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आस्था, प्रकृति और रोमांच की त्रिवेणी

चूड़धार

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चूड़धार चोटी हिमाचल प्रदेश की शिवालिक पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटी है, जहां स्थित शिरगुल देवता का मंदिर धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। यहां की ट्रेकिंग रोमांचकारी है। हाल ही में हुए मंदिर जीर्णोद्धार व महायज्ञ ने आस्था स्थली को खास बना दिया है।

यदि धार्मिक आस्था के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य और ट्रेकिंग का आनंद लेना चाहते हैं, तो हिमाचल प्रदेश के शिमला और सिरमौर जिलों की सीमा पर स्थित चूड़धार चोटी आदर्श स्थल है। यहां स्थित शिरगुल देवता का प्राचीन मंदिर, आध्यात्मिक आस्था और रोमांच का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करता है।

लोक आस्था के देवता

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शिरगुल महाराज को लेकर हिमाचल प्रदेश में अनेक दंतकथाएं और जनश्रुतियां प्रचलित हैं। मान्यता है कि उन्होंने चूड़िया नामक राक्षस के अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए उनका अवतरण हुआ था। राजगढ़ के एक राजपरिवार में जन्मे शिरगुल महाराज के दो भाई-बहन भी थे, जो आज ‘बिजट’ और ‘बिजाई’ के नाम से शिमला और सिरमौर क्षेत्र में पूजे जाते हैं। उनके पिता भुक्कड़ महाराज को सिरमौर रियासत का पराक्रमी योद्धा माना जाता है। एक कथा के अनुसार, मुगलकाल में जब कई शक्तिशाली राजा बंदी बना लिए गए, तब शिरगुल महाराज ने देवशक्ति प्रकट कर उन्हें मुगलों के चंगुल से मुक्त कराया और हिमाचल लौटे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चूड़धार में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

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आदि शंकराचार्य का योगदान

एक अन्य मान्यता के अनुसार, आदि शंकराचार्य जब अपने हिमालय प्रवास पर थे, तब उन्होंने चूड़धार की पवित्र चोटी पर शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर के निकट दो प्राकृतिक बावड़ियां हैं, जिनका जल श्रद्धालु सिर पर लगाकर मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं।

धार्मिकता के साथ रोमांच

स्थानीय भाषा में ‘चूड़चांदनी’ कही जाने वाली चूड़धार चोटी हिमाचल की शिवालिक पर्वतमाला की सबसे ऊंची चोटियों में से एक है। इसकी ऊंचाई 3,647 मीटर है। यह स्थान धार्मिक रूप से हिमाचल और उत्तराखंड के लोगों के लिए अत्यंत पूजनीय है। यहां से आसपास के गढ़वाल क्षेत्र की पर्वत चोटियां, जैसे बद्रीनाथ और केदारनाथ तक देखी जा सकती हैं, जिससे यहां का दृश्य अत्यंत मनोहारी हो जाता है।

मंदिर का जीर्णोद्धार और महायज्ञ

पिछले वर्ष चूड़धार मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पूरा हुआ, जो पिछले 20–22 वर्षों से चल रहा था। मंदिर की लकड़ी पर अद्भुत नक्काशी की गई है और इसके उद्घाटन अवसर पर पांच क्विंटल गेंदे के फूलों से सजाया गया। इस अवसर पर 52 वर्षों बाद कुरुड़ (ताज) स्थापना और शांत महायज्ञ का भव्य आयोजन हुआ। यह आयोजन कालाबाग नामक स्थान से शुरू होकर मंदिर तक पहुंचा, जिसमें शिरगुल महाराज की 12 पालकियां, स्थानीय देवी-देवताओं की झांकियां और हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

इस अनुष्ठान में शिमला, सोलन, सिरमौर के साथ-साथ उत्तराखंड से भी करीब 25,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि क्षेत्रीय लोक संस्कृति और परंपरा की जीवंत झलक भी प्रस्तुत करता है।

रोमांचक ट्रेकिंग

चूड़धार पहुंचने के लिए रोमांच से भरपूर ट्रेकिंग करनी होती है। मुख्य ट्रेक मार्ग नोहराधार से होकर जाता है, जो लगभग 18 किलोमीटर लंबा (एक रात बीच में कैंपिंग) है। पूरा ट्रेक घने जंगलों, खड़ी पगडंडियों और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर होता है, जिसे पूरा करने में दो दिन तक का समय लग सकता है। जंगल, घास के मैदान और देवदार के वृक्षों के बीच से होकर जाती है। ट्रेकिंग प्रेमियों के लिए यह एक शानदार अनुभव साबित होता है।

चूड़धार यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव है, बल्कि यह प्रकृति, साहस और आस्था का एक अद्भुत संगम है। आप शिरगुल देवता के दरबार में पहुंचकर अपनी आत्मिक शांति का अनुभव कर सकते हैं और पर्वतीय प्राकृतिक सौंदर्य में खो सकते हैं।

नोहराधार से ट्रेक की शुरुआत

नोहराधार बाजार जहां आप स्थानीय जीवन शैली से रूबरू हो सकते हैं और निवासियों से बातचीत कर सकते हैं। जैसे-जैसे आप ऊपर की तरफ चलते जायेंगे चलते-फिरते कॉल तो कर सकते हैं, लेकिन नेटवर्क भरोसेमंद नहीं हैं। यहां आप चूड़धार चोटी और बर्फ से ढके पहाड़ों के नज़ारों को अपने कैमरे या मोबाइल में कैद कर सकते हैं। ट्रेक मार्ग में दमकनी सड़क, जंगलों के बीच खुला मैदान, नज़दीकी जल स्रोत जैसे दृश्य अक्सर मिलते हैं।

ट्रेक के लिए बेहतर समय

चूड़धार की शुरुआत खड़ी ढलानों से होती है और इसमें चढ़ाई और उतराई कठिन है। इन रास्तों पर पैदल यात्रा करने के लिए आदर्श महीने मई, जून, अक्तूबर और नवंबर हैं। दिन के समय औसत तापमान 25 से 15 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, लेकिन रात का न्यूनतम तापमान काफी कम होता है। लगातार तेज ठंडी हवाएं चलती रहती हैं। अपने साथ जैकेट, गर्म कपड़े अपने साथ अवश्य रखें।

कैसे पहुंचें

चंडीगढ़-दिल्ली से सोलन तक बस या टैक्सी।

सोलन से राजगढ़ के लिए लोकल बस या टैक्सी। राजगढ़ से नोहरधर तक टैक्सी या स्थानीय बस से पहुंचना संभव है।

सामान

ट्रेकिंग शूज़, कपड़े (ठंड से बचाव के लिए), बारिश का कोट, टॉर्च, पानी एवं स्नैक्स, प्राथमिक चिकित्सा सामग्री।

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