Haryana Self Certification: उद्योगों को मिली ‘फास्ट-ट्रैक छूट’, मंजूरी में तेजी से कैसे बदल सकता है हरियाणा का औद्योगिक नक्शा
Haryana Self Certification: हरियाणा सरकार ने औद्योगिक मंजूरी की प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव करते हुए एक ऐसा कदम उठाया है, जो न केवल निवेशकों को राहत देगा, बल्कि राज्य की उद्योग नीति को एक नई दिशा भी दे सकता है। वर्षों से लागू जटिल अनुमोदन व्यवस्था को सरल करते हुए सरकार ने घोषणा की है कि अब तय औद्योगिक क्षेत्रों यानी ‘कनफर्मिंग ज़ोन’ में उद्योग लगाने के लिए किसी भी विभागीय जांच की जरूरत नहीं होगी।
गवर्नर प्रो. असीम कुमार घोष द्वारा जारी नए ऑर्डिनेंस में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उद्योग के लिए अनुमति ‘सेल्फ सर्टिफिकेशन’ से मिलेगी। मतलब - अब उद्योग लगाने वाले को खुद जानकारी देनी है, खुद जिम्मेदारी लेनी है, और अनुमति तुरंत मिल जाएगी। विधानसभा सत्र न होने के कारण यह बदलाव ऑर्डिनेंस के रूप में लागू किया गया है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार पर पिछले काफी समय से मंजूरी प्रक्रियाओं को सरल बनाने का दबाव था। निवेशक समूहों और उद्योग संगठनों की ओर से लगातार यह शिकायत आती रही कि हरियाणा में फाइलें मंजूरी की कतार में अटक जाती हैं, जिससे प्रोजेक्ट में देरी होती है। आखिरकार सरकार ने वह रास्ता अपनाया जिसे उद्योग जगत लंबे समय से मांग रहा था - तेज़, डिजिटल और बिना-झंझट मंजूरी प्रणाली।
कैसे बदले नियम और क्या बदला
1963 के कानून में संशोधन कर जो मॉडल लागू किया गया है, वह पारंपरिक प्रक्रिया से बिल्कुल अलग है। पहले औद्योगिक प्रोजेक्ट लगाने के लिए लंबा आवेदन, कागजी औपचारिकताएँ, साइट निरीक्षण, विभागीय जांच और ऊपरी स्तर की मंजूरी अनिवार्य थी। नतीजा - फाइलें टेबल दर टेबल घूमती रहतीं और निवेशक परेशान होते रहते। नई व्यवस्था में अब यह होगा: आवेदक ऑनलाइन पोर्टल पर अपनी यूनिट की जानकारी डालेगा, भूखंड का विवरण अपलोड करेगा, फीस जमा करेगा और उसी समय उसे अनुमति मिल जाएगी। अब ना जांच होगी और ना डायरेक्टर की मंजूरी की जरूरत होगी। आवेदन की फाइल भी अब डिजिटल होगी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, यह पहला मौका है जब किसी औद्योगिक ज़ोनिंग अनुमति को सेल्फ-सर्टिफिकेशन के मॉडल से जोड़ा गया है। अधिकारी इस मॉडल को ‘ट्रस्ट-बेस्ड इंडस्ट्रियल सिस्टम’ कह रहे हैं।
निवेशक पर विश्वास, लेकिन जवाबदेही भी बरकरार
ऑर्डिनेंस में साफ लिखा है कि यदि अनुमति सेल्फ-सर्टिफिकेशन के आधार पर दी गई है, तो उसके बाद किसी अधिकारी द्वारा कोई भी अनिवार्य जांच नहीं की जाएगी। यह उद्योग जगत के लिए राहत की बात जरूर है, लेकिन सरकार ने एक महत्वपूर्ण शर्त भी जोड़ी है—अगर कोई गलत जानकारी दी जाती है, तो कार्रवाई का अधिकार सरकार के पास रहेगा। यानी, नियमों में कोई ढील नहीं दी गई है, बस प्रक्रिया आसान की गई है। सरकार का तर्क है कि हम उद्योगों को आसानी देना चाहते हैं, पर जवाबदेही से छूट नहीं।
क्यों जरूरी था बदलाव
पिछले कुछ वर्षों में हरियाणा बड़े निवेश आकर्षित करने की होड़ में अन्य राज्यों से प्रतिस्पर्धा में पीछे छूट रहा था। उद्योगपति यह कहते आए हैं कि राज्य की मंजूरी प्रक्रिया देरी और कागजी बाधाओं से भरी रहती है। कई बार छोटे-छोटे निरीक्षणों के कारण महीनों तक प्रोजेक्ट रुका रहता था। इसके कारण निवेशक राज्य बदलने का मन बना लेते थे। नीति विशेषज्ञ बताते हैं कि सरकार ने पिछले दो सालों में उद्योगों से किए गए संवादों में बार-बार यही फीडबैक सुना - मंजूरी तेज करो, प्रक्रिया आसान बनाओ। इस ऑर्डिनेंस को उसी दिशा में उठाया गया मजबूत कदम माना जा रहा है।
नियम आसान, लेकिन नियंत्रण बरकरार
यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या बिना जांच के अनुमति देना जोखिम भरा नहीं होगा? लेकिन उच्च सरकारी अधिकारियों का कहना है कि सेल्फ-सर्टिफिकेशन मॉडल दुनिया के कई देशों में सफलतापूर्वक लागू है। सरकार का कहना है कि किसी भी उल्लंघन की स्थिति में रिकॉर्ड मौजूद रहेगा और कार्रवाई हो सकती है। इसलिए यह व्यवस्था स्वतंत्रता और नियंत्रण - दोनों का संतुलन बनाती है।
उद्योग माहौल में क्या बदलेगा
उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले का सीधा असर निवेश पर पड़ेगा। मंजूरी की गति बढ़ेगी तो प्रोजेक्ट जल्दी शुरू होंगे, रोजगार बढ़ेगा और औद्योगिक गतिविधियाँ तेज होंगी। हरियाणा के कई औद्योगिक क्लस्टर्स - गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक, बहादुरगढ़, पानीपत, करनाल, धारूहेड़ा और बल्लभगढ़ को इससे बड़ा लाभ मिल सकता है। छोटे और मध्यम उद्योगों को भी मंजूरी में लगने वाला समय और खर्च काफी कम होगा। एक अधिकारी ने ऑफ रिकॉर्ड कहा कि फाइलें अब टेबल पर नहीं धूल खाएंगी। हरियाणा की इंडस्ट्री मंजूरी की रफ्तार से खुद महसूस करेगी कि सिस्टम बदल गया है।
