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Explainer: सस्ता सॉल्वेंट, महंगा सबक, क्यों नहीं थम रही जहरीली दवाओं की कतार

Adulterated medicine: मध्य प्रदेश में पिछले एक महीने में कम से कम 22 बच्चों की मौत हुई

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Adulterated medicine: भारत एक बार फिर उन दर्दनाक हादसों की पुनरावृत्ति का सामना कर रहा है, जिनमें बच्चों की खांसी की दवाओं के सेवन से कई मासूमों की जान चली गई। मध्य प्रदेश में पिछले एक महीने में कम से कम 22 बच्चों की मौत संदिग्ध रूप से ‘कोल्डरिफ’ (Coldrif) नामक सिरप पीने के बाद हुई है। यह सिरप तमिलनाडु स्थित श्रे‍सन फार्मा (Sresan Pharma) द्वारा बनाया गया था। राज्य के औषधि नियंत्रक द्वारा किए गए सैंपल परीक्षण में इसमें 48.6 प्रतिशत डायइथिलीन ग्लाइकोल (DEG) पाया गया, जबकि इसकी अनुमेय सीमा सिर्फ 0.1 प्रतिशत है।

राजस्थान में भी कायसन्स फार्मा (Kaysons Pharma) की डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड (Dextromethorphan Hydrobromide) सिरप पीने से दो बच्चों की मौत की सूचना है। यह दवा आमतौर पर बच्चों को नहीं दी जाती। वहीं गुजरात में बनी रेडनेक्स फार्मास्यूटिकल्स (Rednex Pharmaceuticals) की Respifresh और शेप फार्मा (Shape Pharma) की Relife सिरप की भी DEG मिलावट के लिए जांच चल रही है।

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देश के कई राज्यों ने इन चार सिरपों की जब्ती के आदेश दिए हैं और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने सभी राज्यों से कफ सिरप निर्माताओं की जानकारी मांगी है ताकि संयुक्त ऑडिट किया जा सके। देश की ढीली-ढाली दवा नियामक व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी भारत में कफ सिरप की जांच प्रक्रिया में खामियों की ओर इशारा किया है।

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मिलावट का इतिहास

भारत में DEG से मिलावटी सिरप का पहला मामला 1972 में चेन्नई में सामने आया था, जिसमें 15 बच्चों की मौत हुई थी। इसके बाद 1986 में मुंबई में 14 मौतें, 1988 में बिहार में 11 मौतें, और 1998 में गुरुग्राम में 33 मौतें हुई थीं। 2022 में, हरियाणा के सोनीपत स्थित मेडन फार्मास्युटिकल्स (Maiden Pharmaceuticals) की चार सिरपों को गाम्बिया (The Gambia) में 70 बच्चों की मौत से जोड़ा गया था। 2023 में, उत्तर प्रदेश की मेरियन बायोटेक (Marion Biotech) द्वारा बनाई गई दो दवाओं से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत हुई थी। इसके अलावा, 2019-20 में जम्मू के उधमपुर में डिजिटल विज़न कंपनी द्वारा बनाई गई सिरप पीने से 12 बच्चों की मौत हुई थी। गाम्बिया प्रकरण के बाद CDSCO ने देशभर में 900 से अधिक जोखिम-आधारित निरीक्षण किए, लेकिन मौतें अब भी हो रही हैं।

दवाओं में प्रयुक्त सॉल्वेंट और मानक

प्रोपलीन ग्लाइकोल (PG) एक सॉल्वेंट है जिसका उपयोग बच्चों की तरल दवाओं (विशेष रूप से कफ सिरप और दर्द निवारक सिरप) के निर्माण में किया जाता है। यह उन दवाओं को घोलने में मदद करता है जो पानी में नहीं घुलतीं, जैसे पैरासिटामोल, डायजेपाम, ऑक्सीटेट्रासाइक्लिन और डाइक्लोफेनाक। पानी के बाद, PG दवा निर्माण में सबसे अधिक उपयोग होने वाला सॉल्वेंट है। यह बाहरी उपयोग की दवाओं, इंजेक्शन, कैप्सूल और अन्य रूपों में भी प्रयुक्त होता है।

PG भारत में भी बनता है और मुख्य रूप से चीन और दक्षिण कोरिया से आयात किया जाता है। नियमों के अनुसार, कंपनियों को केवल लाइसेंस प्राप्त सप्लायर से ‘फार्मा ग्रेड’ PG बंद पैकेजिंग में खरीदना होता है। सप्लायर और निर्माता दोनों को हर बैच की जांच करनी होती है।

क्यों खतरनाक हैं DEG और EG

WHO के अनुसार, डायइथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल (EG) जहरीले पदार्थ हैं जो औद्योगिक सॉल्वेंट और एंटी-फ्रीज एजेंट के रूप में इस्तेमाल होते हैं। इनका थोड़ा-सा सेवन भी घातक हो सकता है, खासकर बच्चों के लिए। ये पदार्थ गोंद और एंटीफ्रीज़ मटेरियल बनाने में इस्तेमाल होते हैं।

फोर्टिस अस्पताल, मोहाली के प्रोफेसर दिगंबर बेहड़ा कहते हैं, “बच्चों का लिवर और किडनी पूरी तरह विकसित नहीं होती, इसलिए जब वे DEG से दूषित सिरप पीते हैं, तो वे इसे मेटाबोलाइज नहीं कर पाते और ज़हर फैल जाता है।”

जरूरी नियामक प्रावधान

PG का उपयोग करने वाली कंपनियों को इसे भारतीय फार्माकोपिया (IP) या अमेरिकी फार्माकोपिया (USP) मानकों के अनुसार जांचना जरूरी है ताकि DEG और EG की अनुपस्थिति सुनिश्चित हो सके। इसके लिए गैस क्रोमैटोग्राफी (GC) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। PG को सही तापमान पर बंद कंटेनरों में रखना जरूरी है। तैयार सिरप में भी DEG और EG की जांच की जानी चाहिए। अगर मिलावट पाई जाती है, तो तुरंत उत्पाद बाजार से वापस लेना (रिकॉल) आवश्यक है। DEG और EG को सस्ता औद्योगिक विकल्प मानकर PG में मिलाया जाता है जानबूझकर या गलती से, लेकिन दवा निर्माण में यह मिलावट जानलेवा साबित होती है।

नियम कहां विफल हो रहे हैं

WHO के अनुसार, DEG और EG का सेवन घातक हो सकता है। इसके लक्षण हैं पेट दर्द, उल्टी, दस्त, पेशाब न आना, सिरदर्द, मानसिक भ्रम, और किडनी फेल होना, जिससे मौत भी हो सकती है, लेकिन सवाल यह है कि क्या राज्य औषधि नियंत्रकों के पास पर्याप्त संसाधन हैं कि वे जांच सकें कि कंपनियां DEG और EG की सही तरीके से जांच कर रही हैं या नहीं? बैच टेस्टिंग और क्वालिटी चेक में भारी कमी बनी हुई है। हालिया मामले में मध्य प्रदेश सरकार ने कहा कि सिरपों ने परीक्षण पास कर लिया था, जबकि बाद में तमिलनाडु ने आपत्ति जताई। इससे कार्रवाई में देरी हुई और यह बात उजागर हुई कि राज्यों के बीच परीक्षण मानकों में असमानता है।

कफ सिरप की खपत पर रोक लगाने की जरूरत

5 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों के साथ बैठक की। डॉ. सुनीता शर्मा (डीजीएचएस) ने बच्चों में कफ सिरप के तर्कसंगत उपयोग की जरूरत पर जोर दिया। डॉ. राजीव बहल  (स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग सचिव) ने कहा कि बच्चों को कफ सिरप या दवा के मिश्रण नहीं दिए जाने चाहिए क्योंकि इससे साइड इफेक्ट्स का खतरा बढ़ता है। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1945 की अनुसूची ‘M’ (Schedule M), जो गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) से संबंधित है, को 28 दिसंबर 2023 को वैश्विक मानकों के अनुरूप संशोधित किया गया, लेकिन इसकी समय सीमा दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है।

हरियाणा के पूर्व राज्य औषधि नियंत्रक जी.एल. सिंगल के अनुसार “नियम 74 के तहत दवा निर्माता को कच्चे माल और तैयार दवा दोनों का परीक्षण करना अनिवार्य है। निरीक्षकों का दायित्व है कि वे साल में कम से कम एक बार निरीक्षण करें। अगर नियमन कमजोर रहेगा, तो एमपी जैसे हादसे बार-बार होंगे।”

जन स्वास्थ्य कार्यकर्ता दिनेश ठाकुर ने कहा, “समस्या नियामक एजेंसी में ही है। वे नाकाम क्यों हो रहे हैं? वजह है अयोग्यता, भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी।”

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