Explainer : 45 साल के नितिन नबीन ही क्यों... क्या है भाजपा की बड़ी संगठनात्मक और चुनावी रणनीति
भारतीय जनता पार्टी ने बिहार सरकार के मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर एक साथ कई राजनीतिक संदेश दिए हैं। 45 वर्ष की उम्र में इस पद पर पहुंचने वाले नितिन नवीन न सिर्फ भाजपा के सबसे युवा कार्यकारी अध्यक्ष बने हैं, बल्कि वे उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हो गए हैं, जिन्हें पार्टी भविष्य की केंद्रीय भूमिका के लिए तैयार कर रही है। यह फैसला सिर्फ संगठनात्मक बदलाव नहीं, बल्कि 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों और पूर्वी भारत की राजनीति से जुड़ी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
नितिन नबीन की नियुक्ति उस समय हुई है, जब भाजपा अपने शीर्ष नेतृत्व में संतुलन, अनुशासन और युवा नेतृत्व को लेकर नए सिरे से समीकरण गढ़ रही है। पार्टी के भीतर परंपरा रही है कि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आगे चलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता है। जेपी नड्डा भी इसी रास्ते से शीर्ष पद तक पहुंचे थे। ऐसे में नितिन नवीन की भूमिका आने वाले समय में और महत्वपूर्ण हो जाती है।
अचानक आया फोन और बदला पूरा राजनीतिक दिन
सूत्रों के अनुसार, नितिन नबीन को खुद भी इस नियुक्ति की पहले से जानकारी नहीं थी। वे पटना में अपने रोजमर्रा के कार्यक्रमों में व्यस्त थे। दोपहर करीब तीन बजे एक फोन आया, जिसके बाद उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए और सीधे आवास पहुंचे। इसके बाद एक के बाद एक पार्टी के वरिष्ठ नेता उनके आवास पर पहुंचने लगे।
डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी सबसे पहले पहुंचे। उनके सामने ही नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की सूचना दी गई। पहली औपचारिक बधाई भी सम्राट चौधरी ने ही दी। यह पूरा घटनाक्रम बताता है कि फैसला पूरी तरह केंद्रीय नेतृत्व स्तर पर लिया गया था और इसे बेहद गोपनीय तरीके से अंजाम दिया गया।
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शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद और आज्ञाकारी नेता
नितिन नबीन को भाजपा संगठन में ऐसा नेता माना जाता है, जो केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशों को बिना किसी टकराव के लागू करते हैं। बिहार सरकार में भी वे सामंजस्य और संतुलन के साथ काम करने वाले मंत्री के रूप में पहचाने जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, उनका व्यक्तित्व ऐसा नहीं है कि वे स्वतंत्र शक्ति केंद्र के रूप में उभरें।
यही वजह है कि वे मोदी-शाह की रणनीति के अनुरूप काम करने वाले भरोसेमंद चेहरा माने जाते हैं। पार्टी नेतृत्व के लिए यह गुण बेहद अहम होता है, खासकर उस दौर में जब संगठन को एक दिशा में साधकर रखना जरूरी हो।
सामाजिक संतुलन: ओबीसी सत्ता, फॉरवर्ड संगठन
भाजपा ने इस नियुक्ति के जरिए एक बार फिर सत्ता और संगठन के बीच सामाजिक संतुलन साधा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी समाज से आते हैं, जबकि संगठन की बड़ी जिम्मेदारी फॉरवर्ड समाज के नेता को दी गई है। जेपी नड्डा के बाद कायस्थ समाज से आने वाले नितिन नबीन को आगे कर भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने पारंपरिक कोर वोटर को नजरअंदाज नहीं कर रही।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, भाजपा जब शुरुआती दौर में थी, तब उसका आधार फॉरवर्ड समाज था। अब पार्टी शीर्ष पर है, लेकिन वह उस सामाजिक आधार को कमजोर नहीं होने देना चाहती। नितिन नवीन की नियुक्ति इसी संतुलन का उदाहरण मानी जा रही है।
लो प्रोफाइल नेता, लेकिन संगठन में पूरी पकड़
पांच बार विधायक और तीन बार मंत्री रहने के बावजूद नितिन नबीन ने हमेशा लो प्रोफाइल राजनीति की है। उनसे मिलना कार्यकर्ताओं, नेताओं और आम लोगों के लिए आसान माना जाता है। वरिष्ठ पत्रकारों के मुताबिक, वे बिना किसी औपचारिकता के लोगों से मिल लेते हैं और कार्यकर्ताओं के लिए उनका दरवाजा हर समय खुला रहता है।
उनके पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा भी इसी तरह की राजनीति के लिए जाने जाते थे। परिवार का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पुराना जुड़ाव रहा है, जिससे संगठन के भीतर उनकी स्वीकार्यता और मजबूत होती है।
छत्तीसगढ़ चुनाव में संगठनात्मक सफलता
नितिन नबीन को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी का प्रभारी बनाया गया था। कांग्रेस के मजबूत गढ़ माने जाने वाले राज्य में भाजपा की सरकार बनना उनके लिए बड़ा संगठनात्मक टेस्ट था। इस चुनाव में उन्होंने बूथ स्तर पर कार्यकर्ता नेटवर्क मजबूत किया, मोहल्ला बैठकों और छोटे कार्यक्रमों के जरिए मतदाताओं तक सीधा संपर्क बनाया।
व्यक्तिगत संवाद और माइक्रो लेवल मैनेजमेंट का फायदा भाजपा को मिला और पार्टी सत्ता में लौटी। इसी वजह से नितिन नवीन को संगठनात्मक रणनीतिकार के तौर पर देखा जाने लगा।
पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर पर विशेष फोकस
नितिन नबीन बिहार के पहले ऐसे नेता हैं, जिन्हें भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर की इतनी बड़ी संगठनात्मक जिम्मेदारी दी है। इसे पूर्वी भारत की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। भाजपा का फोकस अब बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों पर है।
पार्टी चाहती है कि इन राज्यों को एक साझा राजनीतिक नैरेटिव में जोड़ा जाए। 2026 में पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत को मजबूत करना भाजपा की प्राथमिकता है। नितिन नवीन पहले सिक्किम के चुनाव प्रभारी रह चुके हैं, जिससे उन्हें इस क्षेत्र का संगठनात्मक अनुभव भी है।
कार्यकर्ता से राष्ट्रीय भूमिका तक
नितिन नबीन की राजनीति अचानक उभरने की कहानी नहीं है। 23 मई 1980 को पटना में जन्मे नितिन नवीन ने राजनीति की शुरुआत भारतीय जनता युवा मोर्चा से की। वे युवा मोर्चा में राष्ट्रीय महामंत्री और बिहार प्रदेश अध्यक्ष रहे। इस दौरान उन्होंने कई युवा आंदोलनों और संगठन विस्तार में सक्रिय भूमिका निभाई।
2006 में पिता के निधन के बाद उन्होंने पटना पश्चिम, जो अब बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र है, से उपचुनाव जीतकर पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया। इसके बाद 2010, 2015, 2020 और 2025 में वे लगातार चुनाव जीतते रहे और पांच बार विधायक बने।
2020 के चुनाव में उन्होंने लव सिन्हा को हराया। 2025 में उन्हें 98,299 वोट मिले और उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल की रेखा कुमारी को 51,936 मतों से पराजित किया। यह जीत शहरी मतदाताओं के बीच उनकी मजबूत पकड़ को दर्शाती है।
सरकार में भूमिका और एक्जीक्यूशन की पहचान
नितिन नबीन 2021 से 2022 तक बिहार सरकार में सड़क निर्माण मंत्री रहे। इसके बाद 2024 से 2025 तक उन्होंने शहरी विकास एवं आवास तथा विधि एवं न्याय मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। 2025 में नवगठित बिहार सरकार में उन्हें फिर से सड़क निर्माण मंत्री बनाया गया।
उनकी पहचान ऐसे मंत्री के रूप में बनी, जो फैसलों को जमीन पर उतारने में विश्वास रखते हैं। शहरी सड़कों, ट्रैफिक, नगर सेवाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर को उन्होंने लगातार राजनीतिक एजेंडा बनाया। इसी वजह से शहरी मध्य वर्ग और व्यापारिक समुदाय में उनकी स्वीकार्यता बनी।
आगे की राह: कार्यकारी अध्यक्ष से राष्ट्रीय अध्यक्ष तक
भाजपा में परंपरा रही है कि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आगे चलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता है। जेपी नड्डा भी पहले इसी भूमिका में थे। यदि नितिन नवीन औपचारिक रूप से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं, तो वे भाजपा के इतिहास में सबसे युवा अध्यक्ष होंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर बधाई दी है। नितिन नवीन ने भी इस जिम्मेदारी को कार्यकर्ताओं की मेहनत का परिणाम बताते हुए केंद्रीय नेतृत्व का आभार जताया है।
