अस्वीकार्य हथकंडे
यह धारणा बना ली गई है कि हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ ज्यादा अपराध होते रहे हैं। लेकिन हाल ही में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले कथित अपराधों से जुड़े झूठे मामलों में भी यह राज्य सबसे ऊपर है। जो कि एक गंभीर विरोधाभास को दर्शाता है। पुलिस आंकड़ों पर नजर डालें तो हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की लगभग 45 फीसदी शिकायतें झूठी पायी गई। जबकि गुरुग्राम में 2020 से 2024 के बीच चालीस प्रतिशत से अधिक बलात्कार के मामले जांच के बाद रद्द किए गए। निश्चित रूप से इन आंकड़ों से न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों बल्कि नागरिक समाज को भी चिंतित होना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि जब मनगढ़ंत शिकायतें सिस्टम में दर्ज की जाती हैं तो ये न केवल पुलिस का समय बर्बाद करती हैं, बल्कि इसके अलावा भी इसके कई तरह के नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। ये उन वास्तविक पीड़ितों की विश्वसनीयता को भी कमजोर करती हैं जो पहले से ही अपने खिलाफ खड़ी व्यवस्था में अपना मामला साबित करने के लिये संघर्ष कर रहे होते हैं। व्यक्तिगत बदला लेने, जबरन आर्थिक वसूली या ब्लैकमेल के लिये कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग दुर्भाग्यपूर्ण है। जैसा कि हाल ही में गुरुग्राम में एक वकील के नेतृत्व वाले गिरोह से जुड़े मामले में खुलासा हुआ। जाहिर है, इस तरह की करतूतें न्याय प्रक्रिया में जनता के विश्वास को कम ही करती हैं।
निस्संदेह, इस सामाजिक विद्रूपता का उत्तर सभी महिलाओं पर अविश्वास करने या उन्हें हिंसा की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित करने में नहीं है। हर शिकायत को गंभीरता से लिया ही जाना चाहिए। लेकिन साथ ही जांच पेशवर तरीके से और प्रमाणिक साक्ष्य आधारित होनी चाहिए। इसके अलावा उतना ही महत्वपूर्ण उन लोगों को दंडित करना भी है जो जानबूझकर कानून का दुरुपयोग करते रहे हैं। निश्चित रूप से महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और न्याय की अखंडता परस्पर विरोधी लक्ष्य नहीं हैं, बल्कि वे पूरी तरह एक-दूसरे पर ही निर्भर भी हैं। लेकिन प्रसंग के आलोक में सबसे बड़ी सामाजिक चिंता यह भी होनी चाहिए कि हरियाणा में लैंगिक संबंध इतने अस्थिर क्यों हो चले हैं कि यहां हिंसा और प्रतिशोध दोनों पनपते हैं? निर्विवाद रूप से शिक्षा, जागरूकता और लैंगिक संवेदनशीलता कमजोर कड़ियां बनी हुई हैं। सच्चा सशक्तीकरण कानूनों के हथियारीकरण से नहीं, बल्कि एक ऐसी संस्कृति से आएगा, जो निष्पक्षता, समानता और आपसी सम्मान को महत्व देती हो। झूठे आरोप न केवल आरोपी को बल्कि मामले की संवेदनशीलता को नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में महिलाओं को न्याय सिर्फ सच्चाई या विश्वास की कीमत पर नहीं मिल सकेगा। ऐसे मामलों में समाज के जागरूक लोगों और महिला संगठनों को भी आवाज उठानी चाहिए। साथ ही उन लोगों को न्यायिक प्रक्रिया के जरिये दंडित किया जाना चाहिए, जो कानून की आड़ में निहित स्वार्थों को पूरा करना चाहते हैं।
