भविष्य के हथियार
ऑपरेशन सिंदूर सही मायनों में भारतीय वायु सेना की श्रेष्ठता का एक अद्भुत प्रदर्शन था। निस्संदेह, भारत ने पहलगाम आतंकी हमले का पाकिस्तान को न केवल कड़ा जवाब दिया बल्कि नये दौर के युद्ध कौशल का सफल परीक्षण भी किया। लेकिन हम सिर्फ इससे आत्मसंतुष्ट होकर नहीं बैठ सकते। भारतीय सेना के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने दुनिया के मौजूदा परिदृश्य पर बिल्कुल सही कहा है कि आज का युद्ध कल की तकनीक से लड़ा जाना चाहिए, न कि बीते जमाने की हथियार प्रणालियों से। दरअसल, हर पल बदलती युद्ध कौशल की तकनीकों में बात बढ़त लेने की है। यह एक हकीकत है कि जो भी देश ऐसा करने में विफल रहेगा, निश्चित रूप से उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। उनका कहना सही ही है कि मानवरहित हवाई वाहन यानी यूएवी आमने-सामने की लड़ाई के विपरीत गैर-संपर्क युद्ध के तेजी से विकसित होते परिदृश्य में एक बदलावकारी शक्ति के रूप में उभरे हैं। ड्रोन तकनीक के लगातार विकसित होते रहने से यह एक ऐसा घातक हथियार बन चुका है, जो दुश्मन देश के प्रमुख रक्षा प्रतिष्ठानों जैसे लक्ष्यों को तुरंत पहचानकर उन पर हमला कर सकता है। वास्तव में, भारत ऑपरेशन सिंदूर के संघर्ष के दौरान पाकिस्तान सशस्त्र बलों द्वारा इस्तेमाल किए गए अधिकांश ड्रोनों को मुख्य रूप से अपनी मजबूत वायु रक्षा प्रणाली के बूते ही बेअसर करने में सक्षम रहा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भविष्य के किसी युद्ध में पाकिस्तान के करीबी सहयोगी उसे बेहतर यूएवी की आपूर्ति करेंगे ताकि पाकिस्तान की स्थिति को बेहतर बनाया जा सके। इस खतरे के प्रति सतर्क रहते हुए भारत के लिये जरूरी हो जाता है कि हम यूएवी और मानवरहित स्वदेशी प्रणालियों के विकास पर अपना विशेष ध्यान केंद्रित करें। साथ ही इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि ये भारतीय परिस्थितियों और जरूरतों के भी अनुकूल हों। तभी हम आसन्न चुनौतियों का मुकाबला बेहतर ढंग से कर पाने में सक्षम हो सकेंगे।
इसमें दो राय नहीं कि हाल ही के दिनों में यूरोप और एशिया में जारी संघर्ष के दौरान ड्रोन व मानवरहित विमानों ने निर्णायक भूमिका निभायी है। इस दिशा में भारत पूर्वी यूरोप में ड्रोन-प्रधान संघर्ष से सबक ले सकता है। जहां यूक्रेन ने सैन्य शक्ति, तोपखाने और टैंकों के मामले में रूस की बढ़त का मुकाबला करने लिये यूएवी का भरपूर इस्तेमाल किया है। यही वजह है कि यूक्रेन की इस रणनीति ने रूस को अपना ध्यान यूएवी तकनीक पर केंद्रित करने के लिये बाध्य किया है। रक्षा विशेषज्ञों का आकलन है कि दोनों देश प्रतिवर्ष चौंका देने वाली लाखों की दर से ड्रोन बना रहे हैं। ड्रोन उत्पादन के क्षेत्र में यूक्रेन के एक महाशक्ति के रूप में उदय ने भारत को ऐसे क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रेरित किया है, जहां अत्याधुनिक नवाचार ही सब कुछ है, अब चाहे इनका उपयोग किसी भी निश्चित उद्देश्य के लिये किया जाए। मसलन स्ट्राइक ऑपरेशन की निगरानी के लिये तथा रडार से छिपकर ये उड़ने वाली मशीनों को सुरक्षित बनाने के लिये। भारत के लिये यह सुनिश्चित करना एक चुनौती है कि उसके ड्रोन और ड्रोन-रोधी प्रणालियां दुश्मन के ड्रोन तकनीक से बेहतर सिद्ध हों। निश्चित रूप से आने वाले वर्षों में यूएवी परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में निर्णायक साबित होगा। ऐसे में परंपरागत युद्ध कौशल से आगे जाकर हमें नई चुनौतियों का मुकाबला करना है। हमें न केवल अपनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना है बल्कि ड्रोन व यूएवी तकनीक में ऐसी महारथ हासिल करनी है कि हम इनके निर्यातक के रूप में हथियार बाजार में अपनी पहचान बना सकें। निश्चित रूप से हम इससे अपनी विशाल युवा शक्ति के बूते और नई पीढ़ी के कौशल विकास से इन लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं। इससे जहां हम बड़े पैमाने पर युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा सकेंगे, वहीं दुर्लभ विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर सकेंगे। हम देख रहे हैं कि दुनिया में आज उन्हीं देशों की कूटनीति का वर्चस्व है, जिनका हथियार उद्योग व तकनीकी नवाचार में बोलबाल है।