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Explainer: सुखना में तेंदुओं की दस्तक... संरक्षण की जीत या नयी चुनौती की आहट!

सुखना झील के कैचमेंट क्षेत्र में लगभग 26 वर्ग किलोमीटर में फैला है यह अभयारण्य

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Sukhna Wildlife Sanctuary: सुखना वन्यजीव अभयारण्य में तेंदुओं की स्थायी मौजूदगी एक अच्छी खबर भी है और एक गंभीर संकेत भी। यह अच्छी खबर इसलिए है क्योंकि यह दर्शाती है कि वर्षों की निगरानी, संरक्षण और प्राकृतिक पुनरुत्थान के बाद यह जंगल दोबारा संतुलन की स्थिति में लौट आया है। वहीं चिंता इसलिए है क्योंकि यह जंगल अब शहर की घनी आबादी के बेहद करीब है, जहां इंसानी गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं।

विशेषज्ञ इसे एक स्वस्थ होते जंगल (Healthy Forest) का संकेत मान रहे हैं, जबकि वन विभाग मानव वन्यजीव संतुलन को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरत रहा है।

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सुखना झील के कैचमेंट क्षेत्र में लगभग 26 वर्ग किलोमीटर में फैला यह अभयारण्य अब उस मोड़ पर खड़ा है, जहां जैव विविधता की इस सफलता को सुरक्षित रखने के लिए संरक्षण के साथ निरंतर और सतर्क निगरानी भी उतनी ही जरूरी हो गई है।

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वन्यजीव गणना ने क्या तस्वीर दिखाई

सुखना वन्यजीव अभयारण्य में पहली वन्यजीव गणना वर्ष 2010 में कराई गई थी। दूसरी गणना वर्ष 2020 में प्रस्तावित थी, लेकिन कोविड महामारी और लॉकडाउन के कारण यह नहीं हो सकी। इसके बाद मई 2021 में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की तकनीकी सहायता से दूसरा सर्वे कराया गया।

डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट के अनुसार, उस समय सांभर यहां सबसे अधिक संख्या में पाया जाने वाला खुरधारी जीव था। इसकी घनत्व दर देश के प्रतिष्ठित राजाजी टाइगर रिजर्व के बराबर आंकी गई, जिसे किसी भी वन क्षेत्र के लिए एक मजबूत और सकारात्मक संकेत माना जाता है।

पहले सर्वे में तेंदुआ क्यों नहीं दिखा

पहली गणना के दौरान सर्वे टीम ने प्रत्यक्ष साक्ष्यों और अप्रत्यक्ष संकेतों के आधार पर नौ स्तनधारी और 65 पक्षी प्रजातियों की पहचान की थी। उस समय अभयारण्य में सांभर की संख्या लगभग 1000 से 1200 और मोर की संख्या 900 से 1100 के बीच आंकी गई थी। हालांकि तेंदुआ प्रत्यक्ष रूप से नजर नहीं आया था।

उसकी मौजूदगी केवल पगचिह्नों और गतिविधियों के संकेतों के आधार पर दर्ज की गई थी, जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि वह स्थायी रूप से नहीं, बल्कि अस्थायी तौर पर इस क्षेत्र में आ रहा था।

अब तस्वीर में क्या बदला है

सुखना वन्यजीव अभयारण्य में तेंदुओं की स्थायी वापसी ने वन्यजीव संरक्षण की कहानी को एक नया मोड़ दिया है। हालिया सर्वेक्षण में कैमरा ट्रैप और फील्ड रिपोर्ट्स के माध्यम से यह पुष्टि हुई है कि तेंदुए, सियार और सांभर अब यहां नियमित रूप से सक्रिय हैं और पूरे अभयारण्य क्षेत्र में विचरण कर रहे हैं।

निरीक्षण में मिला आश्वस्त करने वाला संकेत

इसी माह 13 दिसंबर 2025 को चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स एंड चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन सौरभ कुमार, आईएफएस ने कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स अनुप कुमार सोनी, आईएफएस और डिप्टी कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट्स नवीन श्रीवास्तव, आईएफएस के साथ अभयारण्य का स्थलीय निरीक्षण किया।

निरीक्षण के दौरान टीम ने उन स्थानों का दौरा किया, जहां कैमरा ट्रैप में तेंदुओं की गतिविधियां दर्ज की गई थीं। इसके साथ ही जल स्रोतों, प्रवासी पक्षियों के आवास और संवेदनशील क्षेत्रों की स्थिति का भी आकलन किया गया।

कैमरा ट्रैप इमेजेज और पगचिह्नों से पुष्टि हुई कि तेंदुए और अन्य वन्यजीव अब पूरे अभयारण्य क्षेत्र में सक्रिय रूप से विचरण कर रहे हैं।

घना जंगल बना पनाहगाह’: सौरभ कुमार

सौरभ कुमार के अनुसार, ‘सैंक्चुअरी में पहले भी तेंदुआ देखा गया था, लेकिन उसके स्थायी रूप से रहने के ठोस प्रमाण नहीं थे। अब जो साक्ष्य सामने आए हैं, वे दर्शाते हैं कि इस बार उसकी उपस्थिति लगातार और स्थायी है।’

उन्होंने कहा कि ‘पिछले कुछ वर्षों में सुखना वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी में Very Dense Forest Category में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इससे तेंदुए जैसे शिकारी के लिए खुद को छिपाए रखना आसान हुआ है। साथ ही सांभर और अन्य शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो पूरे ईकोसिस्टम के स्वस्थ होने का संकेत है।’

तेंदुओं की मौजूदगी का क्या मतलब है?

वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, तेंदुआ जैसे शीर्ष शिकारी का किसी जंगल में बने रहना यह दर्शाता है कि वहां भोजन श्रृंखला संतुलित है। इसका अर्थ है कि  शिकार प्रजातियां पर्याप्त हैं।  जल स्रोत उपलब्ध हैं। वन आवास सुरक्षित हैं।  इस लिहाज से सुखना–कांसल क्षेत्र में तेंदुओं की मौजूदगी वन संरक्षण प्रयासों की सफलता मानी जा रही है।

वन विभाग की SOP: सुरक्षा और संवेदनशीलता पर फोकस

वन विभाग ने भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के परामर्श से एक Standard Operating Procedure (SOP) का प्रारूप तैयार किया है, जिसे जल्द लागू किया जाएगा। इसका उद्देश्य वन्यजीवों और नागरिकों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

इन बिंदुओं पर होगा काम

• अभयारण्य की सीमाओं पर Do’s and Don’ts से संबंधित चेतावनी बोर्ड लगाना।

• स्थानीय निवासियों और आसपास के गांवों में जागरूकता और प्रशिक्षण अभियान चलाना।

• संवेदनशील क्षेत्रों में बाड़बंदी की मरम्मत और मजबूती करना।

• आगंतुक गतिविधियों को केवल निर्धारित पगडंडियों तक सीमित रखना।

• कैमरा ट्रैप और पेट्रोलिंग बढ़ाकर निगरानी व्यवस्था को सुदृढ़ करना।

• वन्यजीव दिखने पर त्वरित प्रतिक्रिया के लिए Emergency Response Helpline 0172-2700217 को सक्रिय रखना।

क्यों बढ़ी है चिंता

वन विभाग की सबसे बड़ी चिंता मानव वन्यजीव संपर्क को लेकर है। अभयारण्य के आसपास बढ़ती ट्रेकिंग, सेल्फी और पिकनिक जैसी गतिविधियां वन्यजीवों के प्राकृतिक व्यवहार को प्रभावित कर सकती हैं।

अधिकारियों का कहना है कि अब जब जंगल घना और जीवंत हो गया है, तो सतर्कता और अनुशासन पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है। सौरभ कुमार के शब्दों में, ‘यह क्षेत्र किसी मनोरंजन स्थल की तरह नहीं देखा जा सकता। यह वन्यजीवों का घर है, और उनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।’

लोगों और पर्यटकों के लिए क्या सलाह?

वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि जनसुरक्षा और वन्यजीव संरक्षण—दोनों को समान प्राथमिकता दी जा रही है। नागरिकों और पर्यटकों से अपील की गई है कि वे प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश न करें और तय दिशा-निर्देशों का पालन करें।  किसी भी वन्यजीव के दिखने या आपात स्थिति में तुरंत वन विभाग की हेल्पलाइन 0172-2700217 पर सूचना देने को कहा गया है।

विशेषज्ञों की राय: जंगल लौट आया है, इंसान को दूरी रखनी होगी

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि तेंदुओं की स्थायी उपस्थिति सुखना वन्यजीव अभयारण्य की इकोलॉजिकल रिकवरी का ठोस प्रमाण है। लेकिन यह पुनर्जीवन तभी टिकाऊ रहेगा, जब मानव गतिविधियों को नियंत्रित किया जाएगा। प्रकृति ने अपनी गति वापस पा ली है, अब जिम्मेदारी हमारी है कि उसे बिना बाधा विकसित होने दिया जाए।

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