Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

एक बार फिर ट्रंप

चतुराई से निपटना होगा भारत को
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

अपनी दूसरी पारी के लिये डोनाल्ड ट्रंप फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। हालांकि, अमेरिका फर्स्ट को प्राथमिकता देने वाले ट्रंप की नीतियां व्यापार व आव्रजन के मुद्दे पर भारत के लिये परेशानियां खड़ी कर सकती हैं। वर्ष 2017 से 2021 के बीच राष्ट्रपति के रूप में उनकी पहली पारी के दौरान कई मोर्चों पर निबटने का अनुभव जरूर मोदी सरकार के पास है। गाहे-बगाहे मोदी ट्रंप को अपने दोस्त के रूप में संबोधित करते रहे हैं। हालांकि, यह कहना जल्दबाजी होगी कि हाल के दिनों में भारत के खिलाफ तल्ख रवैया अपनाने वाले बाइडन प्रशासन की नीतियों में ट्रंप आमूल-चूल परिवर्तन कर देंगे। सारी दुनिया जानती है कि अमेरिकी नीतियां अमेरिका पर शुरू होकर अमेरिका पर भी खत्म हो जाती हैं। अपने चुनाव अभियान में भी ट्रंप भारत की आर्थिक संरक्षण की नीतियों की आलोचना कर चुके हैं। अमेरिका फर्स्ट की नीतियों के पैरोकार ट्रंप विगत में अमेरिका से आयात होने वाली हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर टैरिफ घटाने को लेकर भारत के प्रति नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। मूल रूप से व्यवसायी से राजनेता बने ट्रंप ने पहले कार्यकाल के दौरान भी अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण देने को अपनी प्राथमिकता बनाया था। ऐसे में संभव है कि वे अमेरिकी उत्पादों व सेवाओं के संरक्षण को लेकर भारत के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाएं। वे अपने कई उत्पादों पर अपनी सुविधा के अनुरूप टैरिफ बढ़ाने के लिये भारत पर दबाव बना सकते हैं। साथ ही आशंका है कि वे भारतीय निर्यात पर टैरिफ बढ़ाकर हमारे लिये आर्थिक मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। जिससे भारत द्वारा अमेरिका से किया जाने वाला आयात भी महंगा हो सकता है। फलत: भारतीय उपभोक्ताओं की मुश्किलें महंगाई वृद्धि से बढ़ सकती हैं। बहरहाल, ट्रंप की सफलता से अमेरिकी कारोबार जगत खासा उत्साहित है, जिसके चलते अमेरिकी शेयर बाजार खुशी से झूमा है। लेकिन इसके बावजूद हिंद प्रशांत में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका दोनों देशों के रक्षा संबंधों को मजबूती देगी।

बहरहाल, यह एक हकीकत है कि ट्रंप एक बार फिर सत्ता में लौटे हैं और भारत तथा दुनिया को इस अप्रत्याशित चरित्र से निपटने के लिये तैयार रहना होगा। यह व्यक्ति एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना अच्छा दोस्त बताता है, वहीं भारत को अमेरिका के व्यापारिक हितों के विरुद्ध नीतियां बनाने वाला बताता है। यहां तक कि अपने चुनाव अभियान के दौरान भी ट्रंप अमेरिकी वस्तुओं पर भारी कर लगाने के लिये भारत की आलोचना कर चुके हैं। साथ ही अमेरिका को फिर से असाधारण रूप से संपन्न बनाने के लिये द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनाने का आह्वान किया था। ऐसे में आशंका जतायी जा रही है कि रिपब्लिकन प्रशासन अमेरिका को भारत से होने वाले 75 अरब डॉलर से अधिक के निर्यात पर अधिक टैरिफ लगा सकता है। बहुत संभव है कि मोदी के मेक इन इंडिया अभियान तथा ट्रंप के अमेरिका फर्स्ट नजरिये के साथ टकराव पैदा हो। अपने पहले कार्यकाल में एच-1बी वीजा में कटौती के प्रयास करने वाले ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में रोजगार आधारित आव्रजन पर प्रतिकूल असर हो सकता है। कूटनीतिक मोर्चे पर नई दिल्ली को उम्मीद होगी कि ट्रंप के साथ मोदी के बेहतर तालमेल के चलते गुरपतवंत सिंह पन्नू मामले में मतभेद सुलझाने में मदद मिले। वैसे भी ट्रंप अमेरिकी न्याय विभाग और एफबीआई पर अविश्वास जताते हुए उन पर पक्षपाती होने के आरोप लगाते रहे हैं। उनका यह दृष्टिकोण इस जटिल मामले में भारत को राहत दे सकता है। वैसे ट्रंप से कुछ भी अप्रत्याशित करने की उम्मीद बनाये रखनी चाहिए। उम्मीद की जा रही है कि सामरिक मुद्दों , हथियारों के निर्यात, संयुक्त सैन्य अभ्यास व तकनीकी हस्तांतरण के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन के साथ भारत का बेहतर तालमेल संभव है। पिछली पारी में राष्ट्रपति रहते हुए ट्रंप सरकार ने भारत के साथ बड़े रक्षा समझौते भी किए थे। जो फिर होने पर पाक व चीन के मुकाबले भारत को मजबूती दे सकते हैं। फिर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ट्रंप की सत्ता में वापसी भारत के लिये लाभदायक साबित हो सकती है।

Advertisement

Advertisement
×