Explainer: बेतरतीब विकास या भ्रष्ट गठजोड़? क्या है गुरुग्राम की दुर्दशा का सच
Gurugram Infrastructure: गिरती नागरिक सेवाएं, टूटता हुआ बुनियादी ढांचा और इस मौसम में तो मानसूनी जलभराव भी। गुरुग्राम बिखर रहा है और इसके समाधान की कोई ठोस राह नज़र नहीं आती। 1 सितंबर की शाम को हुई भारी बारिश के बाद छह घंटे से अधिक का ट्रैफिक जाम एक बार फिर मिलेनियम सिटी के ढांचागत अंतराल को उजागर कर गया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का सबसे महंगा शहरी केंद्र, विकास के नाम पर खुद ही बनाए गड्ढे से बाहर निकलने की स्थिति में नहीं दिखता।
शहर ने 2016 की पुनरावृत्ति देखी, लेकिन इस बार कहीं बड़े पैमाने पर। जब हजारों वाहन जयपुर हाईवे पर लगभग आठ घंटे तक फंसे रहे। आखिर गुरुग्राम यहां तक कैसे पहुंचा?
बारिश पर ठीकरा, राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप
अधिकारियों ने तुरंत दोषारोपण किया कि 1 सितंबर को चार घंटे में 100 मिमी से अधिक बारिश ने हालात बिगाड़ दिए। विपक्ष ने इसे भाजपा सरकार की “अक्षमता” बताया, तो जवाब में कहा गया कि “पिछली कांग्रेस सरकार की खराब मास्टरप्लानिंग” इसकी वजह है।
समस्या की जड़
विशेषज्ञों का मानना है कि हर साल बरसात में शहर में जलजमाव कोई प्राकृतिक आपदा नहीं बल्कि दशकों की अंधाधुंध कंक्रीटीकरण, सिकुड़ती अरावली, खत्म होती प्राकृतिक जलनिकासी प्रणाली और जवाबदेही की कमी का नतीजा है।
पूर्व मुख्यमंत्री और अब केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हाल ही में लोकसभा में स्वीकार किया कि गुरुग्राम में तेज शहरीकरण ने पारंपरिक जलनिकासी तंत्र को बाधित किया है। उन्होंने कहा, “बंध अब अप्रभावी हो गए हैं और तालाबों का नेटवर्क घट गया है, जिससे जलभराव बढ़ा है।”
गुरुग्राम की अनोखी भौगोलिक स्थिति है — पूर्व में अरावली और उत्तर-पश्चिम में नजफगढ़ नाला। इनके बीच 78 मीटर का ऊंचाई अंतर प्राकृतिक जलनिकासी सुनिश्चित करता था। 19वीं सदी के अंत में बनाए गए बंध इस व्यवस्था को नियंत्रित करते थे।
जो व्यवस्था कभी काम करती थी
कटोरे जैसी भौगोलिक आकृति और मौसमी नदी घाटियों में बसे क्षेत्र हमेशा से बाढ़ के प्रति संवेदनशील रहे हैं। फिर भी, 1960 तक यहां का जलनिकासी तंत्र आदर्श माना जाता था। ब्रिटिश काल में गुरुग्राम (तब गुड़गांव) की प्राकृतिक जलनिकासी प्रणाली को बेहतर बनाया गया। बारिश के पानी को जमा करने और भूजल पुनर्भरण के लिए तालाब और नाले बनाए गए और करीब 118 चेक डैम बनाए गए। मुख्य विशेषताओं में घाटा, नाथूपुर, चक्करपुर और झरसा के चार बड़े बंध शामिल थे। मौसमी बाढ़ नियंत्रित करने और जलनिकासी में मदद के लिए ब्रिटिश शासन ने ड्रेन भी मंजूर किए थे।
खोए हुए जलमार्ग
ब्रिटिश छावनी से लेकर हरियाणा के चेहरे के रूप में उभरने तक, गुरुग्राम ने अपनी प्राकृतिक जलनिकासी खो दी। सर्वेक्षण बताते हैं कि 60 वर्षों में शहर ने 389 जलाशय खो दिए — 1956 में 640 से घटकर अब केवल 251 बचे हैं। अधिकांश पर अतिक्रमण कर ऊंची इमारतें खड़ी कर दी गईं, बाकी का आकार छोटा हो गया।
1990 के दशक तक भी हालात इतने खराब नहीं थे क्योंकि खनन के बावजूद अरावली ढाल बनी हुई थी। दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली भूजल पुनर्भरण का अहम आधार है। इसकी चट्टानी सतह वर्षा जल को भूजल भंडारों तक पहुंचाती थी। रेतीले तलहटी क्षेत्र (भूड़) अतिरिक्त पानी को सोखकर जलस्तर को संतुलित रखते थे। अब यह सब खो गया है।
गुरुग्राम को बेतरतीब तरीके से फैलाया गया। पहाड़ और जंगल तोड़कर गगनचुंबी इमारतें और हाईवे बना दिए गए। विडंबना यह है कि शहर हर मानसून में डूबता है, फिर भी यहां का जलस्तर ‘डार्क ज़ोन’ घोषित है।
पानी कहां जाता है
गुरुग्राम अरावली पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा था, जहां प्राकृतिक जंगल और जलनिकासी मौजूद थी। लेकिन सरकारों की लापरवाही से यह सब खो गया। अब तो सोसाइटीज भी तूफानी पानी की नालियों पर बसी हैं। भूड़ खत्म हो गए और भूजल पुनर्भरण भी। “विडंबना यह है कि लग्जरी हाउसिंग बढ़ रही है, जबकि अरावली पहाड़ी दर पहाड़ी, तालाब दर तालाब गायब हो रही है,” अरावली बचाओ आंदोलन की वैशाली राणा चंद्रा कहती हैं।
भ्रष्ट गठजोड़
शहरी योजनाकारों का मानना है कि ‘राजनीतिज्ञ-अफसर-प्रॉपर्टी डीलर’ का गठजोड़ इस संकट की बड़ी वजह है। पिछले दो दशकों में बिल्डरों ने बड़े भूखंड खरीदे और बिना परवाह किए कि प्राकृतिक या कृत्रिम जलनिकासी क्या है, गगनचुंबी टाउनशिप बना दीं।
जैसे-जैसे शहर ऑटो, साइबर और लॉजिस्टिक्स हब के रूप में उभरा, हाईवे इन्फ्रास्ट्रक्चर तो बढ़ा, लेकिन जलनिकासी पर ध्यान नहीं दिया गया। वाहन चार गुना हो गए, लेकिन पानी निकासी की समस्या जस की तस रही।
स्थानीय टाउन प्लानिंग विशेषज्ञ उदित पुरी कहते हैं, “गुरुग्राम में बिना योजना का बूम आया। 1990 के दशक में बिल्डरों को आईटी पार्क, कॉन्डोमिनियम, एसईजेड के लिए जमीन मिली। इसके लिए एक्सप्रेसवे, फ्लाईओवर बने। लेकिन किसी ने ड्रेनेज की चिंता नहीं की। 2016 में पहली बार फ्लैश फ्लड ने सिस्टम की पोल खोल दी। तब से करोड़ों रुपये खर्च हुए लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं निकला।”
खोखले उपाय
जलभराव और खराब योजना से जूझते नगर निगम ने पिछले नौ साल में 500 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन नतीजा मामूली रहा। अब सरकार ने नया ड्रेनेज प्लान घोषित किया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक दीर्घकालिक और व्यवस्थित समाधान नहीं होगा, गुरुग्राम अपने ही बोझ तले ढहता रहेगा।