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चोकसी पर चौकसी

प्रत्यर्पण को कूटनीतिक प्रयास तेज करें
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हाल ही में मुंबई हमले के मुख्य साजिशकर्ता तहव्वुर राणा को भारत लाने और अब बेल्जियम में सबसे बड़ी बैंकिंग धोखाधड़ी करके फरार हुए हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी के गहरे निहितार्थ हैं। इससे देश में अपराध करके भागने वालों के लिये सख्त संदेश जाएगा कि वे साफ बचकर नहीं निकल सकते। जांच एजेंसियों की सतर्कता, अधिकारियों की तत्परता और सत्ताधीशों की सजगता स्थितियां बदल सकती है। बहरहाल, चोकसी की गिरफ्तारी से यह उम्मीद जरूर जगी है कि देर-सवेर भारत लाकर उस पर मुकदमा चलाया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि साल 2018 में देश के सबसे बड़े बैंक घोटाले के जरिये चोकसी एंड पार्टी ने पूरे देश की बैंकिंग व्यवस्था को हिलाकर रख दिया था। चोकसी पर आरोप है कि उसने पंजाब नेशनल बैंक के साथ करीब तेरह हजार करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की थी। आरोप है कि इस धोखाधड़ी में कथित तौर पर बैंक अधिकारियों और अन्य लोगों की भी गहरे तक मिलीभगत थी। दरअसल, इस बड़े घोटाले के सार्वजनिक होने से पहले ही मेहुल चोकसी और सह-आरोपी उनका भतीजा नीरव मोदी भारत से भागने में सफल हो गए थे। नीरव को वर्ष 2019 में ब्रिटेन में गिरफ्तार कर लिया गया था। वह अभी भी वहीं हिरासत में है। लेकिन येन-केन-प्रकारेण तथा लगातार नयी दलीलें देकर अपना प्रत्यर्पण टालने में सफल रहा है। दरअसल, पश्चिमी देशों में सशक्त नागरिक व मानव अधिकारों का दुरुपयोग ये अभियुक्त अपनी खाल बचाने के लिये बखूबी करते हैं। दूसरे उनके पास घोटाले का पर्याप्त पैसा है, जिससे वे महंगी कानूनी लड़ाई के जरिये अपना बचाव करने में कामयाब होते रहे हैं। बहरहाल, भले ही चोकसी की बेल्जियम में गिरफ्तारी हो गई है,लेकिन उसकी जल्दी वापसी इतनी भी आसान नहीं है। इस मामले को देख रहे अधिकारियों को अभी लंबी कानूनी लड़ाई के लिये तैयार रहना होगा। यह तय है कि चोकसी अपनी रिहाई सुनिश्चित करने तथा अपना प्रत्यर्पण टालने के लिये कानूनी मोर्चे पर कोई कसर नहीं छोड़ने वाला है।

निश्चित रूप से हमें बचाव पक्ष के वकीलों की रणनीति को लेकर कोई आश्चर्य न होगा कि चोकसी के खराब स्वास्थ्य को आधार बनाकर जमानत लेने का प्रयास किया जाए। खबरों में बताया जा रहा है कि चोकसी कैंसर का इलाज करा रहा है। वहीं दूसरी ओर देश में अपराध करके भागने वाले लोग विदेशी अदालतों में यह दलील देने से नहीं चूकते कि भारत में जेलों के हालात खराब है और वे उन स्थितियों में नहीं रह सकते। ऐसे में भारतीय जांच एजेंसियों को इस तरह के कुतर्कों का पुख्ता तरीके से मुकाबला करने के लिये पूरी तैयारी के साथ विदेशी अदालतों में अपना पक्ष सशक्त ढंग से रखना होगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि इस प्रकरण में भारत के सबसे बड़े बैंक घोटाले की जांच दांव पर है। इसके अलावा इस मामले में भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम की प्रभावशीलता की भी कसौटी शामिल है। जिसे राजग सरकार ने वर्ष 2018 में मेहुल चोकसी व नीरव मोदी के देश से भागने के बाद लागू किया था। यह विडंबना ही कही जाएगी कि चोकसी को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने तथा अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसकी संपत्ति जब्त करने की प्रवर्तन निदेशालय की याचिका पिछले सात सालों से मुंबई की एक अदालत में लंबित है। बहरहाल, देश के सबसे बड़े बैंकिंग घोटाले में चोकसी के खिलाफ कार्रवाई तेज की जानी चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के सख्त कानूनी प्रावधानों के चलते पिछले कुछ सालों में बैंकिंग धोखाधड़ी में शामिल राशि में उल्लेखनीय कमी आई है। निस्संदेह, यह एक स्वागत योग्य पहल है, लेकिन बड़ी मछलियों पर शिकंजा कसने तथा बैंक के खाताधारकों का भरोसा हासिल करने के लिये अधिक प्रयासों की जरूरत है। ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया को फास्ट ट्रैक अदालतों के जरिये तेज करने तथा भगोड़े आर्थिक अपराधियों को कूटनीतिक प्रयासों के जरिये भारत लाने के प्रयासों को भी गति देने की जरूरत है। बैंकिंग व्यवस्था में खाताधारकों का भरोसा कायम रखने के लिये यह अपरिहार्य शर्त है।

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