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कांगड़ा की खुशनुमा वादियों में एक ऐतिहासिक गांव

प्रागपुर
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प्रागपुर एक ऐतिहासिक हेरिटेज विलेज है, जो अपनी प्राचीन इमारतों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। यहां की पत्थर की गलियां, पुरानी दुकानें और आसपास के मनोरम दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। प्रागपुर न केवल सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र है, बल्कि यहां के वॉटर स्पोर्ट्स और धार्मिक स्थल भी इसे एक आदर्श पर्यटन गंतव्य बनाते हैं।

अमिताभ स.

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हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी की गोद में धौलाधार पहाड़ों के बीचोंबीच बसा छोटा-सा हसीन शहर प्रागपुर अपनी जादुई छटाओं से हरदम बुलाता लगता है। है हेरिटेज विलेज और इसे कुथियाला सूद ने स्थापित किया था। इसे जसवान शाही परिवार के राजकुमार प्राग के लिए बनवाया था। खास बात है कि कुथियाला सूद का 300 साल पुराना खानदानी निवास आज जज कोर्ट हेरिटेज रिजोर्ट है और देखने लायक भी।

प्रागपुर की सभी प्राचीन इमारतों को यूं संवारा और सहेजा गया है कि आज भी देखते ही दंग रह जाते हैं। असल में, बीते बीसेक सालों से लुके-छुपे प्रागपुर की रंगत उभरी और निखरी है। ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ का ख्याल इधर गया और फिर धीरे-धीरे टूरिस्ट्स की रौनकें गुलजार होने लगीं। यहां सदियों पुराना बाजार तो घूमने लायक है ही, ब्यास नदी भी ज्यादा दूर नहीं है। यहां गुजारे वीकेंड में कांगड़ा के विविध रंगों से सराबोर होना अनुभव है, तो ब्यास में मछली पकड़ना दिलचस्प टाइमपास। हेरिटेज विलेज की सैर मजेदार है। अगर गाइड का साथ हो, तो सोने पे सुहागा समझिए। थोड़ी-सी फीस का भुगतान करने के बदले वह टूरिस्ट्स को चप्पे-चप्पे से वाकिफ बना देता है। पत्थरदार गलियां, पुराने मकान, सिलदार छतें, छोटी-सी पुरानी-सी दुकानें वगैरह देखने लायक हैं। करीब ही एक झरना है, जो प्रागपुर को पीने का पानी मुहैया कराता है।

पोंग डेम और ब्यास नदी पर एक से एक वॉटर स्पोर्ट्स का रोमांच और लुत्फ घुमक्कड़ियों का इंतजार करता है। है प्रागपुर से केवल 10 किलोमीटर परे। हाल के सालों में, पोंग डेम महाराणा प्रताप सागर कहलाने लगा है। पोंग डेम के आसपास किस्म-किस्म के परिन्दों का ठिकाना है। परिन्दों का सागर के पानी तक नीचे उतरना, पानी में चोंच मार कर मछली पकड़कर उड़ जाना आकर्षित करता है। टूरिस्ट भी किश्ती में सवार हो कर, पूर्व अनुमति से मछली पकड़ सकते हैं। चम्बा पट्टन भी पास ही है, प्रागपुर से महज 5 किलोमीटर दूर। इतनी रोमाटिंक जगह है कि सुदूर इंग्लैंड से आकर एक दुल्हन ने यहां के खुशनुमा माहौल में विवाह रचाया। यही नहीं, करीब 4 किलोमीटर लम्बा वॉकिंग ट्रैक है, जो बल्हार कहलाता है।

पैदल सैर ब्यास नदी के किनारे भी की जा सकती है। उधर करीब 7 किलोमीटर आगे नलेटी का निराला मज़ा यहां के सिवाय और कहां मिलेगा। जैसे-जैसे छोटे-से गांव की तरफ बढ़ते हैं, वैसे-वैसे पुदीने की मीठी-मीठी महक से तन-मन तरबतर होता जाता है। असल में, जंगल में यहां-वहां पुदीना ही पुदीना उगा है।

कम्बल, शालें और दरियां

कम्बल, शाल और दरियों की खरीदारी के लिए प्रागपुर का बाज़ार खासमखास हैं। यहां के ऊनी कपड़े और पश्मीना की शालें भी कमाल की हैं। खासियत है कि बुनकरों की छोटी-छोटी दुकानें हैं और टूरिस्ट अपने डिजाइन के कम्बल और स्काफ तक बुनवा सकते हैं। ऐसा मौका कम ही जगहों पर हाथ लगता है। हिमाचली टोपियां तो सौगात हैं। नग-नगीनों से पिरोई मालाएं, कलात्मक चाबी के छल्ले वगैरह गिफ्ट आइट्मों की भी कुछ दुकानें हैं।

यहां के पारंपरिक व्यंजन भी अपनी एक विशेषता लिये हुए है। इसलिए हिमाचल में बबरू भी टेस्ट करना बनता है। तवे पर बना आटे का चीला समझिए। धीमी आंच पर बनाते हैं, जिससे ज़्यादा टेस्टी लगता है। ऊपर देसी घी, गुड़ और काले चने डाल कर पेश करते हैं। चने का मधरा, सिड्डू और धाम हिमाचल के अन्य पारम्परिक व्यंजन हैं।

लीची, संतरा, आम और अंगूर तो यहीं के फल हैं। खाने में एकदम रसीले हैं। झरने का पानी पीने लायक है और मीठा भी है। गाय के तबेलों से ताज़ा दूध आता है, जो अपनी दिल्ली में कहां नसीब होता है।

आसपास देवियों के दर्शन

हिमाचल देवियों की भूमि है। प्रागपुर के आसपास कांगड़ा देवी और श्रीज्वालामुखी मन्दिर हैं। केवल 50 किलोमीटर की दूरी पर कांगड़ा शहर है। कांगड़ा किला सालोंसाल से सियासी हलचलों का गवाह रहा है। यहीं माता ब्रजेश्वरी मन्दिर है, जो 51 शक्तिपीठों में शुमार है। मंदिर नगरकोट कांगड़े वाली देवी के नाम से ज्यादा मशहूर है। देवी के पिंडी रूप में दर्शन होते हैं। ऊपर सोने और चांदी के कई छत्र सजे हैं।

करीब 20 किलोमीटर की ड्राइव के बाद ज्वालामुखी मन्दिर हैं। मां के दर्शन ज्योति रूप में होते हैं। चट्टान में, 9 अलग-अलग जगहों पर अखंड ज्योति बिना ईंधन के खुद-ब-खुद प्रज्वलित हैं। ज्योतियों का लगातार जगमग जलना सदियों से ज़ारी है।

कैसे पहुंचें

दिल्ली से सड़क दूरी करीब 432 किलोमीटर है। ट्रेन की सुविधा अम्ब अंदौरा रेलवे स्टेशन तक है। वंदे भारत ट्रेन दिल्ली से अम्ब अंदौरा पहुंचने में साढ़े 6 घंटे लगते हैं, और आगे करीब एक घंटे का सड़क सफर है।

घूमने-फिरने के लिए साल भर कभी भी जा सकते हैं। वैसे, मार्च-अप्रैल और अक्तूबर-नवंबर घूमने जाने के लिए बेहतर महीने हैं।

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