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भारत की सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य का मनोरम संगम

नीमराना किला

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नीमराना किला, राजस्थान का एक ऐतिहासिक किला, अब एक भव्य हेरिटेज रिजॉर्ट के रूप में परिवर्तित हो चुका है। वर्ष 1464 में बने इस किले में राजसी ठाठ-बाट और शाही अनुभव के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य और संगीत का आयोजन होता है। यह स्थल इतिहास, कला और प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक है।

असल में, दिल्ली वालों के लिए साप्ताहिक सैर के चलन को हवा देने में नीमराना का खासा रोल है। नीमराना के पर्यटन का सिलसिला ही नीमराना किला के होटल में तब्दील होने के साथ शुरू हुआ है। किले के भीतर तमाम तस्वीरें टंगी हैं, जिन्हें देख-देख कर बखूबी अंदाजा लगता है कि कितनी खूबसूरती से किला होटल में बदला है। जाड़ों में गुनगुनी धूप, बारिशों में रोमांस से सराबोर हर पल और गर्मियों में झरोखों से झरझर बहती ठंडी हवाएं… हर मौसम में नीमराना आने और एक-दो रात गुजारने का न्योता देती है।

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नीमराना यानी किला

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नीमराना घूमने का मतलब ही नीमराना किला देखना है। राजसी ठाठ-बाट से लेस नीमराना किला यूं तो एकांत जगह है, फिर भी सांस्कृतिक और संगीतमय कार्यक्रम का अनुपम तालमेल दिल बहलाता रहता है। आर्ट एग्जिबिशन, नृत्य कंसर्ट और शुभा मुद्गल जैसी गायन शख्सियतों के लाइव शो अक्सर होते रहते हैं। फिर, नीमराना किला ही आज शानदार होटल है और यही नीमराना की घूमने लायक बेहतरीन जगह है। रात नहीं गुजारना चाहें, तो भी तयशुदा शुल्क अदा कर, पर्यटक चंद घंटे नीमराना पैलेस होटल घूम सकते हैं।

नीमराना किला 9 मंजिला है और सन‌् 1464 के आसपास बना है। इस लिहाज से, नीमराना किला देश का सबसे पुराना हेरिटेज रिजॉर्ट कहलाता है। करीब 25 एकड़ में फैला है। मेहमानों को राजस्थानी और फ्रेंच व्यंजन परोसे जाते हैं। कुदरती माहौल के बीचोंबीच बने पैलेस रिजॉर्ट में मेहमान बेहद सुकून महसूस करते हैं।

नीमराना किला पहाड़ की ऊंचाई के साथ ऊपर की ओर बढ़ता है। इसमें नीचे से ऊपर जाने पर पहाड़ी पर चढ़ने का अहसास होता है। किले का कोना-कोना देखने लायक है। ऊपर से मैदानों को निहारना तन-मन में रोमांच भर देता है। हर कमरा और उसका स्नान कक्ष तक शानदार है—बाथरूम से बाहर हरे-भरे दिलकश नजारों का दीदार होता है। और तो और, नीमराना किला अरावली पहाड़ियों पर घोड़े के नाल जैसा है। ऐसे आकार-प्रकार वाला यह दुनिया का सबसे पुराना पहाड़ है।

बावली है खास

हालांकि नीमराना में सैलानियों के लिए ज्यादा कुछ करने लायक़ नहीं है। किला घूमने-फिरने में ही रस आ जाता है। फिर भी, अगर बाहर निकलने का मन करे, तो किले के गेट के बाहर कच्चा-पक्का रास्ता सड़क तक ले जाता है। आगे यही सड़क ऐतिहासिक बावली तक जाती है। बावली कोई मामूली नहीं है—11 मंजिला नीचे है। केवल आखिरी 2 मंजिला तक पानी है। बाकी सभी मल्लाओं में इर्द-गिर्द खम्भेदार बरामदे हैं।

राजस्थान के इतिहास के पन्नों पर दर्ज है कि बावली का निर्माण सन‌् 1700 में हुआ था। करीब 170 सीढ़ियां उतर कर पानी तक पहुंचते हैं। बावली तो बावली… आजकल सर्दियों में नीमराना के आसपास खिले सुनहरे सरसों के खेतों में पैदल टहलना और भी दिलकश अनुभव है।

आसपास है सिलीसेढ़ झील

नीमराना के साथ-साथ भरतपुर की सैर भी की जा सकती है। हालांकि विनय विलास महल, बाला किला, सरिस्का नेशनल पार्क, केसरोली और सिलीसेढ़ झील ज्यादा ही नजदीक हैं और एक बार जरूर देखने लायक भी। अलवर से सरिस्का नेशनल पार्क केवल 36 किलोमीटर दूर है। और अलवर से ही सिलीसेढ़ झील का रास्ता कुछ ही मिनट का है—महज 13 किलोमीटर दूर। सिलीसेढ़ झील की खूबसूरती यह है कि यह तीन तरफ से अरावली पहाड़ियों से घिरी है। झील खासी लंबी-चौड़ी है। दस वर्ग किलोमीटर में फैली है और सारा साल जलमग्न रहती है। इतना पानी है कि अलवर और इर्द-गिर्द के सभी गांवों को पीने का पानी मुहैया कराती है।

झील की एक ओर लेक पैलेस होटल है। किसी जमाने में यह शिकारगाह था। आज शिकार करना मना है, बस पक्षी-परिंदों की फोटो या वीडियो शूट करने पर कोई रोक-टोक नहीं है। कभी-कभी तो झील दूर-नजदीक से उमड़ते सैकड़ों पक्षियों से इस कदर भर जाती है कि पानी नजर ही नहीं आता। सन‌् 1845 में शिकारगाह अलवर के महाराजा विनय सिंह ने अपनी रानी शीला के लिए खासतौर से बनवाया था। पैलेस में सैलानियों के ठहरने के लिए कमरे हैं, लेकिन अगर कुछ घंटे गुजारना चाहें, तो भी नीमराना फोर्ट की भांति मामूली शुल्क अदा कर भीतर घूम सकते हैं। शिकारगाह से झील की मनोरम छटा निहारना दिलकश है।

सिलीसेढ़ झील में मगरमच्छ भी हैं। सर्दियों में तो मगरमच्छ किनारों पर निकल आते हैं और दिखने लगते हैं। अगर मगरमच्छ की दुनिया को नजदीक से देखना चाहें, तो करीब एक किलोमीटर परे मगर फार्म का रुख कर सकते हैं।

कैसे पहुंचें

नीमराना राजस्थान में है। अरावली पहाड़ों पर बसा है। दिल्ली से राजस्थान का सबसे नजदीकी किला यही है। दिल्ली से करीब 122 किलोमीटर दूर है।

ट्रेन से दिल्ली से अलवर पहुंचने में ढाई-तीन घंटे लगते हैं, आगे टैक्सी से नीमराना जाते हैं। नजदीकी एयरपोर्ट दिल्ली का इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट ही है। इसलिए सड़क के रास्ते नीमराना जाना ही सबसे बढ़िया है।

दिल्ली-जयपुर के नेशनल हाईवे के रास्ते करीब 3 घंटे में नीमराना पहुंचा जा सकता है। लेकिन हाइवे पर ड्राइव करते-करते ट्रकों से बचना जरूरी है। कार से जा रहे हैं, तो शाहजहांपुर चेक पोस्ट के पास नीमराना साइन बोर्ड को खोजते जाएं। यहीं से दाईं तरफ मुड़ कर, करीब 5 किलोमीटर आगे नीमराना आता है। नीमराना किले तक जाती सड़क जरा संकरी है और बीच-बीच में चढ़ाई तीखी भी।

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