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Explainer: हरियाणा का GPS रोवर प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में, जानें क्या है देरी की वजह और क्या पड़ रहा असर

GPS Rover Project: हरियाणा सरकार का भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल और आधुनिक बनाने का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट अब तहसीलों में धूल फांक रहा है। 2023 में ‘हरियाणा लार्ज-स्केल मैपिंग प्रोग्राम’ के तहत 300 जीपीएस-सक्षम रोवर खरीदे गए थे। इन पर 30...
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करनाल में तहसील कार्यालय में एक रोवर बिना इस्तेमाल के पड़ा है। ट्रिब्यून फाइल फोटो
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GPS Rover Project: हरियाणा सरकार का भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल और आधुनिक बनाने का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट अब तहसीलों में धूल फांक रहा है। 2023 में ‘हरियाणा लार्ज-स्केल मैपिंग प्रोग्राम’ के तहत 300 जीपीएस-सक्षम रोवर खरीदे गए थे। इन पर 30 करोड़ रुपए खर्च किए गए। इन रोवरों का उद्देश्य जमीन की माप को सटीक बनाना और भूमि विवाद कम करना था।

जीपीएस रोवर से माप करने के लिए जमीन के पुराने और वर्तमान रिकॉर्ड का सटीक होना जरूरी है। राज्य में लगभग 18 लाख ‘ततिमा’ यानी जमीन के विभाजन और उप-विभाजन से जुड़े रिकॉर्ड अभी भी लंबित हैं। बिना इन्हें अपडेट किए डिजिटल माप शुरू करना संभव नहीं है। यही नहीं, प्रोजेक्ट को तहसीलों में लागू करने के लिए सर्वेक्षण शुल्क का निर्धारण अनिवार्य है। अभी तक शुल्क तय नहीं होने की वजह से अधिकारियों के पास काम शुरू करने का आधिकारिक आदेश नहीं है।

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देरी के पीछे बड़ी वजह

जीपीएस रोवर अत्याधुनिक उपकरण हैं, जिन्हें संचालित करने और डेटा रिकॉर्ड करने के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना जरूरी है। प्रशिक्षण में देरी और तकनीकी तैयारी की कमी भी प्रोजेक्ट के रुकने का कारण बनी है। रोवर से मापी गई जमीन की जानकारी को डिजिटल रिकॉर्ड और नक्शों के साथ जोड़ना आवश्यक है। यह प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, जिससे काम शुरू नहीं हो पा रहा।

किसानों और लोगों पर क्या पड़ा असर

  • जमीन के रिकॉर्ड ऑनलाइन उपलब्ध नहीं हैं
  • पारंपरिक माप और दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं में समय और खर्च अधिक लग रहा है
  • भूमि विवाद कम होने के बजाय लंबित ही बने हुए हैं

सर्वक्षण शुल्क पर जल्द निर्णय

राजस्व विभाग का कहना है कि लंबित ‘ततिमा’ रिकॉर्ड अपडेट किए जा रहे हैं और सर्वेक्षण शुल्क पर जल्द निर्णय लिया जाएगा। उम्मीद है कि अक्टूबर के अंत तक जीपीएस रोवर से जमीन की माप शुरू की जा सकेगी। तकनीकी रूप से तैयार जीपीएस रोवर और डिजिटल प्रणाली के बावजूद, प्रशासनिक और कानूनी देरी ने इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। 30 करोड़ रुपए के निवेश के बावजूद किसान और जनता अभी डिजिटल भूमि रिकॉर्ड का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

अहम बिंदु

  • 30 करोड़ रुपए की लागत
  • 300 जीपीएस रोवर इस्तेमाल में नहीं
  • 18 लाख लंबित ‘ततिमा’ रिकॉर्ड
  • सर्वेक्षण शुल्क का निर्धारण अभी बाकी
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