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Diabetes Reversal डायबिटीज से छुटकारा अब मुमकिन!

PGI चंडीगढ़ की नयी स्टडी ने दिखाई राह
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क्या टाइप-2 डायबिटीज़ (Type-2 Diabetes) से हमेशा के लिए मुक्ति पाई जा सकती है? क्या यह बीमारी वाकई जीवनभर साथ चलने वाली नहीं है?

PGI चंडीगढ़ की नई स्टडी ‘DiaRem-1’ इस धारणा को बदल रही है। अध्ययन में पाया गया है कि यदि डायबिटीज़ के शुरुआती वर्षों में सही दवाओं और जीवनशैली सुधार के साथ इलाज किया जाए, तो मरीज कई सालों तक बिना दवा के स्वस्थ रह सकता है — यानी डायबिटीज़ को ‘रिवर्स’ करना मुमकिन है।

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यह रिपोर्ट न सिर्फ चिकित्सा क्षेत्र के लिए अहम है, बल्कि करोड़ों मरीजों के लिए आशा की किरण भी बनकर सामने आई है।

1. डायबिटीज़ की 'रोगमुक्ति' का मतलब क्या है?

PGI की टीम ने एक विशेष शब्द पर ज़ोर दिया है — “Remission” यानी रोगमुक्ति।

इसका अर्थ यह नहीं कि बीमारी पूरी तरह खत्म हो गई, बल्कि यह कि:

यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो मरीज को न केवल दवाओं से राहत मिलती है, बल्कि हृदय, किडनी, आंखों व अन्य अंगों को नुकसान पहुंचाने वाले जटिल प्रभाव भी टल सकते हैं।

2. PGI की DiaRem-1 स्टडी में क्या हुआ?

मुख्य उद्देश्य : यह जांचना कि सही इलाज और जीवनशैली सुधार से कितने मरीज डायबिटीज़ से रोगमुक्त हो सकते हैं।

किन पर की गई स्टडी?

दवा समूहों का वितरण

परिणाम

3. रोगमुक्ति में मददगार कारक कौन से हैं?

PGI की स्टडी से यह स्पष्ट हुआ कि रोगमुक्ति केवल दवाओं पर निर्भर नहीं, बल्कि इन पांच कारकों पर भी आधारित है :

A. वजन में कमी

जिन मरीजों ने 5 किलो या उससे अधिक वजन घटाया, उनमें रोगमुक्ति की संभावना बहुत अधिक रही।

क्यों? क्योंकि वजन घटने से शरीर में इंसुलिन रेसिस्टेंस कम होता है।

B. लिवर और पैंक्रियाज़ में चर्बी कम होना

C. बीटा-सेल की सक्रियता लौटना

PGI ने C-Peptide टेस्ट के ज़रिए दिखाया कि जिन मरीजों में बीटा-सेल फिर से सक्रिय हुए, वे रोगमुक्त हो गए।

यह दिखाता है कि शरीर की अपनी इंसुलिन उत्पादन क्षमता दोबारा कार्यशील हो सकती है।

D. इंसुलिन रेसिस्टेंस में कमी

जिन मरीजों को मेटफॉर्मिन के बाद इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ी, उनमें यह संकेत मिला कि शरीर फिर से इंसुलिन को पहचानने लगा है — डायबिटीज़ रिवर्सल की एक और मजबूत पहचान।

E. शीघ्र पहचान और इलाज

जिन मरीजों को डायबिटीज़ हुए तीन साल से कम समय हुआ था, उनमें रोगमुक्ति की संभावना कई गुना अधिक पाई गई।

4. पारंपरिक बनाम आधुनिक दवाएं — कौन अधिक असरदार?

यदि इलाज का लक्ष्य केवल ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं, बल्कि रोगमुक्ति हो, तो आधुनिक दवाएं अधिक असरदार हैं।

 

5. डायबिटीज़ रिवर्सल: इलाज बदलें, सोच भी

PGI की टीम का मानना है कि डायबिटीज़ को लेकर सोच बदलना जरूरी है:

"यदि हम डायबिटीज़ को जीवनभर की बीमारी मान लेंगे, तो मरीज कभी इसे पलटने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन अगर डॉक्टर और मरीज दोनों यह मानें कि इसे उलटा जा सकता है, तो इलाज की दिशा ही बदल सकती है।"

यानी यह लड़ाई केवल दवा से नहीं, बल्कि सोच और जीवनशैली से भी लड़ी जाती है।

6. आम जनता को क्या सीख मिलती है?

डायबिटीज़ से निपटने के 4 आसान मंत्र

 

सीखक्या करें?
जल्दी जांच कराएंहर साल ब्लड शुगर की जांच जरूर करवाएं।
वजन नियंत्रित रखेंहेल्दी खाना खाएं और रोज़ाना थोड़ी एक्सरसाइज करें।
सही दवा चुनेंडॉक्टर से आधुनिक और बेहतर दवाओं के बारे में पूछें।
जानकारी रखेंबीमारी से डरें नहीं, समझदारी से इसका सामना करें।

7. क्या यह इलाज सभी के लिए है?

नहीं। यह स्टडी प्रारंभिक डायबिटीज़ वाले मरीजों पर आधारित है। जिनकी बीमारी 8–10 साल से अधिक पुरानी है या जिनके अंगों को पहले ही नुकसान पहुंच चुका है, उनके लिए रिवर्सल की संभावना कम होती है। फिर भी आप ये करें।

हर मरीज को लाभ जरूर पहुंचाता है — भले ही रोगमुक्ति पूरी तरह संभव न हो।

8. PGI का अगला कदम?

अब PGI की टीम ‘DiaRem-2’ नामक बड़ा अध्ययन शुरू कर रही है, जिसमें:

PGI चंडीगढ़ की यह स्टडी भारत में डायबिटीज़ के इलाज के नजरिए को बदल सकती है।

जहां पहले इसे ‘लाइफटाइम बीमारी’ माना जाता था, वहीं अब उम्मीद है कि:

से यह रोग अगर जड़ से मिटाया न जा सके, तो कम से कम बिना दवाओं के नियंत्रण में जरूर रखा जा सकता है।

डायबिटीज रिवर्सल पर डॉक्टर की राय

डॉ. रमा वालिया, प्रमुख शोधकर्ता, PGIMER चंडीगढ़

'डायबिटीज़ अब जीवनभर की लाइलाज बीमारी नहीं है। अगर सही समय पर, सही इलाज शुरू किया जाए-जिसमें आधुनिक दवाएं और संतुलित जीवनशैली हो तो मरीज दवा-मुक्त भी हो सकते हैं।'

पीजीआई के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग की वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. रमा वालिया ने अपनी टीम के साथ मिलकर यह प्रमाणित किया है कि टाइप-2 डायबिटीज को शुरुआती चरण में गंभीर, परंतु व्यवहारिक इलाज से रोका जा सकता है।

उनकी DiaRem-1 स्टडी के अनुसार, 3 साल से कम समय से डायबिटीज़ से जूझ रहे मरीजों को जब वैज्ञानिक रूप से तैयार की गई दवा योजना और जीवनशैली मार्गदर्शन दिया गया तो उनमें से 31% मरीजों ने बिना किसी दवा के तीन महीने तक सामान्य ब्लड शुगर बनाए रखा।

यह वही स्थिति है जिसे मेडिकल साइंस में डायबिटीज़ रेमिशन कहा जाता है — यानी ऐसी अवस्था जिसमें बीमारी का कोई लक्षण नहीं रहता और दवा की जरूरत नहीं होती।

डॉ. वालिया कहती हैं कि यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि डेटा-सिद्ध, सुलभ और भारतीय संदर्भों में संभव चिकित्सा पद्धति है। हर मरीज को यह जानना चाहिए कि डायबिटीज़ से डरना नहीं, उसे समझदारी से हराना है।

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