स्मार्टफोनों के लिए भारत का अपना GPS है NavIC, जानें कैसे करेगा काम
NavIC: इस साल के अंत तक भारत में बेचे जाने वाले सभी स्मार्टफोन में देश के अपने सैटेलाइट समूह से संकेत प्राप्त करने, पढ़ने और संसाधित करने की क्षमता होगी, जो नेविगेशन, डिलीवरी सर्विस और आपदा राहत में मदद करेगा। इस प्रणाली को NavIC (Navigation with Indian Constellation) कहा जाता है। यह उन मोबाइल हैंडसेट्स पर काम करेगा जिनमें ऐसे चिपसेट लगाए गए हैं जो स्वचालित रूप से भारतीय नेविगेशन सैटेलाइट के संकेतों को पकड़ने के लिए समन्वित हैं।
स्मार्टफोन में पहले की तरह अमेरिका आधारित ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) सुविधा भी बनी रहेगी। NavIC एक अतिरिक्त (add-on) सक्षम सुविधा के रूप में कार्य करेगा। यह भारतीय प्रणाली फूड डिलीवरी, क्विक कॉमर्स, कैब-हेलिंग ऐप्स और ट्रैफिक मैपिंग जैसे लोकेशन-आधारित सेवा प्रदाताओं के लिए एक कम लागत वाला विकल्प बन सकती है।
पिछले सप्ताह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दोहराया कि स्वदेशी NavIC जल्द ही देश के सभी मोबाइल फोनों में शामिल किया जाएगा। इसका मतलब है कि भारत में बेचे जाने वाले सभी 4G और 5G स्मार्टफोन में NavIC की सुविधा उपलब्ध होगी। फोन निर्माता कंपनियां 2022 से ही 5G सेवाओं के लिए NavIC-सक्षम चिपसेट जोड़ रही हैं। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि साल के अंत तक बाजार में बिकने वाले सभी नए हैंडसेट्स में यह सुविधा हो। वर्तमान में 4G नेटवर्क 5G की तुलना में बहुत बड़े क्षेत्र में उपलब्ध है।
NavIC के लाभ
स्मार्टफोनों में NavIC के एकीकरण से कई क्षेत्रों में नई संभावनाएं खुलेंगी। यह प्रणाली रियल-टाइम ट्रैफिक प्रबंधन और लॉजिस्टिक्स कंपनियों के लिए फ्लीट ट्रैकिंग को सक्षम बनाती है। भारत के भीतर इसकी उच्च सटीकता राइड-हेलिंग और डिलीवरी सेवाओं के प्रदर्शन को बेहतर बनाती है।
आपदा प्रबंधन और आपातकालीन सेवाओं में NavIC अत्यंत उपयोगी साबित हो सकता है — यह प्राकृतिक आपदाओं के दौरान पीड़ितों की सटीक लोकेशन बताकर राहत और बचाव कार्यों को तेज बना सकता है। इसके अलावा यह पर्यटन और यातायात सुरक्षा में वाहनों की निगरानी को भी सक्षम बनाता है।
तकनीकी बदलाव: ‘चिपसेट ऑफ चेंज’
NavIC के एकीकरण की नींव एक विशेष रूप से तैयार किए गए चिपसेट से जुड़ी है — जो मोबाइल फोन के मदरबोर्ड और उसकी इलेक्ट्रॉनिक कार्यप्रणालियों का मुख्य हिस्सा होता है। स्मार्टफोनों में NavIC का उपयोग चिपसेट स्तर के समर्थन पर निर्भर करता है, क्योंकि नेविगेशन रिसीवरों को NavIC के उपग्रह समूह से आने वाले संकेतों को संसाधित करने में सक्षम होना चाहिए। इसके लिए ISRO और प्रमुख सेमीकंडक्टर कंपनियों के बीच सहयोग हुआ।
NavIC को स्मार्टफोनों में जोड़ने की एक तकनीकी चुनौती फ्रीक्वेंसी-बैंड संगतता थी। विश्व स्तर पर अधिकतर 4G चिपसेट L1 बैंड (1575.42 MHz) पर काम करते हैं, जबकि प्रारंभिक रूप से NavIC उपग्रह केवल L5 (1176.45 MHz) और S-बैंड (2492.028 MHz) पर संकेत भेजते थे।
इस चुनौती को हल करने के लिए ISRO ने 2023 में पहली बार L1 बैंड पर संकेत प्रसारण शुरू किया, जिससे मोबाइल और चिपसेट निर्माताओं के लिए एकीकरण आसान हो गया। L1 वही प्रमुख बैंड है जिस पर अमेरिकी GPS और अन्य वैश्विक नेविगेशन सिस्टम भी काम करते हैं।
क्षेत्रीय से वैश्विक खिलाड़ी बनने की दिशा में
अब तक NavIC एक क्षेत्रीय प्रणाली के रूप में कार्य कर रहा है। अमेरिका का GPS, रूस का GLONASS, चीन का BeiDou और यूरोपीय संघ का Galileo — सभी के पास 20 से अधिक उपग्रह हैं जो विश्वभर में 24x7 सेवाएं प्रदान करते हैं।
NavIC के पास फिलहाल भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप 8 सक्रिय उपग्रह हैं। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार, “वर्तमान में चार उपग्रह पोज़िशन, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT) सेवाएं दे रहे हैं, जबकि चार अन्य एकतरफा संदेश प्रसारण के लिए उपयोग में हैं।”
जनवरी 2025 में लॉन्च किया गया NVS-02 उपग्रह निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंच पाया था। NVS-03 के इसी वर्ष के अंत तक लॉन्च होने की योजना है, जबकि NVS-04 और NVS-05 अगले छह-छह महीने के अंतराल पर प्रक्षेपित किए जाएंगे, यह जानकारी अंतरिक्ष राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने दी।
2030–35 तक भविष्य का NavIC समूह 26 उपग्रहों का होगा, जो वैश्विक कवरेज और उन्नत सेवाएं प्रदान करेगा। इससे सिग्नल की शक्ति बढ़ेगी, नागरिक और एन्क्रिप्टेड दोनों प्रकार के नए सिग्नल जोड़े जाएंगे, और विश्वभर में ग्राउंड स्टेशनों की स्थापना होगी।
सितंबर 2023 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय ने एक हैदराबाद स्थित कंपनी के साथ समझौता किया है, जो पूरी तरह भारत में निर्मित NavIC-संगत चिपसेट तैयार करेगी।
NavIC को पहले भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) के नाम से जाना जाता था। यह प्रणाली 2018 में पूरी तरह से चालू हुई, जबकि इसका विचार 2006 में सामने आया था, जब सरकार ने लगभग 210 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से इस परियोजना को मंजूरी दी थी।
