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अंतरिक्ष में सपने सच करने की मुहिम के कामयाब 18 दिन

मिशन एक्सियम 4 के हासिल
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मिशन- एक्सियम 4 के तहत अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर पहली बार पहुंचे एक भारतीय के रूप में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला वहां 18 दिन यानी स्वीट 18 बिताकर सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आए। वह अपने सहयोगियों के साथ दर्जनों प्रयोगों से हासिल डाटा और अनुभव लेकर आए जो भारत के भावी अंतरिक्ष अभियानों- खासकर गगनयान मिशन में मददगार बनेगा। दरअसल, वहां इन वैज्ञानिक-अंतरिक्ष यात्रियों ने प्रयोगों से यह भी जानने का प्रयास किया कि वहां का वातावरण पौधों और सूक्ष्म जीवों पर कैसे असरकारी है। साथ ही, शून्य अथवा न्यून गुरुत्वाकर्षण यानी माइक्रोग्रैविटी का क्या प्रभाव होता है। कई परीक्षण अंतरिक्ष में जीवन और इंसानी रिहाइश के दौरान शरीर पर प्रभावों पर केंद्रित रहे हैं।

भारत के मिथकों में जाएं, तो वर्णन मिलता है कि पांडवों और कौरवों के बीच 18 दिनों तक भीषण महाभारत युद्ध चला था। श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को 18 दिन ही श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान दिया था। महाकाव्य की दृष्टि से देखें तो महाभारत के 18 अध्यायों में बंटी गाथा समस्त जीवन का सार कहलाती है। इस संख्या 18 से महाभारत की साम्यता के कई प्रसंग है, पर आधुनिक भारत की एक नई घटना ने इस संख्या को नया महत्व प्रदान किया है।

अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर पहली बार पहुंचे एक भारतीय के रूप में ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला वहां 18 दिन बिताने के बाद सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आए हैं। वह अपने तीन अन्य सहयोगियों के साथ दर्जनों प्रयोग करने बाद हासिल डाटा और अनुभवों की पोटली संग लेकर आए हैं। उनका यह अनुभव और अर्जित ज्ञान भारत के भावी अंतरिक्ष अभियानों- खासकर गगनयान मिशन की थाती बनेगा। साथ ही, उम्मीद है कि इस यात्रा से जगा जोश अंतरिक्ष में हमारे देश को नई ऊंचाइयां छूने में मदद करेगा।

वैसे, अंतरिक्ष कहलाने वाली दुनिया तक जाने, उसे देखने-परखने और महसूस करने का मौका भला कितनों को मिलता है। इसके लिए एक इरादा चाहिए। एक जुनून चाहिए। वर्षों की तैयारी चाहिए और अपने देश का समर्थन चाहिए। इन अर्थों में देखें तो भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की हाल की अंतरिक्ष यात्रा हमारे लिए गौरव का पल है। अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे और अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर डेढ़ दर्जन दिन रहकर दर्जनों प्रयोग-परीक्षण करने वाले पहले भारतीय के रूप में शुभांशु शुक्ला ने नया इतिहास रच दिया है। वह अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन- नासा और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो के साझा मिशन- एक्सियम 4 पर 25 जून 2025 को फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से रवाना होने के एक दिन बाद 26 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन यानी आईएसएस पहुंचे थे। इसके अगले 18 दिनों तक वह वहां रहे और विभिन्न प्रकार के शोध और प्रयोग आईएसएस पर अपने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर किए।

यूं तो अंतरिक्ष की देहरी पर कदम रखने वाले ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला से पहले यह कारनामा स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा 41 साल पहले वर्ष 1984 में कर चुके हैं। राकेश शर्मा पूर्व सोवियत संघ )आज के रूस ( के साझा स्पेस मिशन पर सोयूज टी-11 से 3 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में गए थे। तब वहां उन्होंने सात दिन 21 घंटे बिताए थे।

शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा उनके मुकाबले करीब ढाई गुना ज्यादा अवधि वाली रही। शुभांशु शुक्ला और राकेश शर्मा के अंतरिक्ष में जाने के इस कीर्तिमान की तुलना स्वाभाविक है। जैसे एक तुलना यह होती है कि दोनों यात्रियों ने अंतरिक्ष में पहुंचने पर भारत के बारे में क्या कहा।

‘भारत दिखाई देता है भव्य’

स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अंतरिक्ष में पहुंचने पर कहा था कि भारत, सारे जहां से अच्छा है। उसी तरह ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष से बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी से पृथ्वी की एकता के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष एक ऐसी जगह है, जहां देशों की सीमाएं मिट जाती हैं, लेकिन भारत आकार और भावना, दोनों में भव्य दिखाई देता है। उन्होंने अपने दैनिक अनुभवों—जैसे एक दिन में 16 परिक्रमाएं पूरी करना—और माइक्रो ग्रैविटी में रहने की चुनौतियों का वर्णन किया, और इस मिशन को विज्ञान और आश्चर्य का मिश्रण बताया। प्रधानमंत्री से बात करते हुए शुभांशु शुक्ला ने यह भी कहा, ‘आसमान कभी सीमा नहीं रहा - न मेरे लिए, न भारत के लिए।’ उन्होंने गर्व के साथ कहा कि इतिहास में पहली बार अब अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर भारत का तिरंगा लहरा रहा है।

यही नहीं, आईएसएस से वापस पृथ्वी की ओर रवाना होने से पहले 13 जुलाई, 2025 को अपने विदाई संबोधन में देशवासियों से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि भले ही अंतरिक्ष में उनकी यात्रा समाप्त हो रही है, लेकिन भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन की यात्रा अभी भी बहुत लंबी और कठिन है। उन्होंने कहा था कि अगर हम दृढ़ निश्चय कर लें, तो सितारे भी हासिल किए जा सकते हैं। शुक्ला ने कहा कि 41 साल पहले, एक भारतीय )राकेश शर्मा ( अंतरिक्ष में गए थे और उन्होंने हमें बताया था कि वहां से हमारा देश कैसा दिखता है और लोग जानना चाहते हैं कि आज भारत कैसा दिखता है। शुभांशु शुक्ला ने कहा कि आज का भारत तो अंतरिक्ष से महत्वाकांक्षी, निडर व गर्व से पूर्ण दिखता है। यह भी कि आज का भारत अभी भी सारे जहां से अच्छा दिखता है, पूरी दुनिया से बेहतर दिखता है।

मिशन से प्रयोग-परीक्षण कर लौटे

बेशक, शुभांशु शुक्ला अपने देश के लिए एक महत्वपूर्ण मिशन पूरा करते हुए पृथ्वी पर लौट आए हैं। अंतरिक्ष यान ड्रैगन मिशन के दौरान किए गए इन सारे प्रयोगों का डाटा और नासा के हार्डवेयर समेत 580 पाउंड वजनी सामान लेकर स्पेसएक्स के यान- ड्रैगन में सवार होकर 15 जुलाई 2025 को अमेरिका के कैलिफोर्निया तट पर वापस उतरा। इस मिशन पर उनके अलावा तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन)आईएसएस( पर पहुंचे थे, जिनमें पौलेंड के स्लावोस्ज़ अज़नान्स्की विज़नियेवस्की, हंगरी के टीबोर कापू और अमेरिका की पेगी व्हिट्सन शामिल थीं। इन सभी ने आईएसएस पर रहते हुए करीब 60 प्रयोग और परीक्षण किए। शुभांशु शुक्ला के प्रयोगों का एक बड़ा उद्देश्य इसरो के भावी गगनयान और अन्य अभियानों को सफल बनाना है। इन वैज्ञानिक-अंतरिक्ष यात्रियों ने अपने प्रयोगों के माध्यन से यह भी जानने का प्रयास किया कि अंतरिक्ष का वातावरण पौधों और सूक्ष्म जीवों पर कैसे असर डालता है। साथ ही, अंतरिक्ष का शून्य अथवा न्यून गुरुत्वाकर्षण यानी माइक्रोग्रैविटी का क्या प्रभाव होता है।

खास तौर से भारत के संबंध में बात करें, तो शुभांशु शुक्ला के नेतृत्व में आईएसएस पर रहते हुए जो प्रयोग किए गए हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनसे मिली जानकारी से भारत अंतरिक्ष में मानव जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर पाएगा। वापसी पर अब उनकी योजना अपने अनुभवों को भारत के गगनयान अभियान के लिए चयनित होने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के साथ साझा करने की है। उनके प्रयोगों की महत्ता रेखांकित करते हुए भारत के केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि शुभांशु शुक्ला के प्रयोग लंबी अवधि के मिशन को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे। अंतरिक्ष में किए गए इन प्रयोगों से मिले आंकड़ों की मदद से माइक्रोग्रैविटी वाले माहौल के लिए डिजाइन और विकसित की गई स्वदेशी बायोटेक किट का उपयोग किया जाएगा। यह प्रयास अंतरिक्ष जीव विज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र में अहम रोल निभाएगा।

शरीर पर माइक्रो ग्रेविटी प्रभावों के प्रयोग

जिन प्रयोगों को शुक्ला और उनकी टीम ने आईएसएस पर अंजाम दिया, उनमें से कई अंतरिक्ष में जीवन और लंबे समय तक इंसानी रिहाइश के दौरान शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों पर केंद्रित रहे हैं। जैसे, एक प्रयोग का उद्देश्य यह पता लगाना है कि अंतरिक्ष की माइक्रोग्रैविटी से उस सूक्ष्म शैवाल यानी माइक्रो एल्गी पर क्या असर होता है, जिसे खाने योग्य माना जाता है। इस परीक्षण का उद्देश्य भविष्य की सुदूर अंतरिक्ष यात्राओं में अंतरिक्ष में ही भोजन तैयार करना और ऑक्सीजन के साथ जैव ईंधन उपलब्ध कराना है। सूक्ष्म शैवाल पर प्रयोग करने के पीछे इस एल्गी की लचीली संरचना है, जिसकी मदद से पृथ्वी के पार जीवन बनाए रखने में मदद मिल सकती है। शुभांशु ने जिस दूसरे प्रयोग ने काफी चर्चा पाई है, वह अंतरिक्ष के वातावरण में आईएसएस पर मेथी और मूंग दाल के अंकुरण से संबंधित हैं। इनके सफल अंकुरण से यह पता चलेगा कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पोषण कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है। एक पेट्री डिश में ‘मूंग’ और ‘मेथी’ के बीजों को अंकुरित करते हुए ली गई सेल्फी का कैप्शन देते हुए शुभांशु ने लिखा कि इससे भारतीय वैज्ञानिकों के लिए नए रास्ते खुलेंगे। यह अध्ययन इस बात पर आधारित था कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण अंकुरण और पौधों के प्रारंभिक विकास को कैसे प्रभावित करता है। तीसरा परीक्षण इस अध्ययन पर केंद्रित था कि जीवन का कोई रूप, विशेषतः यूटार्डिग्रेड पैरामेक्रोबायोटस एसपी. बीएलआर स्ट्रेन पर आधारित जीवन, अंतरिक्ष में कैसे जीवित रहता है, कैसे प्रजनन करता है और इसके आरएनए की संरचनाओं में क्या परिवर्तन आते हैं। वैसे तो आईएसएस यह प्रयोग लगभग प्रत्येक देश का अंतरिक्ष यात्री करता है कि अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण की स्थिति में मांसपेशियों पर क्या असर पड़ता है। लेकिन इस प्रयोग को शुभांशु द्वारा दोहराने का उद्देश्य गगनयान के यात्रियों को यह जानकारी देना है कि कम ग्रैविटी की स्थिति में में मांसपेशियों को ठीक रखने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। शुभांशु द्वारा पांचवें प्रयोग में यह जानने का प्रयास किया है कि अंतरिक्ष की माइक्रो ग्रैविटी वाली स्थितियों में मनुष्य इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले के साथ कैसे इंटरैक्ट करते हैं। आईएसएस में लगी स्क्रीनों को पढ़ने में और उन पर आ रहे निर्देशों को समझने में कोई मुश्किल तो नहीं होती है। ऐसा लगता है कि स्क्रीन टाइम की समस्या आईएसएस पर भी एक कठिनाई पैदा कर रही है। उनका छठवां प्रयोग भी अंतरिक्ष यात्राओं के महत्व का है। यह प्रयोग यूरिया और नाइट्रेट की मदद से साइनो बैक्टीरिया की अंतरिक्ष में पैदावार और बढ़वार से संबंधित था। शुभांशु और उनके साथ मौजूदा वैज्ञानिकों के दल ने इस परीक्षण के जरिए यह जानने की कोशिश की है कि आईएसएस जैसे एक बंद अंतरिक्षीय वातावरण में पोषक तत्वों की रिसाइकिलिंग की क्षमता क्या होगी। इस प्रयोग का मुख्य उद्देश्य, मानवमूत्र जैसे कचरे को उपयोगी संसाधनों में बदलना है, जिससे भविष्य मेंअंतरिक्ष यात्रियों के लिए लंबे प्रवास और जीवन को सपोर्ट देने वाली प्रणाली विकसित की जा सके।

अनुकूल आवास डिजाइन पर अध्ययन

नासा ने एक्सपीडिशन 73 और एक्सियम मिशन 4 पर गए शुभांशु शुक्ला के अलावा अन्य चालक दल यानी अंतरिक्षयात्रियों द्वारा किए गए परीक्षणों के ब्यौरे भी साझा किए हैं। नासा के मुताबिक,इन परीक्षणों मे क्रू मेंबर्स के लिए अनुसंधान और स्पेस सूट रखरखाव का कार्य सबसे ऊपर था। अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष की कक्षा यानी ऑर्बिट में अपने पर्यावरण के साथ किस प्रकार अंतःक्रिया करते हैं, जोकि लंबी अवधि के मिशनों के लिए मानसिक रूप से सहायक आवासों को डिजाइन करने के लिए महत्वपूर्ण है- इसके अध्ययन के लिए भी चालकदल ने डाटा एकत्र किया। एकअन्य अध्ययन में मस्तिष्कीय रक्त प्रवाह पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें यह पता लगाया गया कि किस प्रकार सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण और कार्बनडाइऑक्साइड का बढ़ा हुआ स्तर हृदय संबंधी कार्य को प्रभावित करता है। इस अध्ययन से भविष्य में, अंतरिक्ष यात्रियों और पृथ्वी पर रोगियों, दोनों को लाभ हो सकता है।

विकिरण जोखिम से सुरक्षा का मूल्यांकन

अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा का आकलन करने के लिए एक उपकरण, कॉम्पैक्ट रेड नैनो डोजिमीटर का उपयोग करके उन पर पड़ने वाले विकिरण जोखिम की निगरानी कर सुरक्षा का मूल्यांकन भी एक परीक्षण के जरिये किया गया। साथ ही, इस एक्सपीडिशन 73 के चालक दल ने ‘एक्वायर्ड इक्विवेलेंस टेस्ट’ में भाग लिया, जो एक मानसिक प्रयोग है और यह अंतरिक्ष में सामंजस्य बिठाने की तकनीकें सीखने और उनके मुताबिक अनुकूलन करने की क्षमता को मापता है। यानी इसमें अंतरिक्ष में रहने और वहां के वातावरण से सामंजस्य बिठाने की क्षमता का आकलन किया जाता है। एकअन्य अध्ययन में दिमाग़ में रक्त प्रवाह पर फ़ोकस किया गया है, जिससे यह समझा जा सके कि माइक्रोग्रैविटी और उच्च स्तर की कार्बनडाइऑक्साइड मानव हृदय को कैसे प्रभावित करती है। इससे भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों और पृथ्वी पर दिल के मरीज़ों, दोनों को फायदा हो सकता है।

भारत के संदर्भ में इन प्रयोगों – परीक्षणों से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे हमारा देश गगनयान के जरिए 10 हजार करोड़ रुपये के खर्च वाली उस मानव मिशन योजना पर तेजी से बढ़ेगा, जिससे पहली बार अपने बल पर किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजने और सात दिन रखने के सपने को साकार किया जा सकेगा। कह सकते हैं कि सफल एक्सियम-4 मिशन के माध्यम से शुभांशु ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों और भावी अभियानों के लिए नई उम्मीदें जगा दी हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन- इसरो गगनयान मिशन नामक जिस स्वदेशी मानव मिशन (वर्ष 2027 तक) और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना (वर्ष 2035 तक) के काम को अपने बूते साकार करना चाहता है, उसमें असीम तैयारियों की जरूरत है। वहीं भारत अपनी कोशिशों से अगले 15 वर्षों के भीतर भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारना चाहता है। इन सभी के लिए हर तरह की सूक्ष्म तैयारियों और परीक्षणों की जरूरत है। इस नजरिये सेदेखें तो एक्सियम-4 से शुभांशु का पहले भारतीय के रूप में आईएसएस तक जाना और वहां से सफल वापसी करना इसरो के भावी मिशनों की ठोस जमीन तैयार करेगा। चूंकि ग्रुप कैप्टन शुभांशु एक्सियम-4 के मिशन पायलट के रूप में गए थे, इसलिए उनकी भूमिका इस मिशन की लॉन्चिंग, अंतरिक्ष में पहुंचने पर यान की आईएसएस से डॉकिंग और वायुमंडल में सुरक्षित प्रवेश और धरती पर कामयाब लैंडिंग तक में रही है। मिशन के दौरान पृथ्वी पर मौजूद कंट्रोल टीमों से संपर्क और संवाद का जिम्मा भी शुभांशु का था। स्पष्ट है कि इन चीजों का अनुभव भारत के भावी अंतरिक्ष अभियानों के लिए बड़े काम का साबित हो सकता है।

गगनयान की मजबूत नींव की शुरुआत

यूं भारत अपने बलबूते चंद्रमा पर ‘कदम ’ रख चुका है और मंगल तक उसका यान पहुंच चुका है, लेकिन अंतरिक्ष को लेकर पूरी दुनिया में नए सिरे से जो माहौल बना है, उसमें भारत एक दमदार प्रतिस्पर्धी बनकर उभरा है। आज का भारत अंतरिक्ष में हासिल उपलब्धियों के बल पर अमेरिका-रूस जैसी हस्तियों को टक्कर दे रहा है। लेकिन अब, स्वदेशी प्रयासों से अंतरिक्ष छूने का सारा दारोमदार इसरो के अभियान- गगनयान पर टिका है। वर्ष 2018 में देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि जल्द ही हमारे देश का कोई प्रतिभावान नौजवान (बेटा या बेटी) स्वदेशी अभियान की बदौलत अंतरिक्ष के भ्रमण पर होगा। इस उपलब्धि का महत्व यह होगा कि इससे भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जो अपने नागरिकों को स्वदेशी तकनीकों के बल पर अंतरिक्ष में भेज सकता है। उस समय इसरो ने इस बारे में तैयारियों की अपनी योजना का खुलासा भी किया था। इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष के. सिवन ने बताया था कि इस महान उद्देश्य के लिए तैयार किए जा रहे विशेष यान- गगनयान का 70 फीसदी काम पूरा भी हो चुका है। हालांकि कोविड-19 महामारी के कारण इस अभियान में विलंब होता चला गया और अब उम्मीद है कि अगले वर्ष 2027 में गगनयान अपने अभियान पर रवाना होगा। अहम सवाल यह है कि भारत यह काम सिर्फ इसलिए करना चाहता है कि इससे उसे दुनिया में ऐसे चौथे देश के रूप में प्रतिष्ठा मिल जाएगी जो अंतरिक्ष में अपने नागरिकों को भेज सकता है या फिर इसका कोई बड़ा उद्देश्य है। इसमें संदेह नहीं कि अब तक जो उपलब्धि सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन हासिल कर पाए हैं, उस तक पहुंचने का एक अभिप्राय यह है कि इससे देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र को लाभ मिलेगा। पर इससे ज्यादा बड़ी बात वह है, जिसका इशारा कई मौकों पर राजनेता और हमारे वैज्ञानिक करते रहे हैं। जैसे कि दस साल तक इसरो के मुखिया रहे यू.आर. राव ने एक अवसर पर कहा था कि भारत को अंतरिक्ष में मानव मिशन की एक सख्त जरूरत चीन की चुनौतियों के मद्देनजर है। भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की रेस में पड़ोसी चीन से साम्य रखना अनिवार्य है। यही नहीं, भारत अपने ह्यूमन स्पेस मिशन से यह भी साबित करना चाहता है कि वह न केवल ऐसा करने में सक्षम है, बल्कि इस कामयाबी में भी मितव्ययिता की मिसाल रखना चाहता है।

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