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विश्व विजेता बेटियां

महिला क्रिकेट को नई ऊंचाई देगी कामयाबी
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रविवार को भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वो इतिहास रचा, जिसका दो दशक से इंतजार था। एक दिवसीय क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीतकर उन्होंने उस कमी को पूरा किया, जो साल 2005 और 2017 में फाइनल में पहुंचकर भी हासिल न हो सकी थी। ऐसे वक्त में जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम को खिताबी दौड़ में कमजोर माना जा रहा था, उसने सात बार की चैंपियन आस्ट्रेलिया टीम को सेमीफाइनल के एक रोमांचक मुकाबले में हरा दिया था। मुकाबले में मुंबई की जेमिमा रॉड्रिग्स ने 127 रन की तूफानी यादगार पारी खेली। लगता था शुरुआत में कई मैच हारने वाली भारतीय महिला टीम ने अपनी ऊर्जा फाइनल मुकाबले के लिये बचा रखी थी, जिसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीका की टीम को 52 रन से हरा दिया। रविवार की रात हरमनप्रीत कौर की कप्तानी ने पासा ही पलट दिया। फिर उनकी टीम ने नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में चालीस हजार से ज्यादा दर्शकों के बीच जीत का जश्न जमकर मनाया। इस जुनूनी जश्न की वे हकदार भी थीं। साथ ही देश के एक अरब चालीस करोड़ लोगों को भी जीत के जश्न में डुबो दिया। लोग इस साल होने वाले कई दुखांत घटनाक्रमों को भुला इस जीत की लय में झूम उठे। यह सुखद आश्चर्य ही था कि टीम ने लगातार तीन हार झेलने के बाद टूर्नामेंट में दमदार वापसी की। सेमीफाइनल में लोग सात बार की चैंपियन आस्ट्रेलिया के खिलाफ भारतीय टीम को कमतर आंक रहे थे। सुखद आश्चर्य देखिये कि फाइनल मुकाबले में हरियाणा की उस शैफाली वर्मा ने करिश्माई पारी खेली, जो विश्व कप के शुरू होने से पहले टीम का हिस्सा भी नहीं थी। उसने अपने चयन को तार्किक साबित किया। इसी तरह दीप्ति शर्मा ने भी शानदार खेल का परिचय दिया। निश्चय ही महिला क्रिकेट टीम की यह शानदार जीत देश की उन लाखों बेटियों के सपनों को नयी ऊंचाइयां देगी, जो अपना आसमान हासिल करना चाहती हैं।

निस्संदेह, विश्वकप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की शानदार जीत के दूरगामी परिणाम होंगे। इस खेल में टीम दीर्घकालिक वर्चस्व कायम रख सकती है। दरअसल, अब तक महिला क्रिकेट को दोयम दर्जे का माना जाता रहा है। दरअसल, जब से महिला खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के समान वेतन मिलने लगा और उन्हें आईपीएल-शैली की टी-20 लीग में दमखम दिखाने का मौका मिला, टीम के प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार आया। धीरे-धीरे वे पुरुष क्रिकेट के सितारों की तरह आभा बिखेरने लगी। हालांकि, आगे की राह इतनी भी आसान नहीं है, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। फिलहाल उनके पास इस कामयाबी का जश्न मनाने का मौका है। उल्लेखनीय है कि टीम में कई ऐसी खिलाड़ी हैं जिन्होंने तमाम आर्थिक-सामाजिक चुनौतियों का मुकाबला करके अपनी जगह बनायी। वे तपती पगडंडियों से गुजरने वाली बेटियों के लिये प्रेरणास्रोत हैं। इन खिलाड़ियों ने मैदान से पहले निजी जीवन में बड़ा संघर्ष किया। बेहद जटिल पृष्ठभूमि से आने के बावजूद वे विश्व विजेता टीम का हिस्सा बनी हैं। उनके साथ अभ्यास मैच खेलने के लिये लड़कियां नहीं होती थी, अत: वे शुरुआती क्रिकेट लड़कों की टीम के साथ खेलती थीं। उनके माता-पिता को समाज की छींटाकशी का भी शिकार होना पड़ता था। मध्यप्रदेश की क्रांति गौड़ ने आर्थिक बदहाली का जीवन जिया और प्रैक्टिस मैच के लिये पैसे की मदद न मिलने पर मां ने गहने तक बेचने पड़े। वक्त बदला है और आज मध्य प्रदेश सरकार ने उसे एक करोड़ का पुरस्कार देने की घोषणा की है। स्पिनर राधा यादव का परिवार मुंबई के कांदिवली में रहता है और उसके पिता सब्जी बेचते रहे हैं। उनकी प्रतिभा पहचानकर क्रिकेटर प्रफुल्ल नाइक ने उसके परिजनों को क्रिकेट खेलने के लिये मनाया। संगरूर जिले की रहने वाली सफल गेंदबाज अमनजोत के, पेशे से कारपेंटर पिता भूपेंदर सिंह ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने अपना कामधंधा दांव पर लगाया। इसी तरह हिमाचल के एक किसान परिवार से आने वाली तेज गेंदबाज रेणुका ठाकुर ने अपने दिवंगत पिता के सपने को पूरा किया। निस्संदेह, इन लड़कियों की कामयाबी न केवल समाज में लड़कियों के प्रति नजरिया बदलेगी, बल्कि उन जैसी लाखों लड़कियों को क्रिकेट में भविष्य आजमाने के लिये भी प्रेरित करेगी।

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