्षु छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से समृद्ध करने की दिशा में क्या कर रहे हैं?
-हमारे कई विभागों के अपने महत्वपूर्ण प्रकाशन हैं। जैसे-विकल्प, पहल, द फैक्ट फाइंडर, मीडिया मीमांसा। ये प्रिंट के प्रयोग हैं। कम्युनिटी रेडियो ‘कर्मवीर’ एक लोकप्रिय चैनल है। एमसीयू दर्शन नाम से वीडियो पत्रिका बनाते हैं। तीनों माध्यमों को हम एक प्लेटफॉर्म पर लाने का प्रयास कर रहे हैं। एक समृद्ध न्यूजरूम जहां विद्यार्थी महसूस करें कि वे किसी अखबार या टीवी के न्यूजरूम में ही हैं।
पत्रकारिता के बदलते स्वरूप को आप कैसे देखते हैं?
- दरअसल,पैंतीस साल पहले केवल प्रिंट मीडिया था। फिर टीवी चैनल आए। नेशनल, रीजनल, लोकल, स्पोर्ट्स, बिजनेस आदि अनगिनत चैनल आए। अब डिजिटल मीडिया की अपनी ताकत है। विश्वविद्यालय ने मीडिया के हर बदलते दौर के साथ स्वयं को हमकदम बनाए रखा है। अपने कोर्स और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग- दोनों स्तरों पर हर माध्यम में हम कदमताल करते रहे हैं। अब इन से भी आगे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, डीपफेक और साइबर सिक्योरिटी जैसे नए आयाम मीडिया में जुड़ रहे हैं। इसलिए हर महीने इन विषय विशेज्ञता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित विशेष वर्कशॉप्स की योजना है, जिनमें देश भर के विशेषज्ञों को बुलाएंगे और विद्यार्थियों को इनकी हर संभव व्यावहारिक ट्रेनिंग सुनिश्चित की जाएगी।
आप आने वाले समय की चुनौती को किस तरह देखते हैं?
-मैं कहता हूं कि अगले बीस साल हम सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। वर्ष 2047 में जब देश अपनी स्वाधीनता के सौ साल मनाएगा। ऐसे में मीडिया से निकले विद्यार्थी इन बीस वर्षों में बहुत खास भूमिका निभाने वाले हैं। वे अपना कैरिअर भी बनाएंगे और मीडिया को अपना योगदान भी देंगे। नए सत्र में हमारा घोष है-‘एक विश्वविद्यालय, एक विश्व।’ विश्वविद्यालय एक ऐसी जगह है जहां हम एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिए तैयार होते हैं। मीडिया में काम करते हुए केवल राष्ट्रहित हमारा ध्येय होना चाहिए। हम राष्ट्र से निरपेक्ष नहीं हो सकते। हमारा हर काम- एडिटिंग या रिपोर्टिंग, एंकरिंग या प्रोडक्शन, क्रिएटिव राइटिंग या आइडिएशन, हरेक काम में हमें अपने देश के हित को केंद्र में रखकर सोचना होगा।
पत्रकारिता के विभिन्न माध्यमों में दाखिला लेने वाले छात्रों से खास क्या कहना चाहेंगे?
-एक बात और जो मैं अक्सर मीडिया के विद्यार्थियों से कहता हूं, वो ये कि मीडिया में केवल डिग्री नहीं है। यह 360 डिग्री पर दुनिया को देखने की एक शक्तिशाली खिड़की है। यह अवसर जॉब के किसी दूसरे स्थान पर कहीं नहीं मिलेगा। यह बौद्धिक सृजन का अपार ऊर्जा से भरा हुआ क्षेत्र है। इसलिए यहां पढ़ने के लिए कुछ बड़ा सोचकर आएं, केवल एक नौकरी ही लक्ष्य न हो। बेशक मीडिया में शुरुआती कुछ साल कठिन संघर्ष के होंगे, लेकिन उसके बाद जीवन के विस्तार में एक खुला आसमान भी मिलेगा, जहां आप ऊंची उड़ानें भरेंगे। कुछ भी करें लेकिन भारत के प्रति प्रेम से भरे रहें। एक हजार सालों की यातनादायी गुलामी से निकला भारत हमसे बहुत कुछ अपेक्षा करता है।
विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम और व्यावहारिक पत्रकारिता के बीच एक बड़ा अंतर नजर आता है, क्या कहेंगे?
मैं मीडिया से आया हूं और मेरा अनुभव है कि मीडिया के न्यूजरूम और मीडिया के क्लासरूम के बीच एक दूरी है। क्लासरूम टीचिंग एक टापू पर है और न्यूजरूम की आपाधापी दूसरे टापू पर। दोनों के बीच बड़ा गैप है। मेरी कोशिश है कि यह दूरी नहीं होनी चाहिए। इसलिए तय किया गया है कि हमारे सभी विभागों के प्रोफेसर्स मध्यप्रदेश के सभी न्यूजरूम का भ्रमण करें। संपादकों और रिपोर्टरों से मिलें। यह देखें कि वहां क्या चल रहा है? हमारे स्तर पर हम पत्रकारिता के व्यावहारिक पक्ष को और मजबूत कैसे कर सकते हैं? हमें हमारी कमियां कौन बताएगा? न्यूजरूम में जाकर ही टीचिंग सिस्टम की खामियां समझ में आ सकती हैं।