ट्रेंडिंगमुख्य समाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाफीचरसंपादकीयआपकी रायटिप्पणी

Explainer: अध्यक्ष चुने जाने के दो महीने में ही अंदरूनी कलह की शिकार हुई HSGMC

तीन दशकों से भी अधिक समय तक चले संघर्ष के बाद बनी थी हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति
गुरुद्वारा छेवीं पातशाही, कुरूक्षेत्र। फाइल फोटो
Advertisement

Haryana Sikh Gurdwara Management Committee: हरियाणा में सिखों को अलग चुनी हुई गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (HSGMC) पाने में तीन दशकों से भी अधिक समय तक चले संघर्ष, कानूनी लड़ाइयों और सामुदायिक लामबंदी की जरूरत पड़ी, लेकिन समिति के अध्यक्ष चुने जाने और नए पदाधिकारियों के गठन के महज दो महीने के भीतर ही समुदाय को यह संस्था संकट में नजर आने लगी है। पूर्व बजट में वित्तीय गड़बड़ी के आरोपों के चलते संस्था के भीतर आंतरिक कलह उभर आई है।

हरियाणा में अलग सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की मांग कब शुरू हुई?

हरियाणा में गुरुद्वारों का प्रबंधन करने के लिए अलग समिति की मांग 1990 के दशक के अंत में शुरू हुई थी, जब समुदाय के लोगों ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) से स्वायत्तता की मांग की। इस मुद्दे को 2005 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समर्थन दिया और वादा किया कि वह इस मांग को पूरा करेगी।

Advertisement

इस दिशा में बड़ी सफलता 14 जुलाई 2014 को मिली, जब भूपिंदर सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने हरियाणा सिख गुरुद्वारा अधिनियम पारित किया और जगदीश सिंह झिंडा की अध्यक्षता में 41 सदस्यीय अस्थायी समिति का गठन किया। हालांकि, इस अधिनियम को अदालत में चुनौती दी गई।

2020 में जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल अध्यक्ष बने, और फिर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया, जिससे भाजपा सरकार को नई अस्थायी समिति नियुक्त करने का रास्ता मिला। करमजीत सिंह (यमुनानगर) को अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिन्हें बाद में भूपिंदर सिंह असंध ने स्थानापन्न किया। लगभग तीन दशकों की इस लंबी लड़ाई में कानूनी, राजनीतिक और सामाजिक मोर्चों पर संघर्ष के बाद आखिरकार 19 जनवरी 2025 को पहली बार चुनाव कराए गए।

HSGMC के पहले प्रत्यक्ष चुनाव का परिणाम क्या रहा?

हरियाणा सिख समुदाय ने पहले प्रत्यक्ष चुनाव में जोश के साथ भाग लिया और 40 सदस्य चुने। इनमें से 22 स्वतंत्र उम्मीदवार, 9 झिंडा के पंथक दल से, 6 हरियाणा सिख पंथक दल से, 3 दिदार सिंह नलवी की सिख समाज संस्था से चुने गए। चुनाव के बाद कुछ स्वतंत्र उम्मीदवारों ने अकाल पंथक मोर्चा बनाकर सिख पंथक दल के 6 सदस्यों के साथ गठबंधन किया। लेकिन समय के साथ कुछ सदस्य गुट बदलकर अन्य धड़ों में शामिल हो गए। इस बीच, हाउस ने 9 अन्य सदस्यों को जोड़ा, जिससे कुल सदस्यों की संख्या 49 हो गई। इसके बाद, जनरल हाउस ने जगदीश सिंह झिंडा को अध्यक्ष के रूप में चुना। अब, चुनाव के दो महीने बाद ही वित्तीय गड़बड़ियों के आरोपों ने इस संस्था की विश्वसनीयता और कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे अंदरूनी विवाद उभर आए हैं।

HSGMC में जारी संकट की वजह क्या है?

23 जून को कुरुक्षेत्र स्थित HSGMC मुख्यालय में हुई बैठक के दौरान 2024-25 के 104 करोड़ रुपये के बजट को जब अध्यक्ष जगदीश सिंह झिंडा की अध्यक्षता में सदन में पेश किया गया, तो कुछ सदस्यों ने विभिन्न मदों पर खर्च को लेकर सवाल उठाए। उस समय भूपिंदर सिंह असंध HSGMC के अध्यक्ष थे और जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल धर्म प्रचार समिति के अध्यक्ष।

सदस्यों का आरोप था कि खर्चों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है। इसके बाद झिंडा के नेतृत्व में जनरल हाउस ने एक सात सदस्यीय समिति गठित की, जिसे पिछले साल के बजट की जांच कर एक महीने में रिपोर्ट देने का जिम्मा सौंपा गया। झिंडा ने पूर्व अध्यक्ष असंध और जत्थेदार दादूवाल पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाया था — दावा है कि पिछले बजट में केवल 21 लाख की स्वीकृति के बावजूद 3.75 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए, खासकर ग्रामीण गुरुद्वारों की मदद पर।

दादूवाल और असंध ने इन आरोपों का क्या जवाब दिया है?

सात सदस्यीय समिति द्वारा पूर्व बजट की ऑडिट के बीच, दादूवाल और असंध दोनों ने झिंडा के आरोपों को “बेबुनियाद” और “राजनीति से प्रेरित” बताया। उन्होंने यहां तक कहा कि झिंडा की मानसिक स्थिति पर सवाल उठाए जाने चाहिए। दोनों पूर्व अध्यक्षों ने 2014 से अब तक की HSGMC की आय और खर्च की पूरी जांच की मांग की है।

उन्होंने 26 जून को आयोजित कार्यक्रम में चंदे के दुरुपयोग की जांच, सदन के सदस्यों का डोप टेस्ट और यदि आरोप सिद्ध न हों तो झिंडा के इस्तीफे की भी मांग की है। ज्ञात रहे, झिंडा 2014 से 2024 तक HSGMC के अध्यक्ष रह चुके हैं। बाद में दादूवाल, करमजीत सिंह और असंध अध्यक्ष रहे हैं।

झिंडा ने सभी उप-समितियों को क्यों भंग किया?

झिंडा ने HSGMC की सभी उप-समितियों को भंग कर दिया और धर्म प्रचार, आईटी, शिक्षा, खरीद और कृषि जैसी शाखाओं के अध्यक्षों की नियुक्तियां रद्द कर दीं। उन्होंने प्रक्रियात्मक अनियमितताओं का हवाला दिया। कुछ सदस्यों ने इन नियुक्तियों की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए, यह कहते हुए कि ये झिंडा के अधिकार क्षेत्र से बाहर थीं और ऐसे निर्णय केवल सचिव द्वारा किए जाने चाहिए थे। संभावित कानूनी कार्रवाई और टकराव से बचने के लिए झिंडा ने सभी समितियां भंग कर दीं। अब नई समितियां कानून के अनुसार जल्द गठित की जाएंगी।

इस अंदरूनी कलह के क्या प्रभाव हो सकते हैं?

HSGMC में जारी यह आंतरिक कलह समिति की सामान्य कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती है। इससे गुरुद्वारा प्रबंधन द्वारा प्रस्तावित विकास कार्य और धार्मिक पहलें धीमी पड़ सकती हैं और समिति की साख और एकजुटता कमजोर हो सकती है। (रिपोर्टः प्रवीण अरोड़ा)

Advertisement
Tags :
haryana newsHaryana Sikh Gurdwara Management CommitteeHindi NewsHSGMCSikh Panthएचएसजीएमसीसिख पंथहरियाणा समाचारहरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह असंधहिंदी समाचार