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दिल का खतरा सामने, रोकथाम आसान… फिर भी मरीज लौटकर क्यों नहीं आते ?

Heart Health Explainer पीजीआई प्रिवेंटिव क्लिनिक की पूरी कहानी

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हृदय रोग आज देश में सबसे तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य चुनौतियों में शामिल हैं। डॉक्टर लगातार चेतावनी देते रहे हैं कि दिल की बीमारियां अचानक नहीं आतीं, बल्कि धीरे धीरे शरीर के भीतर चुपचाप बढ़ती रहती हैं।

इसी खतरे को देखते हुए पीजीआई चंडीगढ़ ने एक वर्ष पहले प्रिवेंटिव क्लिनिक शुरू की थी ताकि 18 से 40 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं में हृदय जोखिम समय रहते पहचाना जा सके और उन्हें स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सके।

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लेकिन एक साल का अनुभव एक बेहद चौंकाने वाला सच सामने लाता है। लोग पहली जांच तो करवा लेते हैं, पर कुछ ही दिनों बाद क्लिनिक में लौटकर आना बंद कर देते हैं। यानी खतरा भी मौजूद है और रोकथाम की सुविधा भी, फिर भी मरीजों का फॉलोअप बहुत कम है।

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क्लिनिक क्या करती है और क्यों जरूरी है

प्रिवेंटिव क्लिनिक में डॉक्टर, आहार विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक मिलकर हर व्यक्ति की विस्तृत जांच करते हैं। इसमें खानपान का विश्लेषण, तनाव का मूल्यांकन, रक्तचाप, शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच तथा शारीरिक गतिविधि की आदतों का आकलन शामिल है।
यह क्लिनिक बीमारियों का इलाज नहीं करती, बल्कि बीमारियों को आने से पहले रोकने की दिशा में काम करती है।
हृदय रोगों में शुरुआती हस्तक्षेप जितना जल्दी होता है, भविष्य का खतरा उतना ही कम हो जाता है।

फिर लोग बीच में आना क्यों छोड़ देते हैं

क्लिनिक के रिकॉर्ड बताते हैं कि लगभग 450 लोग जांच के लिए पहुंचे। लेकिन इनमें से सिर्फ कुछ लोग ही दूसरी या तीसरी बार वापस आए। अधिकतर मरीजों ने जांच शुरू करने के बाद क्लिनिक में आना बंद कर दिया। डॉक्टरों का कहना है कि इसके कई कारण हैं।

  • लक्षण न दिखने के कारण लोग स्वास्थ्य को गंभीरता से नहीं लेते।
  • कई लोग मान लेते हैं कि एक बार की जांच काफी है।
  • कुछ लोग समय और कतार से बचना चाहते हैं।
  • कुछ मरीज आर्थिक कारणों से पीछे हट जाते हैं।
  • कई लोग जीवनशैली सुधारने के सुझावों को लेकर असहज महसूस करते हैं।
  • दरअसल लोग यह सोचकर नहीं लौटते कि उन्हें कोई बड़ा खतरा नहीं है, जबकि हृदय रोग कई महीनों तक बिना किसी संकेत के बढ़ते रहते हैं।

जांचों में जो मिला, वह हकीकत को और गंभीर बनाता है

क्लिनिक में आए कई लोगों में अधिक वजन और मोटापा पाया गया। काफी लोगों का रक्तचाप इतना अधिक था कि उन्हें तुरंत नियंत्रण की जरूरत थी। अधिकांश लोग किसी भी प्रकार की नियमित शारीरिक गतिविधि नहीं करते थे।

इन आंकड़ों ने डॉक्टरों को स्पष्ट संकेत दिया कि हृदय जोखिम वास्तविक है, बढ़ रहा है और इसे समझने की मानसिकता अभी भी कमजोर है। क्लिनिक की इंचार्ज डॉक्टर नीलम कहती हैं ‘लोग शुरुआत में उत्साहित रहते हैं, लेकिन जब नियमित जांच और व्यवहार में बदलाव की जरूरत पड़ती है, तो वे धीरे धीरे क्लिनिक आना बंद कर देते हैं। यही प्रवृत्ति सबसे बड़ा खतरा है।’

बीच में रुक जाना कितना नुकसान पहुंचाता है

हृदय रोग धीरे धीरे बढ़ते हैं। पहली जांच सिर्फ शुरुआत होती है।
पूरी तस्वीर तभी बनती है जब व्यक्ति कुछ महीनों तक लगातार फॉलोअप करे, अपनी आदतों में बदलाव लाए और डॉक्टर सलाह के प्रभाव को समय समय पर परख सकें।

जब मरीज बीच में आना बंद कर देते हैं, तब जोखिम की पहचान अधूरी रह जाती है। सुधार रुक जाता है
और भविष्य में दिल की बीमारी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यानी बीच में छोड़ देना सिर्फ एक अपॉइंटमेंट छोड़ना नहीं, बल्कि अपने हृदय के स्वास्थ्य को अधर में छोड़ देना है।

क्लिनिक अब क्या सुधार करने जा रही है

पीजीआई चंडीगढ़ इस क्लिनिक को और प्रभावी बनाने के लिए कई बदलाव कर रहा है। पंजीकरण प्रक्रिया सरल की जा रही है, जांच की गति तेज की जा रही है और क्लिनिक की जानकारी अधिक लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही समुदाय आधारित जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि लोग हृदय रोगों की गंभीरता समझें और रोकथाम को महत्व दें।

जागरूकता कार्यक्रम 29 नवंबर को

हृदय स्वास्थ्य को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाने के लिए पीजीआईआईएमईआर ने 29 नवंबर 2025 को एक विशेष जन-जागरूकता वार्ता आयोजित की है। इसमें मुख्य अतिथि पीजीआई के निदेशक प्रो. विवेक लाल होंगे।
कार्यक्रम दोपहर दो बजे से चार बजे तक, नेहरू ब्लॉक, ग्राउंड फ्लोर, लेक्चर थिएटर 1, पीजीआईआईएमईआर चंडीगढ़ में होगा।

संस्थान ने युवाओं, नागरिकों और परिवारों से अपील की है कि वे इस कार्यक्रम में शामिल होकर अपने हृदय की सुरक्षा के लिए जागरूक कदम उठाएं।

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