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Explainer: हाई कोर्ट ने पंजाब में ‘आप’ की लैंड पूलिंग पॉलिसी पर क्यों लगाई रोक

Land Pooling Policy: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब की लैंड पूलिंग नीति-2025 पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार की ‘जल्दबाजी’ की आलोचना की। अदालत ने कहा कि यह नीति आवश्यक ‘सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’, समय-सीमा और शिकायत...
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Land Pooling Policy: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब की लैंड पूलिंग नीति-2025 पर रोक लगाते हुए राज्य सरकार की ‘जल्दबाजी’ की आलोचना की। अदालत ने कहा कि यह नीति आवश्यक ‘सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’, समय-सीमा और शिकायत निवारण व्यवस्था के बिना ही जल्दबाजी में अधिसूचित कर दी गई।

हाई कोर्ट ने चेताया कि योजना में सरकार ने हजारों एकड़ बहुफसली उपजाऊ भूमि अधिग्रहित करने का प्रयास किया, भूमिहीनों और मजदूरों के पुनर्वास को नजरअंदाज किया, बड़े पैमाने पर प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए बजट समर्थन की कमी रही और इससे पिछली असफलताओं को दोहराने का खतरा है, जब जमीन मालिकों को विकसित प्लॉट पाने के लिए दस साल से अधिक इंतजार करना पड़ा।

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अदालत ने क्या कहा?

जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की डिवीजन बेंच ने कहा— “पहली नजर में लगता है कि नीति को जल्दबाजी में लागू किया गया और सामाजिक व पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, समय-सीमा और शिकायत निवारण प्रक्रिया जैसी चिंताओं का समाधान अधिसूचना से पहले किया जाना चाहिए था।”

जजों ने पाया कि राज्य ने बिना SIA (Social Impact Assessment) और EIA (Environmental Impact Assessment) के विकास के लिए “हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि” अधिग्रहित करने का प्रस्ताव बनाया। अदालत ने जोर दिया कि ऐसी भूमि का अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के तहत केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है और इसके सामाजिक प्रभाव को गंभीरता से देखना होगा।

अदालत की चिंता

राज्य का तर्क था कि SIA और EIA बाद में किए जाएंगे, जब योजना अपनाने वाले जमीन मालिकों की संख्या स्पष्ट होगी। बेंच ने इसे खारिज किया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि शहरी विकास से पहले ये अध्ययन पूरा होना जरूरी है। अदालत ने समय-सीमा, शिकायत निवारण व्यवस्था और भूमिहीन मजदूरों, कारीगरों, मनरेगा श्रमिकों और अन्य आश्रितों के पुनर्वास के अभाव को गंभीर खामी बताया। भूमि मालिकों को गुजारा भत्ता देने का प्रस्ताव था, लेकिन गैर-मालिकों के लिए कोई प्रावधान नहीं था, जिनकी रोजी-रोटी भूमि पर निर्भर है।

कोर्ट मित्र (Amicus Curiae) का पक्ष

वरिष्ठ अधिवक्ता शैलेंद्र जैन ने राज्य के “पूरी तरह स्वैच्छिक” योजना वाले दावे को गलत ठहराया और नीति के उस प्रावधान का हवाला दिया, जो अधिनियम 2013 के तहत अनिवार्य अधिग्रहण की अनुमति देता है। उन्होंने कहा कि यह नीति अधिनियम में ‘प्रोजेक्ट’ की परिभाषा में आती है, जिससे SIA और EIA अनिवार्य हो जाते हैं।

वित्तीय स्थिति

बेंच ने नोट किया कि विकास प्राधिकरण भूमि विकसित करेंगे, लेकिन बजट प्रावधान नहीं हैं। अदालत के मित्र ने कहा कि केवल एक जिले में ही भूमि विकास के लिए लगभग 10,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी, जबकि कोई वित्तीय योजना या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।

पिछले अनुभव का महत्व

अदालत ने पिछली लैंड पूलिंग योजनाओं की नाकामियों का जिक्र किया। कई मामलों में विकसित प्लॉट दस साल बाद भी आवंटित नहीं हुए। 2018 की एक याचिका में 2015 में अधिग्रहित भूमि पर मोहाली के सेक्टर 90 और 91 में न विकास हुआ, न आवंटन।

आगे क्या?

अगली सुनवाई 10 सितंबर को होगी और राज्य सहित अन्य प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने की अनुमति दी गई है।

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