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महिला स्कीमों पर भरोसा

योजनाओं के लाभ ने बढ़ाया वोट प्रतिशत
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हालिया अध्ययन ने बताया है कि जिन राज्यों में महिला केंद्रित योजनाएं लागू हुई हैं, वहां महिलाओं के वोट प्रतिशत में काफी वृद्धि हुई है। यही वजह है कि अब हर चुनाव से पहले महिलाओं को लुभाने की कवायद हर राजनीतिक दल करने लगता है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड में इन लोकलुभावन योजनाओं ने सरकारों की सत्ता में फिर वापसी सुनिश्चित की है। निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि जब किसी राज्य में महिलाओं का विकास होता है तो वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति अधिक सजग हुई हैं। उन्हें सरकारों की मुफ्त की स्कीमें भी खूब लुभा रही हैं। हाल ही में एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि महिला केंद्रित योजना लागू करने वाले राज्यों की संख्या 19 हो गई है। जिसमें महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम व कर्नाटक जैसे राज्य अग्रणी हैं। इन राज्यों में औसतन 7.8 लाख (कुल 1.5 करोड़) महिला वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ है। वहीं दूसरी ओर जिन राज्यों में महिला केंद्रित योजनाओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, वहां महिला वोटरों की औसत संख्या में कम इजाफा हुआ है। निर्विवाद रूप से विभिन्न चुनावों में लगातार महिला वोटरों का उत्साह बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि किसी भी राजनीतिक दल की जीत या हार में उनकी निर्णायक भूमिका साफ नजर आ रही है। शोध अध्ययन बताता है कि वर्ष 2019 के आम चुनाव के मुकाबले वर्ष 2024 में 1.8 करोड़ अधिक महिला वोटरों ने मतदान किया। ये आंकड़ा पिछले दिनों देश के चुनाव आयोग ने जारी किया। दूसरी ओर एसबीआई के शोध ने उन कारणों का विश्लेषण किया जो महिला वोटरों की संख्या बढ़ाने में सहायक बने। एसबीआई की रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना और मुद्रा खाता खोलने का असर साफ दिखा। साथ ही यह भी निष्कर्ष दिया कि उन राज्यों में महिलाओं की लोकतांत्रिक प्रकिया में भागीदारी बढ़ी है जहां महिला केंद्रित योजनाएं अस्तित्व में आई हैं।

वहीं अध्ययन खुलासा करता है कि महिला साक्षरता में वृद्धि का सीधा संबंध महिला वोटरों की संख्या बढ़ने से है। महिला साक्षरता में एक फीसदी की वृद्धि से महिला वोटरों की संख्या में पच्चीस फीसदी तक का इजाफा हो सकता है। रिपोर्ट के अनुसार साक्षरता में वृद्धि से तीस लाख अतिरिक्त महिलाओं ने वोट डाले। इसी तरह जहां पीएम आवास योजनाओं में महिलाओं की भागीदारी हुई, वहां भी महिला वोटरों की संख्या बढ़ी है। दिलचस्प पहलू यह भी कि एससी और एसटी वर्ग में वोटिंग में लगातार इजाफा हुआ, वहीं सामान्य वर्ग में कम हुआ। पिछले दस वर्षों में जिन नौ करोड़ नये वोटरों ने वोट दिया, उसमें महिलाओं की हिस्सेदारी 5.3 करोड़ है। अत: सरकार बनाने में महिला वोटरों की भूमिका लगातार बढ़ी है। महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि के मूल में जिन चार मुख्य योजनाओं की भूमिका है, उनमें मुद्रा योजना, पीएम आवास योजना व स्वच्छता योजना शामिल हैं। दूसरी ओर बिजली, पानी आदि सुविधाओं में वृद्धि ने भी मतदान के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। वहीं दूसरी ओर विभिन्न राजनीतिक दलों व सरकारों द्वारा महिला मतदाताओं को नकद धनराशि देने की योजनाओं को भी सकारात्मक प्रतिसाद मिला। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व झारखंड में सत्तारूढ़ दलों की चुनावों के बाद फिर वापसी में महिला वोटरों की भूमिका निर्णायक रही। मध्यप्रदेश में लाडली बहन, महाराष्ट्र में माझी लाडकी बहिन व झारखंड में मंईयां सम्मान योजना इसके उदाहरण हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी भंडार, कर्नाटक में गृहलक्ष्मी , ओडिशा में शुभद्रा योजना तथा असम में मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता योजना सामने आई है। यह होड़ आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी नजर आ रही है। एक ओर जहां आप सरकार ने महिला वोटरों के लिये महिला सम्मान योजना के तहत 2100 रुपये देने का वायदा किया, वहीं कांग्रेस ढाई हजार रुपये देने की योजना बना रही है। इस दिशा में भाजपा भी गंभीर है। दरअसल, दिल्ली में महिला वोटरों का प्रतिशत पुरुष वोटरों के पास पहुंच गया है। कहा जाता है कि साल 2020 के चुनावों में महिला मतदान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन जरूरत इस बात की है कि योजनाएं स्थायी प्रभाव व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वाली हों।

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