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कला-शिल्प का विराट उत्सव भी

शारदीय नवरात्र
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शारदीय नवरात्रि भारत में नौ दिनों तक मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्योहार है। यह केवल देवी पूजा का पर्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव, लोकनृत्य, संगीत, कला और सामाजिक मेलजोल का भी उत्सव है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग रूपों में भव्यता से मनाया जाता है।

भारत विविधताओं का देश है। यहां पर हर पर्व केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहता बल्कि वह समाज की सांस्कृतिक धड़कन बनकर हमारे लोकजीवन को गतिमान बनाये रखता है। शारदीय नवरात्रि इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। नौ दिनों का यह पर्व देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रूपों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। हालांकि, धार्मिक आस्था सभी परंपराओं के केंद्र मंे होती है। मगर इसकी छाया में कहीं लोकनृत्य, कहीं संगीत, कहीं खानपान और कहीं कला का ऐसा सामूहिक उत्स उमड़ता है कि शारदीय नवरात्रि विशिष्ट सांस्कृतिक मंच बन जाते हैं।

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ग्रामीण भारत में नवरात्रि का समय खेतों और घरों में नये उम्मीदों का मौसम लाता है। मानसून की फसलें पकने लगती हैं और किसान नये कामों की योजनाएं बनाने लगते हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के अवसर पर गांवों में मेलों, रामलीलाओं और भजन मंडलियों का विशेष धमाल देखने को मिलता है। नवरात्रि केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है बल्कि सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक उत्सव भी हैं।

इन नवरात्रि का सबसे भव्य रूप बंगाल में देखने को मिलता है, जहां इसे दुर्गा पूजा कहा जाता है। इस अवसर पर कोलकाता और बंगाल के दूसरे शहरों, कस्बों और गांव-गांव में देवी मां के पंडाल सजते हैं, जहां मां की भव्य प्रतिमाएं स्थापित होती हैं। कलाकार महीनों पहले इन प्रतिमाओं की तैयारी करते हैं। पंडालों की थीम कभी सामाजिक संदेश होती है, तो कभी किसी ऐतिहासिक स्थल की झलक पेश करती है। पूरे पांच दिन तक पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य संगीत और भोज उत्सव का आयोजन चलता है। अंत में मां दुर्गा की प्रतिमा की विसर्जन यात्रा निकलती है, जिसमें ढाक की धुन, ढोल, नगाड़े और नृत्य के साथ देवी मां को विदा किया जाता है।

इसी समय गुजरात में गरबा और डांडिया की धूम रहती है। यहां रात-रातभर नृत्योत्सव चलता है। गुजरात में विशेषकर नृत्य, देवी मां की उपासना का जरिया होता है। गरबा की गोल-गोल घूमती तालियां, रंग-बिरंगे परिधान, दीयों की मनमोहक लौ और शक्ति की भक्ति में डूबे भक्त, उत्सव के आनंदातिरेक में होते हैं। वास्तव में गुजरात में भक्ति और शक्ति के मिलन का उत्सव मनाया जाता है।

उत्तर भारत में रामलीलाएं शारदीय नवरात्रि का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आकर्षण हैं। नौ दिनों तक यहां गांव-गांव मंे, शहर-शहर में रामलीलाओं का मंचन होता है, जहां साधारण ग्रामीण जनों से लेकर मशहूर और व्यावसायिक कलाकार तक इसमें हिस्सेदारी करते हैं। मंच पर राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के रूप धरे कलाकार जब डूबकर अभिनय करते हैं, तो दर्शक भक्ति रस में डूब जाते हैं। दसवीं के दिन यहां रावण दहन के साथ शारदीय नवरात्रि का उत्सव चरम पर पहुंच जाता है। यह परंपरा न केवल समाज को एक सूत्र में पिरोती है बल्कि नई पीढ़ी को नैतिक और धार्मिक शिक्षा भी देती है।

शारदीय नवरात्रि के समय भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में विशिष्ट लोकगीतों की गूंज रहती है। कहीं देवी मां के जागरण का स्वर दमकता है, तो कहीं भजन मंडलियां पूरे वेग से भजनों में रमी होती हैं। राजस्थान और हरियाणा में घर घर देवी मां के गीत गूंजते हैं। कुल मिलाकर शारदीय नवरात्रि पूरे देश में धार्मिक, आस्था और सामाजिक भागीदारी का विशिष्ट आयोजन होते हैं। चूंकि नवरात्रि उपवास का पर्व है, लेकिन शाम ढलने के बाद थोड़ा अल्पाहार ग्रहण किया जा सकता है। इसलिए इन पूरे नौ दिनों तक अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग अल्पाहार या उपवास व्यंजनों की भरमार रहती है।

शारदीय नवरात्रि के उपवास स्वास्थ्यवर्धक होते हैं। इस समय पूरे भारत में अनगिनत किस्म के व्यंजनों की भरमार रहती है, जिससे यह पर्व खानपान की विविधता और संस्कृति का महापर्व भी बन जाता है। शारदीय नवरात्रि के समय कला और शिल्प का प्रभाव भी हर तरफ देखने को मिलता है। यह पर्व कलाकारों और शिल्पकारों के लिए बेहद प्रेरक होता है। दुर्गा प्रतिमाएं, पंडाल की सजावट, रंग-बिरंगे परिधान, आभूषण और लोकनृत्य की वेशभूषा, इस सबमें एक विशेष रचनात्मकता देखने को मिलती है। इसलिए भी शारदीय नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व न होकर कला और शिल्प का विशिष्ट उत्सव बन जाती है। इ.रि.सें.

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