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Explainer : क्या आपकी रात की रोशनी चुरा रही है अच्छी नींद और सेहत? जानिए क्या कहते हैं पीजीआई के डॉक्टर

शरीर की लय बिगड़ने से बढ़ता है दिल, तनाव और थकान का खतरा

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क्या आप रात में मोबाइल या टीवी देखते हुए सो जाते हैं? या कमरे में हल्की रोशनी रखकर सोने की आदत है? अगर हां, तो यह आदत आपकी सेहत पर सीधा असर डाल सकती है। रात के समय रोशनी के संपर्क में रहना शरीर के सोने-जागने के प्राकृतिक क्रम को गड़बड़ा देता है। यही क्रम तय करता है कि कब आपको नींद आएगी, कब शरीर को ऊर्जा चाहिए और कब आराम जरूरी है। जब यह तालमेल बिगड़ता है, तो नींद अधूरी रह जाती है और धीरे-धीरे इसका असर दिल, दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य पर दिखने लगता है।

आंखें सिर्फ देखने के लिए नहीं

हमारी आंखें केवल देखने का साधन नहीं हैं, बल्कि वे शरीर की लय को भी नियंत्रित करती हैं। आंखों से आने वाली रोशनी मस्तिष्क के एक हिस्से तक पहुंचती है जिसे सुप्राकायाज़्मैटिक न्यूक्लियस कहा जाता है। यह हिस्सा शरीर को बताता है कि कब दिन है और कब रात।

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इसके संकेत पर पीनियल ग्रंथि मेलाटोनिन नामक हार्मोन का स्राव करती है, जो नींद को नियंत्रित करता है। दिन में उजाले के कारण मेलाटोनिन का स्तर कम होता है और हम सक्रिय रहते हैं, जबकि अंधेरे में इसका स्तर बढ़ता है और नींद आने लगती है।

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लेकिन जब रात में मोबाइल, टीवी या लैपटॉप की नीली रोशनी आंखों पर पड़ती है, तो शरीर भ्रमित हो जाता है। उसे लगता है कि अभी दिन है, जिससे मेलाटोनिन का बनना रुक जाता है और नींद में देरी या व्यवधान होने लगता है।

नीली रोशनी है सबसे बड़ा खतरा

रेटिना की कुछ कोशिकाएं विशेष रूप से नीली रोशनी को पहचानती हैं। यही नीली रोशनी एलईडी बल्ब, मोबाइल और डिजिटल स्क्रीन से निकलती है। जब यह आंखों पर पड़ती है, तो शरीर की आंतरिक लय गड़बड़ा जाती है। परिणामस्वरूप नींद की गुणवत्ता गिरती है, चिड़चिड़ापन बढ़ता है और मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है। लंबे समय तक ऐसा होने से वजन बढ़ना, रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोग जैसी समस्याओं का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

प्राकृतिक लय से जुड़ना क्यों जरूरी

दिन और रात का क्रम केवल प्रकाश का बदलाव नहीं है, बल्कि यही हर जीव के जीवन का संतुलन है। पौधों और जानवरों से लेकर मनुष्य तक, सब इसी लय पर निर्भर हैं। लेकिन आधुनिक जीवनशैली, बिजली की कृत्रिम रोशनी और देर रात तक जागने की आदत ने हमें इस प्राकृतिक क्रम से दूर कर दिया है।

अब लोग दिनभर दफ्तरों में बंद रहते हैं और रात को स्क्रीन की रोशनी में। यह आदत शरीर की आंतरिक घड़ी को धीरे-धीरे असंतुलित करती है।

शोध क्या कहते हैं

ब्रिटेन में 10 साल तक चले एक अध्ययन में 89 हजार लोगों पर 1.3 करोड़ घंटे की निगरानी की गई। नतीजे चौंकाने वाले थे, जो लोग रात में अधिक रोशनी के संपर्क में रहते थे, उनमें दिल की बीमारियों और हृदय विफलता का खतरा काफी बढ़ा पाया गया, खासकर महिलाओं में।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की विशेषज्ञ डॉ. क्रिस्टन न्यूटसन कहती हैं, ‘हम हमेशा सोचते हैं कि क्या खाना चाहिए या कितनी नींद लेनी चाहिए, लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि हम यह सब कब करते हैं समय की यह लय ही हमारे स्वास्थ्य की दिशा तय करती है।’

मेलाटोनिन कोई जादुई नींद की गोली नहीं

1958 में वैज्ञानिक आरोन लर्नर ने मेलाटोनिन हार्मोन की खोज की थी। इसके बाद अमेरिकी एफडीए ने इसे नींद के लिए अनुमोदित किया और अब दुनियाभर में लाखों लोग इसका उपयोग करते हैं। भारत में यह बिना पर्चे के आसानी से मिल जाता है।

लेकिन यह समझना जरूरी है कि मेलाटोनिन कोई नींद की गोली नहीं है। यह शरीर की लय को संतुलित करने वाला हार्मोन है। इसका लंबे समय तक सेवन नुकसानदायक साबित हो सकता है।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग एक वर्ष से अधिक समय तक मेलाटोनिन लेते रहे, उनमें अगले पांच वर्षों में दिल की विफलता का खतरा लगभग दोगुना बढ़ गया। इसलिए इसे डॉक्टर की सलाह के बिना लेना उचित नहीं है।

बेहतर नींद और संतुलित लय के लिए क्या करें

  • सोने से दो घंटे पहले कमरे की रोशनी मंद करें।
  • रात 9 बजे के बाद मोबाइल, टीवी और लैपटॉप से दूरी बनाएं।
  • सोने के कमरे में नीली रोशनी की बजाय हल्की पीली या नारंगी रोशनी रखें।
  • सुबह उठते ही कुछ समय धूप में बिताएं, ताकि शरीर प्राकृतिक लय को फिर महसूस करे।

सिर्फ एक हफ्ते तक ये आदतें अपनाकर देखें, आप पाएंगे कि नींद गहरी होगी, थकान कम होगी और मूड ज्यादा स्थिर रहेगा। रात के चक्र के साथ काम करता आया है। जब हम इस क्रम से छेड़छाड़ करते हैं, तो शरीर की हर प्रणाली प्रभावित होती है। इसलिए कृत्रिम रोशनी से दूरी, स्क्रीन टाइम में कमी और सोने-जागने का नियमित समय ही लंबे समय तक अच्छी सेहत का असली रहस्य है।

                                                  -लेखक डॉ. अमोद गुप्ता, पीजीआई चंडीगढ़ में एमेरिटस प्रोफेसर हैं।

Factcheck : मानव शरीर की जैविक घड़ी, जिसे सर्केडियन प्रणाली कहा जाता है, शरीर की कई अहम प्रक्रियाओं को नियंत्रित करती है। भोजन का पाचन (मेटाबॉलिज्म), सोने-जागने की दिनचर्या, हृदयगति, रक्तचाप, शरीर का तापमान, हार्मोन का स्तर और मूत्र का निर्माण। जब यह प्राकृतिक लय बिगड़ती है या नींद पूरी नहीं होती, तो शरीर पर गंभीर असर पड़ता है। वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि इस असंतुलन का संबंध कैंसर, मोटापा, अवसाद और हृदय रोगों जैसी बीमारियों से है। हाल के कुछ शोध यह भी बताते हैं कि सर्केडियन रिद्म का असंतुलन आक्रामक व्यवहार और मानसिक अस्थिरता को भी बढ़ा सकता है।

 


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