प्रेम, सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता का उत्सव
सूफी हेरिटेज फेस्टिवल ने दिल्ली में सूफीवाद की गहरी जड़ों और विरासत को प्रदर्शित किया, जो प्रेम, एकता और समावेशिता का संदेश देता है। विभिन्न कलाकारों ने संगीत, नृत्य और कला के माध्यम से सूफी विचारधारा की विविधता को उजागर किया। यह आयोजन सूफी परंपराओं को जीवित रखने और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्सव था।
सुमन बाजपेयी
‘सूफीवाद हमेशा से ही भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताने-बाने में गहराई से समाया हुआ है, जो प्रेम, सहिष्णुता और सह-अस्तित्व का बोध कराता है। आज की समय में, विभाजन की विभीषिका को भूलने के लिए सूफीवाद का संदेश पहले से कहीं ज़्यादा प्रासंगिक है।’ सूफी हेरिटेज प्रोजेक्ट की संस्थापक यास्मीन किदवई बताती हैं कि, जिन्होंने आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर के सहयोग से इस महोत्सव का आयोजन किया।
नयी दिल्ली में गत दिन सुंदर नर्सरी में हुए इस फेस्टिवल में हमारी साझा सांस्कृतिक विरासत की झलक देखने को मिली। प्रेम और आध्यात्मिकता किसी भी तरह के मतभेद से परे है, यह संदेश लेकर प्रस्तुत किए गए संगीत, नृत्य, दास्तानगोई, मुशायरा में भी एक अनूठापन था।
गायिका रेखा भारद्वाज, नूरां बहनें, निजामी बंधु, नर्तकी अदिति मंगलदास, इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल, सौम्या कुलश्रेष्ठ, हरीश बुधवानी, यावर बादल, कबीर कैफे, अनन्या गौर, जसलीन औलाख जैसे कलाकारों ने प्रस्तुतियां दीं। कलाकारों का चयन सूफी परंपराओं को दिमाग में रखते हुए किया गया था। अपने संगीत नृत्य, कविता, कव्वाली आदि के माध्यम से उन्होंने सूफीवाद की अंतर्निहित विविधता को दर्शाया। उनमें फारसी और मध्य एशियाई प्रभावों सहित भारत की जीवंत लोक परंपरा का समन्वय देखने को मिला।
हालांकि, सूफीवाद केवल संगीत या कविता और नृत्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने का एक तरीका है जो प्रेम, स्वतंत्रता, एकता और समावेशिता को बढ़ावा देता है। इस फेस्टिवल का उद्देश्य एक ऐसा वातावरण निर्मित करना था, जिसमें लोग सूफी दर्शन में डूब उसे समझ सकें।
आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर इंडिया के सीईओ ने कहा, ‘दो दशकों से अधिक समय से आगा खान ट्रस्ट फॉर कल्चर की टीम हुमायूं के मकबरे-निज़ामुद्दीन क्षेत्र में निर्मित विरासत के संरक्षण का काम कर रही है। संगीत, भोजन और शिल्प की बहुलवादी अमूर्त विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयास रहा है। सूफी हरिटेज फेस्टिवल का उद्देश्य प्रामाणिक सूफी अनुभवों को प्रदर्शित करना है ताकि लोग उस सांस्कृतिक विरासत को याद रखें।
दिल्ली की 700 साल पुरानी सूफी विरासत का सम्मान करने के लिए इस फेस्टिवल में अपनी प्रस्तुतियां दीं ‘बेबाक’ और ‘सामा’ नाम से दो स्टेज बनाए गए थे जहां पर अलग-अलग कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां देकर सूफी के रंग से लोगों को रंगा।
महान सूफी कवियों के दर्शन को सभी के लिए अधिक प्रासंगिक बनाने के लिए, मां-बेटी की जोड़ी गीतकार पॉली साघेरा और जसलीन औलख ने अपनी रचनाओं और सूफी कवियों के शब्दों के साथ बिना उपदेश के सार्थक संगीत प्रस्तुत किया। जसलीन ने कहा, ‘सूफियाना कलामों को समकालीन शैली में पेश करने और उन्हें हमारे दिल के सबसे करीब बनाने के हमारे प्रयास में, हमने इन कलामों को मेरी मां पॉली साघेरा के गीतों के साथ मिलाया है।’
सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना और कोरियोग्राफर अदिति मंगलदास ने कहा, ‘सूफी हेरिटेज फेस्टिवल समावेशिता का उत्सव है, जो आज के समय में बहुत महत्वपूर्ण है, जब हमारे आस-पास की दुनिया बंटी हुई लगने लगी है। मैं इस पहल का हिस्सा बनकर उत्साहित हूं, क्योंकि यह न केवल कलात्मक रूप से दर्शकों को विभिन्न क्षेत्रों के असाधारण कलाकारों को देखने का अवसर देती है, बल्कि यह एक मजबूत संदेश भी देती है। यह फेस्टिवल हमारी दुनिया की विविध धाराओं की सुंदरता का प्रतिनिधित्व करता है।’
निज़ामी बंधु के लिए, सूफ़ीवाद सिर्फ़ संगीत नहीं है; यह एक दिव्य संबंध है, आत्मा की एक यात्रा है जो समय और सीमाओं से परे है। उस्ताद चांद निजामी ने कहा, ‘सूफ़ी हेरिटेज फ़ेस्टिवल का हिस्सा बनना हमारे लिए सम्मान की बात है, क्योंकि इससे हमें अपनी समृद्ध विरासत का सार उन दर्शकों के साथ साझा करने का मौक़ा मिलता है जो आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सद्भाव चाहते हैं।’
इसके अतिरिक्त यहां ‘करघाघर’ में विभिन्न कार्यशालाएं भी चल रही थीं, जैसे कैलीग्राफी क्ले-पॉटरी, सांझी कला, आरी कढ़ाई आदि। दिल्ली का बाजार नाम से एक क्यूरेटेड बाजार में हस्तशिल्प की वस्तुएं सजी थीं।