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Golden Milestone in Neurosurgery पीजीआई के डॉ. एस. एस. डंडापानी ने पूरे किए 2000 मिनिमली इनवेसिव न्यूरोसर्जरी केस

Golden Milestone in Neurosurgery  पीजीआई चंडीगढ़ के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. एस. एस. डंडापानी ने चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। उन्होंने 2000 एंडोस्कोपिक मिनिमली इनवेसिव न्यूरोसर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की हैं। यह उपलब्धि भारत में अपने आप...

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Golden Milestone in Neurosurgery  पीजीआई चंडीगढ़ के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. एस. एस. डंडापानी ने चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। उन्होंने 2000 एंडोस्कोपिक मिनिमली इनवेसिव न्यूरोसर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की हैं। यह उपलब्धि भारत में अपने आप में एक असाधारण रिकॉर्ड है और विश्व स्तर पर भी अत्यंत प्रभावशाली मानी जा रही है।

यह मील का पत्थर न केवल संस्थान के लिए गौरव का विषय है बल्कि उन हजारों मरीजों की आशा का प्रतीक भी है जिनका जीवन इन सर्जरी से नया आकार पाया।

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पीजीआई चंडीगढ़ के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. एस. एस. डंडापानी।

सर्जरी में क्रांति : जहां तकनीक मिली संवेदना से एंडोस्कोपिक और कीहोल मिनिमली इनवेसिव तकनीक ने न्यूरोसर्जरी को नई दिशा दी है। हाई-डेफिनिशन कैमरा और एडवांस्ड नेविगेशन सिस्टम की मदद से अब मस्तिष्क और रीढ़ की जटिल सर्जरी अत्यंत सटीक और सुरक्षित ढंग से की जा रही हैं।

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इन तकनीकों के प्रमुख लाभ

  • छोटे चीरे, कम निशान और बेहतर कॉस्मेटिक परिणाम
  • सर्जरी के दौरान न्यूनतम रक्तस्राव
  • तेज रिकवरी और अस्पताल में कम समय
  • गहराई वाले या जटिल हिस्सों तक सटीक पहुंच

डॉ. डंडापानी कहते हैं, ‘मिनिमली इनवेसिव सर्जरी केवल तकनीकी बदलाव नहीं बल्कि सोच का विकास है, जहां मरीज की सुरक्षा और जीवन की गुणवत्ता सर्वोच्च प्राथमिकता होती है।’

हर ऑपरेशन एक कहानी : 2000 जिंदगियों का पुनर्जन्म (2000 Lives, 2000 Success Stories)

इन सर्जरी में पिट्यूटरी ट्यूमर, क्रेनियोफैरिंजियोमा, स्कल बेस ट्यूमर (मेनिंजियोमा), हाइड्रोसेफेलस, वेंट्रिकुलर घाव, स्पाइनल ट्यूमर और डिस्क रोग जैसे जटिल मामलों का उपचार शामिल है।

हर केस के पीछे एक समर्पित टीम की अथक मेहनत और सटीक योजना रही है। टीम में शामिल विशेषज्ञ:

डॉ. सुषांत और डॉ. रिजुनीता: एंडोस्कोपिक नासल सर्जरी विशेषज्ञ

डॉ. सुषांत और डॉ. चंद्रशेखर: वॉल्ट (खोपड़ी के ऊपरी हिस्से) से एंडोस्कोपिक सर्जरी विशेषज्ञ

डॉ. चंद्रशेखर: एंडोस्कोपिक और मिनिमली इनवेसिव स्पाइनल सर्जरी विशेषज्ञ

डॉ. डंडापानी बताते हैं, ‘हमारी हर सर्जरी केवल एक मेडिकल केस नहीं बल्कि एक व्यक्ति की उम्मीद और परिवार की मुस्कान से जुड़ी होती है।’

नवाचार के कीर्तिमान : जब भारत बना उदाहरण (Pioneering Innovations on Global Map)

डॉ. डंडापानी अब तक 215 से अधिक शोध पत्र प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नलों में प्रकाशित कर चुके हैं। इनमें कई सर्जरी विश्व में पहली बार की गईं और अब चिकित्सा पाठ्यक्रमों में शामिल हैं।

प्रमुख उपलब्धियां

  • 16 माह के बच्चे में पहली बार एंडोस्कोपिक नाक के रास्ते बड़ी क्रेनियोफैरिंजियोमा सर्जरी
  • विशाल स्पाइनल इंट्राड्यूरल ट्यूमर का पहला एंडोस्कोपिक उपचार
  • विशाल पीनियल ट्यूमर का पहला एंडोस्कोपिक असिस्टेड ऑपरेशन
  • एंटीरियर स्पाइनल मेनिंजियोमा की पहली मिनिमली इनवेसिव सर्जरी
  • मैक्यून-ऑल्ब्राइट सिंड्रोम में विशाल पिट्यूटरी ट्यूमर की पहली एंडोस्कोपिक नाक सर्जरी
  • पूर्ण डॉर्सल स्पॉन्डायलोप्टोसिस की पहली मिनिमली इनवेसिव सर्जरी
  • विशाल ब्रेन ट्यूमर के लिए अभिनव कीहोल तकनीक

इन उपलब्धियों ने न केवल चिकित्सा पद्धतियों को नई दिशा दी है बल्कि भारत को विश्व न्यूरोसर्जरी मानचित्र पर एक विशिष्ट पहचान भी दिलाई है।

नेतृत्व और वैश्विक पहचान

डॉ. डंडापानी ने वाशिंगटन और बॉस्टन सहित कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एंडोस्कोपिक सर्जरी पर व्याख्यान दिए हैं। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध न्यूरोसर्जरी टेक्स्टबुक्स में अध्याय लिखे हैं और भारत की ओर से वैश्विक चिकित्सा समुदाय में प्रतिनिधित्व किया है।

वे न्यूरोएंडोस्कोपी सोसाइटी ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष और स्कल बेस सर्जरी सोसाइटी ऑफ इंडिया की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं। उनकी अगुवाई में पीजीआईएमईआर का न्यूरोसर्जरी विभाग आज एशिया के अग्रणी शिक्षण और अनुसंधान केंद्रों में गिना जाता है।

डॉ. डंडापानी कहते हैं, ‘यह 2000 सर्जरी सिर्फ आंकड़ा नहीं बल्कि 2000 जिंदगियों का पुनर्जन्म है। हर वह मरीज जो मुस्कुराते हुए अस्पताल से घर लौटा, वही हमारी सबसे बड़ी सफलता है।’

एंडोस्कोपी से रोबोटिक्स तक

आने वाले वर्षों में उनकी टीम का लक्ष्य एंडोस्कोपिक और रोबोटिक तकनीक के संयोजन से और भी उन्नत न्यूरोसर्जरी पद्धतियों का विकास करना है। इससे सर्जरी और अधिक सटीक, सुरक्षित और मानव-केंद्रित बन सकेगी।

डॉ. डंडापानी का यह मील का पत्थर न केवल पीजीआईएमईआर की उपलब्धि है बल्कि भारतीय चिकित्सा के आत्मविश्वास का प्रतीक भी है।

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