सर्पिली सड़कों के बीच शांति-सुकून की बयार
जब शहर की भीड़, शोर और उलझनों से मन थक जाए, तो उत्तराखंड की गोद में बसा सोनासिलिंग बुलाता है। यहां वादियां बोलती नहीं, बस महसूस होती हैं। सूरज की पहली किरण, जंगल की चुप्पी और सर्पिली पगडंडियों पर चलती हवा—सब मिलकर आपको खुद से मिलाते हैं।
कई बार हम जीवन की आपाधापी से इतना ऊब जाते हैं कि कहीं ऐसी जगह जाने की इच्छा होती है जहां पर दूर-दूर तक प्रकृति हो और शांति इतनी की खुद की आवाज भी शोर जैसी लगे। ऐसे में अगर नैनीताल, रानीखेत या देहरादून से मन भर गया है तो अल्मोड़ा के छोटे से गांव सोनासिलिंग में आपका स्वागत करती यहां की वादियां बुला रही हैं, अपने सादेपन, निश्छलता और जादुई खूबसूरती के साथ।
सूर्योदय-सूर्यास्त का अनुभव
सुबह-शाम का सूर्योदय और सूर्यास्त देखकर—दिल कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं जो बात इस जगह है और कहीं नहीं। सोनासिलिंग की शांत वादियां, दूर-दूर तक सर्पिली सड़क और उसके किनारों पर झांकती सूर्यदेव की किरणें ऐसी लगती हैं कि जैसे बस अभी सूर्योदय हुआ है।
कहां है सोनासिलिंग स्थित
सोनासिलिंग, उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले का एक खूबसूरत गांव है। यह दिल्ली-पिथौरागढ़ हाइवे पर अल्मोड़ा से लगभग 20 किलोमीटर दूर है।
लुभावनी प्राकृतिक छटा
रास्ते में दोनों ओर चीड़ के वृक्ष इतने सलीके से खड़े हैं कि लगता है किसी ने उन्हें लाइन से लगाया है, जबकि ये खुद ब खुद शुष्क पहाड़ी पर उग आए हैं। कहीं-कहीं बोगनबेलिया भी आपके मन को मोहने के लिए खड़ी मिलती है। गुलाब के पुष्प तो कई बार सूरजमुखी के फूल से भी बड़े नजर आते हैं।
जंगल का रोमांच
एकांत में कभी-कभी जंगली जानवर देखने का आनंद भी सोनासिलिंग में कुछ अलग आता है। सूर्योदय से पहले अगर आप यहां की संड़कों पर चहलकदमी करेंगे तो हो सकता है कि लोमड़ी आपका रास्ता काटती हुई चली जाए या फिर दूर से किसी बघेरे की दहाड़ आपको डरा दे।
सुविधाएं सीमित, अनुभव असीमित
सोनासिलिंग ऐसा गांव है जहां न कोई बस स्टैंड है और न ही कोई टैक्सी स्टैंड। फिर भी हाइवे से गुजरने वाली सभी बसें यात्रियों को लाने-ले जाने के लिए रुकती हैं। यहां की कुल आबादी तीन-चार सौ से अधिक नहीं है।
ट्रैकिंग के लिए स्वर्ग
गांव के पास छोटे-छोटे ट्रैक हैं, कई ट्रैक 2 से 3 किलोमीटर के हैं जो इतने घने जंगल में हैं कि कहीं-कहीं दिन-दोपहर को ही अंधेरा नजर आता है। यहां पर रंग-बिरंगे पक्षियों का संसार बसा है—जंगली मुर्गी, तोते, नीलकंठ, कठफोड़वा, कोयल, काले तीतर आदि।
भरोसे की बस्ती
यहां की सबसे खास बात है कि यहां पर कोई माल रोड नहीं है। जरूरी चीजें मिल जाती हैं, लेकिन दवाएं और स्नैक्स अपने साथ लाना बेहतर होगा। यहां आज भी घरों में ताले नहीं लगते, सिर्फ जंगली जानवरों से बचने के लिए कुंडी लगाई जाती है।
रहने की व्यवस्था
यहां कोई होटल या धर्मशाला नहीं है। होम स्टे या पहाड़ी बाखली ही रहने का एकमात्र साधन है, जहां पर सिर्फ मांगने पर खाना उपलब्ध होता है। एक कमरे का किराया लगभग 500 रुपये प्रतिदिन है।
क्या-क्या देखें
यहां आकर आप विंटर लाइन देख सकते हैं और अगर मौसम साफ हो तो दूर से ही ओम पर्वत और आदि कैलास धाम के दर्शन हो जाते हैं।
निकटवर्ती दर्शनीय स्थल
जागेश्वर धाम, कसार देवी मंदिर, बूढ़ा जागेश्वर, नंदा देवी मंदिर, गोलू देवता मंदिर।
कैसे पहुंचे
बस से : दिल्ली से पिथौरागढ़ जाने वाली सीधी बसें उपलब्ध हैं।
रेल से : काठगोदाम आखिरी स्टेशन है, वहां से शेयर टैक्सी मिल जाती है।
हवाई यात्रा : हल्द्वानी नजदीकी एयरपोर्ट है, वहां से आगे सड़क मार्ग।
यहां का मौसम हमेशा ठंडा रहता है, गर्मियों में भी गर्म कपड़े लाना जरूरी है।