Explainer: जुलाई में अधूरी रही मानसून की मेहरबानी, अब अगस्त पर नजर
Haryana Weather: जैसे ही अगस्त की शुरुआत हुई पूरे राज्य में बारिश की बौछार ने लोगों को सुबह-सुबह राहत पहुंचाई। जुलाई माह के दौरान राज्य में मानसून की बारिश असमान रूप से हुई। कुछ जिलों में अच्छी बारिश दर्ज की गई, जबकि अन्य जिलों, खासकर धान उत्पादक क्षेत्रों में, सामान्य से कम वर्षा हुई। हालांकि, इन क्षेत्रों के किसान अब उम्मीद कर रहे हैं कि अगस्त की बारिश इस कमी को कुछ हद तक पूरा कर देगी, खासकर राष्ट्रीय राजमार्ग के आसपास और कम बारिश वाले इलाकों में।
हरियाणा में जुलाई के दौरान वर्षा की स्थिति कैसी रही
जुलाई के अंतिम दिन राज्य के अधिकांश जिलों में व्यापक बारिश दर्ज की गई, जिससे गर्म और उमस भरे मौसम से राहत मिली। हालांकि, भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़े बताते हैं कि जुलाई में मानसून ने किसानों, विशेष रूप से धान उत्पादक क्षेत्रों के किसानों को निराश किया। जुलाई के अंतिम दिन और अगस्त के पहले दिन की बारिश से कुछ राहत जरूर मिली।
हरियाणा के किन क्षेत्रों में अच्छी बारिश हुई
राज्य के दक्षिणी जिलों में अच्छी बारिश दर्ज की गई। महेंद्रगढ़ जिले में 31 जुलाई सुबह 8 बजे तक 401.2 मिमी बारिश हुई, जबकि सामान्य बारिश 143 मिमी मानी जाती है। चरखी दादरी जिले में 313.7 मिमी वर्षा हुई, जो सामान्य 124 मिमी से काफी अधिक है। वहीं, नूंह जिले में जुलाई में 329.2 मिमी वर्षा हुई, जबकि सामान्य बारिश 151.8 मिमी होती है। इन क्षेत्रों में समय पर और भरपूर बारिश होने से बाजरा और कपास जैसी फसलों की बुवाई और खेती के लिए अनुकूल स्थिति बनी।
इन जिलों में कम हुई बारिश
जुलाई माह के दौरान करनाल जिले में सामान्य 183 मिमी की तुलना में केवल 101.5 मिमी वर्षा हुई। अंबाला में 293 मिमी के मुकाबले 126.4 मिमी, कैथल में 125.3 मिमी की तुलना में 100.4 मिमी, जींद में 133 मिमी के मुकाबले 91.4 मिमी और यमुनानगर जिले में सामान्य 323 मिमी के मुकाबले केवल 208.6 मिमी बारिश दर्ज की गई। इन क्षेत्रों में धान की खेती प्रमुख है, जिसे लगातार और पर्याप्त जल की आवश्यकता होती है।
बारिश के पैटर्न का कृषि पर असर
राज्य के दक्षिणी जिलों में अच्छी वर्षा हुई जिससे खरीफ फसलों जैसे बाजरा, कपास और ग्वार की समय पर बुवाई संभव हो सकी। इससे सिंचाई की आवश्यकता कम हुई और फसलों की स्थिति सुधरी, लेकिन धान उत्पादक जिलों में बारिश की कमी के कारण किसानों की भूजल पर निर्भरता बढ़ गई, सिंचाई लागत में वृद्धि हुई और गिरते जल स्तर को लेकर चिंता भी बढ़ी, जो दीर्घकालिक कृषि स्थिरता के लिए खतरा हो सकता है।
कई जगह दोबारा करनी पड़ी धान की रोपाई
धान उत्पादक क्षेत्रों में कम वर्षा के चलते फसलें ठीक से नहीं बढ़ पाईं। जल्दी पकने वाली किस्मों में समय से पहले फूल आ गए और कल्लों की संख्या कम रही। कई क्षेत्रों में किसानों को दोबारा धान की रोपाई करनी पड़ी। इस दौरान किसानों को अपने खेतों की सिंचाई के लिए भूजल का सहारा लेना पड़ा।
बारिश का पूर्वानुमान
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने आने वाले दिनों में राज्य भर में और बारिश होने की संभावना जताई है। इससे उन धान उत्पादक किसानों में आशा जगी है, जिन्हें जुलाई में कम वर्षा के कारण नुकसान झेलना पड़ा था।