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ट्रंप का टशन

अप्रिय-अप्रत्याशित हेतु तैयार रहे दुनिया
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यूं भी अमेरिका की सारी नीतियां अमेरिका से शुरू होकर अमेरिका पर ही समाप्त हो जाती हैं। लेकिन जब ट्रंप जैसा अप्रत्याशित व अमेरिका फर्स्ट का जयकारा लगाने वाला राष्ट्रपति सत्तासीन हो, तो दुनिया सांसत में ही रहेगी। शपथ ग्रहण के बाद जिस तरह असहज करने वाले कार्यकारी आदेश जारी किए गए, ये उसी की आहट है। लगता है अमेरिका के लिये स्वर्णयुग लाने का दावा करने वाले ट्रंप को लोकतांत्रिक मूल्यों, दुनिया की सेहत और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण से कोई सरोकार नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली बड़ी अमेरिकी मदद से हाथ पीछे खींचकर उन्होंने अपने मंसूबे जताए हैं। विश्व को ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से बचाने के लिए प्रतिबद्ध पेरिस जलवायु समझौते से भी किनारा कर उन्होंने अपने इरादे जाहिर किए हैं। यह जानते हुए भी कि बीता साल दुनिया में अब तक का सबसे गर्म साल रहा था। यहां तक कि इन प्रभावों से पिछले दिनों लॉस एंजिल्स की भयावह आग ने अमेरिका के दरवाजे पर पिछले दिनों दस्तक दी है। वहीं दूसरी ओर तमाम आर्थिक मुश्किलों से जूझते व बेहतर भविष्य की तलाश में अमेरिका का रुख करने वाले प्रवासी उनके लिये दुश्मन नंबर वन हैं। जिनको रोकने के लिये अमेरिका की मैक्सिको सीमा पर आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाना उनका महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। वे लाखों अवैध प्रवासियों को अमेरिका से खदेड़ने की बात बार-बार कहते हैं। वहीं अमेरिका फर्स्ट की नीति के चलते वे चीन समेत अन्य विकासशील देशों पर अंधाधुंध टैरिफ लगाकर मुनाफे का पलड़ा अमेरिका के पक्ष में झुकाने पर अड़े हैं। यहां तक कि उन्होंने ब्रिक्स देशों को चेताया है कि यदि डॉलर के मुकाबले वैकल्पिक मुद्रा चलन में लाने का प्रयास किया गया तो वे भारत,रूस व चीन आदि पर सौ फीसदी टैरिफ लगाएंगे। विशेष रूप से चीन उनके निशाने पर है, जो अमेरिका के नंबर एक दावे को चुनौती देने की क्षमता रखता है। दुनिया के तमाम देशों को उनके बड़बोले बयानों के मद्देनजर मुश्किल समय हेतु तैयार रहना चाहिए।

दरअसल, केवल विकासशील व तीसरी दुनिया के देश ही नहीं, बल्कि ग्रीनलैंड पर कब्जे की मंशा के बयानों को लेकर यूरोपीय देशों में ट्रंप को लेकर खासी नाराजगी नजर आ रही है। पनामा नहर का प्रबंधन हासिल करने के बयानों पर भी तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई है। कभी वे कनाडा को अमेरिका में शामिल करने के दावे करते हैं। आते ही कनाडा पर टैरिफ बढ़ाकर उन्होंने अपने मंसूबे जाहिर किए हैं। पिछले कुछ वर्षों में महामारी के प्रभावों से उबरते हुए तमाम बीमारियों से जूझते विश्व को ट्रंप ने बड़ा झटका दिया है। मानवता के कल्याण को समर्पित डब्ल्यूएचओ की आर्थिक मदद बंद करने से विकासशील व गरीब मुल्कों का स्वास्थ्य तंत्र अब भगवान भरोसे रह जाएगा। यदि विश्व में फिर किसी महामारी की दस्तक होती है तो पूरी दुनिया में स्थितियां गंभीर होंगी। विश्व के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र में यूं पूंजीवादी सोच व नीतियों का वर्चस्व बेहद चिंता की बात है। जिस बात की चिंता पिछले दिनों निवर्तमान राष्ट्रपाति जो बाइडेन भी जता चुके हैं। लेकिन उग्र राष्ट्रवाद के खुमार में डूबे अमेरिकी कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं। पर्दे के पीछे ‘ट्रंप उदय’ के पीछे दुनिया के सबसे अमीर पूंजीपतियों में शुमार एलन मस्क की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि अमेरिका फर्स्ट की नीतियों के प्रबल पैरोकार ट्रंप को दुनिया के सामाजिक, आर्थिक व सेहत के सरोकारों से कुछ भी लेना-देना नहीं है। कमोबेश यही स्थितियां अमेरिका की विदेश नीति में भी उजागर होंगी। फिलहाल, इस्राइल-हमास संघर्ष थमता दिख रहा है, लेकिन ये कब तक थमा रहता है, कहना कठिन है। जाते-जाते संघर्ष विराम का श्रेय लेने की होड़ में जो बाइडेन इस्राइल-हमास संघर्ष को फौरी तौर पर रोक तो गए हैं,लेकिन इसके लंबे समय तक थमे रहने के आसार कम ही हैं। वहीं ट्रंप रूस-यू्क्रेन युद्ध को भी रुकवाने की बात कर रहे हैं,लेकिन वे अपने यूरोपीय सहयोगियों को नाराज करके इसमें कितना कामयाब होते हैं, ये भविष्य के गर्भ में निहित है।

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