Explainer: कपास पर गुलाबी सुंडी के हमले को तकनीक से बचाने की उम्मीद
Pink Bollworm: जैसे ही पंजाब के कपास किसान एक और सीजन के लिए तैयार हो रहे हैं, उनके खेतों पर एक लगातार गुलाबी सुंडी (पिंक बॉलवर्म) का खतरा मंडराता है। पेक्टिनोफोरा गॉसिपियेला नाम का यह कीट दक्षिण और मध्य भारत में कपास की खेती के लिए बड़ी चुनौती बन चुका है। यह कृषि परिदृश्य में एक गंभीर दुश्मन साबित हो रहा है।
गुलाबी सुंडी दुनिया भर में कपास की फसल को प्रभावित करने वाले सबसे खतरनाक कीटों में से एक है। बीटी कॉटन में उपयोग होने वाले क्राय टॉक्सिन्स के प्रति प्रतिरोधक क्षमता टूटने के कारण इसका प्रकोप बढ़ा है। यह कीट फूलों और हरे बॉल्स (कपास की डिब्बियों) को नुकसान पहुंचाता है, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है। कई बार 30-40% तक। इसका छिपा हुआ जीवनचक्र, जो मुख्य रूप से बंद बॉल्स के अंदर व्यतीत होता है, इसे पहचानना और नियंत्रित करना मुश्किल बना देता है।
पारंपरिक रासायनिक कीटनाशक अप्रभावी साबित हुए हैं और नए कीटनाशकों का भी असर घट चुका है। ऐसे में वैकल्पिक उपायों जैसे मेटिंग डिसरप्शन टेक्नोलॉजी (विघटन तकनीक) को पर्यावरण-अनुकूल और प्रभावी समाधान के रूप में अपनाया जा रहा है।
मेटिंग डिसरप्शन
यह तकनीक एक अभिनव और पर्यावरण-अनुकूल तरीका है, जिसे अब पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना के विशेषज्ञ सुझा रहे हैं। शोधकर्ताओं जसरीत कौर, जसजिंदर कौर और विजय कुमार इस समस्या से निपटने के लिए टिकाऊ समाधान पर काम कर रहे हैं।
इस तकनीक में कपास के खेतों में सिंथेटिक सेक्स फेरोमोन छोड़े जाते हैं, जिससे नर कीटों का स्वाभाविक संभोग व्यवहार प्रभावित होता है। इसमें उपयोग होने वाला फेरोमोन गॉसिप्ल्योर है, जो मादा गुलाबी सुंडी द्वारा नर को आकर्षित करने के लिए प्राकृतिक रूप से छोड़ा जाता है। जब खेतों में इसकी बड़ी मात्रा फैलाई जाती है, तो नर कीट असली मादा को खोजने में असमर्थ हो जाते हैं और सफल संभोग की संभावना घट जाती है, जिससे इनकी संख्या स्वतः कम हो जाती है।
यह तरीका कीट को सीधे नहीं मारता, बल्कि प्रजनन रोककर नियंत्रण करता है। यह इंसानों के लिए सुरक्षित है, लाभकारी कीटों को नुकसान नहीं पहुंचाता और रासायनिक दवाओं पर निर्भरता घटाता है। इस तकनीक की लागत प्रति एकड़ 3,600 रुपये (तीन बार उपयोग) आती है। श्रम सहित कुल खर्च 3,850 रुपये प्रति एकड़ है। बेहतर परिणामों के लिए इसे फसल के स्क्वायर फॉर्मेशन स्टेज (गांठ बनने के समय) और कम से कम 10 हेक्टेयर क्षेत्र में सामूहिक रूप से लागू करना चाहिए।
नई उम्मीद: पंजाब नॉट रोप
अब कपास किसानों के लिए एक और नई उम्मीद सामने आई है—पंजाब नॉट रोप। यह तकनीक मूल रूप से जापान की शिन एट्सू कंपनी ने विकसित की थी और भारत में पेस्टिसाइड इंडिया लिमिटेड इसे आयात कर रही है। पंजाब नॉट एक 30 सेंटीमीटर लंबी प्लास्टिक विनाइल रस्सी होती है, जो बड़ी मात्रा में मादा गुलाबी सुंडी के फेरोमोन छोड़ती है। इसे प्रति एकड़ 160 रस्सियों की दर से बांधा जाता है। जहां सामान्य मादा गुलाबी सुंडी केवल 3 मिलीग्राम फेरोमोन छोड़ती है, वहीं हर पंजाब नॉट लगभग 158-160 मिलीग्राम फेरोमोन छोड़ती है।
रस्सी को कपास के पौधों पर खेत की सीमा पर 1-मीटर की दूरी पर और खेत के अंदर 5-मीटर की दूरी पर समान अंतराल पर बांधा जाता है। इसे बीज बोने के 40-50 दिन बाद (स्क्वायर फॉर्मेशन स्टेज) पर और कम से कम 25 हेक्टेयर (62.5 एकड़) क्षेत्र में सामूहिक रूप से लागू करना चाहिए। इस तकनीक की लागत 3,700 रुपये प्रति एकड़ है और श्रम मिलाकर कुल खर्च 3,800 रुपये प्रति एकड़ आता है। यह एक ग्रीन केमिस्ट्री समाधान है, जो पर्यावरण और इंसानों दोनों के लिए सुरक्षित है।
क्यों है यह अहम
कीटनाशकों के प्रति बढ़ते प्रतिरोध और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच, यह तकनीक किसानों को सतत और आधुनिक समाधान देती है। इससे रासायनिक दवाओं पर निर्भरता घटती है, जैव विविधता सुरक्षित रहती है और किसानों को कीट प्रबंधन का प्रोएक्टिव (पहले से रोकथाम वाला) तरीका मिलता है।
इसके अलावा, यह तकनीक सस्ती, आसान और अन्य कीट-नियंत्रण उपायों के साथ संगत है। किसान अब अन्य कीटों के लिए दवाइयों का उपयोग जारी रख सकते हैं, क्योंकि इससे मेटिंग डिसरप्शन की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होती।
जैसे-जैसे पंजाब की कपास पट्टी आगे बढ़ रही है, ऐसी नवीन तकनीकें किसानों की रणनीति बदल सकती हैं, जहां पहले वे नुकसान के बाद छिड़काव करते थे, अब वे रोकथाम की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। गुलाबी सुंडी चाहे जिद्दी हो, लेकिन विज्ञान और सामूहिक प्रयासों से इसे हराया जा सकता है।