World AIDS Day पीजीआई का एचआईवी मॉडल, हजारों मरीजों के लिए नई उम्मीद
चंडीगढ़ में 2005 से अब तक 16000 रजिस्ट्रेशन, 4000 मरीज आज भी नियमित ART पर
वर्ल्ड एड्स डे केवल जागरूकता का दिन नहीं, बल्कि यह याद दिलाने का अवसर भी है कि एचआईवी अब डर की बीमारी नहीं रही। विज्ञान, जागरूकता और समय पर इलाज ने इसे एक प्रबंधनीय दीर्घकालिक संक्रमण में बदल दिया है। यह बदलाव पूरे देश में दिखता है और इसकी सबसे सशक्त मिसाल पीजीआई चंडीगढ़ है।
पीजीआई के ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन एचआईवी केयर’ के प्रोग्राम डायरेक्टर प्रो. अमन शर्मा बताते हैं कि 2005 से अब तक 16000 रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं और लगभग 4000 मरीज वर्तमान में सक्रिय ART पर हैं। यह आंकड़ा दिखाता है कि मरीज अब पहले से कहीं अधिक भरोसे के साथ इलाज जारी रख रहे हैं और सुरक्षित जीवन जी रहे हैं।
सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि पीजीआई में 97 प्रतिशत मरीजों में वायरल लोड नियंत्रित है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। वायरल लोड का नियंत्रण मरीज के स्वस्थ रहने और संक्रमण न फैलने दोनों के लिए सबसे प्रभावी कारक है।
एचआईवी : अब भय नहीं, नियंत्रण का विज्ञान
आज की ART दवाएं एचआईवी उपचार की दिशा पूरी तरह बदल चुकी हैं।
• दिन में केवल एक गोली
• सामान्य जीवन की पूरी संभावना
• विवाह, परिवार और कामकाज सब संभव
• और ‘U=U’, यानी वायरल लोड नियंत्रित होने पर संक्रमण आगे नहीं बढ़ता
यह वैज्ञानिक प्रगति हजारों लोगों के लिए नई उम्मीद बनी है।
पीजीआई कैसे बना भरोसे का सबसे मजबूत केंद्र
पीजीआई का एचआईवी सेंटर केवल दवा देने का स्थान नहीं, बल्कि सम्पूर्ण उपचार प्रणाली है। यहां मरीजों को मिलता है:
• मुफ्त ART दवाएं
• वायरल लोड और CD4 जैसी आधुनिक जांचें
• काउंसलिंग और जीवनशैली संबंधी मार्गदर्शन
• बच्चों, गर्भवती महिलाओं और जटिल मामलों के लिए विशेष प्रबंधन
टीबी–एचआईवी सह-संक्रमण, दवा प्रतिरोध वाले मामलों और पहली लाइन ART विफल होने पर भी विशेषज्ञ टीम उपलब्ध रहती है। इन्हीं कारणों से उत्तर भारत से बड़ी संख्या में मरीज यहां रेफर किए जाते हैं।
जांच सबसे महत्वपूर्ण, देर सबसे बड़ी गलती
विशेषज्ञों के अनुसार एचआईवी नियंत्रण की सबसे बड़ी कुंजी है:
समय पर जांच + जल्दी ART शुरू करना।
क्योंकि:
• शुरुआत में वायरस सबसे तेजी से बढ़ता है
• दवा जल्दी शुरू होने पर रोग की प्रगति रुक जाती है
• प्रतिरक्षा प्रणाली सुरक्षित रहती है
• और मरीज का जीवन सामान्य बना रहता है
पीजीआई के अनुभव में भी जो मरीज जल्दी जांच करवाते हैं, उनके उपचार परिणाम सबसे अच्छे होते हैं।
सामाजिक कलंक अब भी सबसे बड़ी चुनौती
चिकित्सा विज्ञान ने एचआईवी को नियंत्रण योग्य बना दिया है, लेकिन सामाजिक कलंक अब भी सबसे कठिन बाधा है।
• कई मरीज एचआईवी की पुष्टि होने पर परिवार को नहीं बताते।
• कार्यस्थल पर भेदभाव का डर बना रहता है।
• गलत धारणाओं के कारण मानसिक तनाव बढ़ता है।
प्रो. अमन शर्मा कहते हैं, ‘सबसे बड़ी लड़ाई बीमारी से नहीं, बल्कि समाज की गलत धारणाओं से है।’ पीजीआई की टीम काउंसलिंग के माध्यम से मरीजों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भविष्य: डिजिटल देखभाल और आसान उपचार
आने वाले समय में पीजीआई एचआईवी उपचार को और आधुनिक बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
• ऑनलाइन अपॉइंटमेंट
• डिजिटल फॉलो-अप
• दवा पालन के लिए मोबाइल रिमाइंडर
• दूरस्थ परामर्श
• हाई-रिस्क समूहों के लिए कम्युनिटी-आधारित टेस्टिंग
ये कदम मरीजों को आसान, सुविधाजनक और गुणवत्तापूर्ण देखभाल देने में अहम होंगे।
वर्ल्ड एड्स डे का संदेश:
परीक्षण कराएं, इलाज शुरू करें, और सम्मान दें।
विज्ञान स्पष्ट रूप से कहता है कि एचआईवी अब पूरी तरह प्रबंधनीय है।
किसी भी मरीज के लिए ये चार बातें जीवन बदल सकती हैं:
• समय पर जांच
• नियमित दवा
• वायरल लोड नियंत्रण
• सामाजिक सम्मान
पीजीआई जैसे संस्थान इस बदलाव को गति दे रहे हैं और यह साबित कर रहे हैं कि लड़ाई एचआईवी से नहीं, बल्कि गलतफहमियों से है।

