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Explainer: हरियाणा की मंडियों में बाहरी धान पर रोक, जानें क्या है इसकी असली वजह?

Haryana Paddy Procurement: दूसरे राज्यों से हरियाणा की मंडियों में धान की आवक की शिकायतों के बाद राज्य सरकार ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने और असली किसानों के हितों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाए हैं। राज्य की सीमाओं पर...
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Haryana Paddy Procurement: दूसरे राज्यों से हरियाणा की मंडियों में धान की आवक की शिकायतों के बाद राज्य सरकार ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने और असली किसानों के हितों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाए हैं। राज्य की सीमाओं पर अंतरराज्यीय नाके (चेकपोस्ट) स्थापित किए गए हैं ताकि पड़ोसी राज्यों से धान की अवैध आमद पर रोक लगाई जा सके। यहां जानिए यह कार्रवाई क्यों शुरू की गई, क्या अनियमितताएं सामने आईं और सरकार तथा जिला प्रशासन इस पर क्या कदम उठा रहे हैं।

मुख्यमंत्री ने FIR दर्ज करने और सख्त कार्रवाई के आदेश क्यों दिए?

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने शनिवार को धान और बाजरा की खरीद प्रक्रिया की समीक्षा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल और एच-रजिस्टर नीलामी में गंभीर अनियमितताओं की जानकारी दी गई। कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों को निलंबित किया जा चुका है। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि इन मामलों में FIR दर्ज कर जवाबदेही तय की जाए, ताकि कोई भी भ्रष्टाचार या हेराफेरी बर्दाश्त न की जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार खरीद प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को बर्दाश्त नहीं करेगी।

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अब तक कितनी फसल की खरीद हो चुकी है?

26 अक्टूबर दोपहर तक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 54.79 लाख मीट्रिक टन (MT) धान के लिए गेट पास जारी किए गए हैं, जिनमें से 52.92 लाख MT धान की खरीद की जा चुकी है। किसानों के खातों में 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि सीधे जमा की जा चुकी है। अधिकांश मंडियों में खरीद प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही है और सरकार ने आश्वासन दिया है कि हरियाणा के किसानों द्वारा उगाए गए हर एक दाने की खरीद की जाएगी।

करनाल की मंडियों में क्या गड़बड़ी पकड़ी गई?

जांच तब शुरू हुई जब करनाल की मंडियों में असामान्य रूप से अधिक धान की आवक दर्ज की गई, जबकि इस बार फसल कटाई में देरी और उपज कम थी।अधिकारियों को संदेह है कि अलग-अलग IP एड्रेस से फर्जी गेट पास बनाए गए। तीन कर्मचारियों को अनियमितताओं के आरोप में निलंबित कर दिया गया है और जांच जारी है।

उपायुक्त उत्तम सिंह ने खेतों में वास्तविक फसल उत्पादन की तुलना किसानों के नाम पर दर्ज मंडी आवक से करने के लिए विशेष टीमें तैनात की हैं। यूपी सीमा पर मंगलौरा और शेरगढ़ टापू में दो अंतरराज्यीय नाके बनाए गए हैं ताकि अवैध धान की आवाजाही रोकी जा सके।

डीसी और एसपी स्वयं इन नाकों का निरीक्षण कर रहे हैं। सीमा पर धान से लदे ट्रकों की लंबी कतारें लगी हैं जिन्हें हरियाणा में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। अधिकारियों को संदेह है कि यूपी और अन्य राज्यों से सस्ता धान लाकर हरियाणा की मंडियों में स्थानीय किसानों के नाम से बेचा जा रहा है।

भौतिक सत्यापन (Physical Verification) क्यों करवाया जा रहा है?

मुख्यमंत्री सैनी ने सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे नियमित रूप से मंडियों का दौरा करें और किसानों से सीधे संवाद करें, ताकि खरीद प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी हो। उन्होंने यह भी कहा कि धान मिलों की भौतिक जांच की जाए, ताकि वास्तविक स्टॉक की तुलना पोर्टल पर दर्ज धान की मात्रा से की जा सके।

करनाल में डीसी ने सभी एसडीएम को आदेश दिया है कि वे ई-प्रोक्योरमेंट और एमएफएमबी पोर्टल पर दर्ज मात्रा की भौतिक जांच सुनिश्चित करें।

धांधली का संदिग्ध तरीका (Modus Operandi) क्या है?

सूत्रों के अनुसार, यह एक संगठित नेटवर्क है जिसमें कुछ व्यापारी, मिल मालिक, बिचौलिए और भ्रष्ट अधिकारी शामिल हैं। ये लोग यूपी और अन्य पड़ोसी राज्यों से सस्ता धान खरीदकर हरियाणा की मंडियों में पहुंचाते हैं और फिर उसे फर्जी किसान आईडी और नकली गेट पास के जरिए स्थानीय उत्पादन के रूप में दिखाते हैं।

कुछ अधिकारी इन फर्जी प्रविष्टियों को पोर्टल पर मंजूरी दे देते हैं, जिससे यह सब वैध लगने लगता है।

बाद में यह धान चावल मिलों को भेज दिया जाता है, जहां इसे सरकारी कोटे (CMR) की आपूर्ति में दिखा दिया जाता है। इस हेराफेरी से व्यापारी और मिलर प्रति क्विंटल 400 से 600 रुपये तक का मुनाफा कमाते हैं, जबकि राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान होता है और असली किसानों की फसल की खरीद में देरी होती है।

यह समस्या हर साल क्यों दोहराई जाती है?

दूसरे राज्यों से धान और PDS चावल की अवैध आमद हरियाणा में नई नहीं है। हर सीजन में, खासकर करनाल, कैथल और कुरुक्षेत्र जैसे जिलों में, इसी तरह की अनियमितताएं सामने आती हैं, जिनमें फर्जी गेट पास, एक ही किसान के नाम पर कई प्रविष्टियां, मिटाए गए रिकॉर्ड और पोर्टलों पर ग़लत डेटा आदि। अधिकारियों का मानना है कि व्यापारी राज्यों के बीच मूल्य अंतर और सत्यापन प्रणाली की कमियों का फायदा उठाते हैं। इस साल भी करनाल प्रशासन को ऐसे मामलों की आशंका है और वह खेतों में जाकर फसल की पुष्टि करवा रहा है।

विशेषज्ञ क्या सुझाव दे रहे हैं?

विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या को स्थायी रूप से खत्म करने के लिए तकनीक आधारित पारदर्शी व्यवस्था अपनानी होगी।

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