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कबीलाई जंग

फिर जिसकी लाठी उसकी भैंस का दौर
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आखिरकार ना-नुकर के प्रपंच के बाद अमेरिका ने घातक बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से हमला करके ईरान की तीन न्यूक्लियर साइट तबाह करने का दावा किया है। लगता है कि ईरान का परमाणु सपना हमले के साथ ही बिखर गया है। हाल में उसके कई परमाणु वैज्ञानिक इस्राइली हमलों में मारे गए थे। एक सप्ताह पूर्व इस्राइल ने ईरान के सैन्य स्थलों, भारी जल रिएक्टर तथा नागरिक ठिकानों पर भी हमले किए हैं। इस्राइल दावा करता रहा है कि ईरान उसके अस्तित्व को मिटाना चाहता है और परमाणु बम बनाने के करीब है। वहीं अमेरिका के शीर्ष रक्षा सूत्र ईरान के पास परमाणु बम की मौजूदगी से इनकार करते हैं। हालांकि, पिछले दिनों ईरान ने परमाणु मामले पर अंतर्राष्ट्रीय बातचीत का क्रम शुरू किया था, लेकिन पहले इस्राइली और फिर अमेरिकी हमलों ने अब ऐसी किसी संभावना को खारिज कर दिया है। उल्लेखनीय है कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि का हिस्सा नहीं है। बहरहाल, इस्राइली हमलों के जवाब में ईरान ने तेल अवीव व अन्य शहरों पर जमकर मिसाइलें बरसाई हैं। हालांकि, इस्राइल की वायुरक्षा प्रणाली ने अधिकांश को विफल कर दिया है। इस्राइल के कुछ रक्षा प्रतिष्ठान, स्कूल व अस्पताल ईरान के हमलों की जद में आए हैं। चिंताजनक बात यह है कि लगातार कबीलाई होता संघर्ष दो मुल्कों तक सीमित रहने के बजाय विस्तार लेने की स्थिति में पहुंच गया है। रूस व चीन की चिंताओं के बीच यह युद्ध दुनिया को दो खेमों में बांट सकता है।

ऐसा भी नहीं है कि ईरान में सब कुछ ठीक है। निरंकुश सर्वोच्च ईरानी नेता अली खामेनेई धार्मिक कट्टरता और स्वतंत्र-प्रगतिशील सोच के दमन के लिये भी जाने जाते हैं। ईरान की बड़ी आबादी खामेनेई के खिलाफ खड़ी रही है। लेकिन इस संघर्ष का बड़ा खतरा विश्व के नये ध्रुवीकरण के रूप में सामने आ सकता है। कहा जाता रहा है कि ईरान के परमाणु व मिसाइल कार्यक्रम में रूस की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन एक बड़ा संकट यह भी है कच्चे तेल के बड़े स्रोत मध्यपूर्व में इन हमलों के चलते पूरी दुनिया में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में भारी उछाल आ गया है। इस संघर्ष के मूल में कच्चे तेल की कूटनीति भी रही है। मध्यपूर्व की अशांति से तेल उत्पादक महाशक्तियों को भारी मुनाफा होता है। कच्चे तेल के दामों में भारी तेजी के कारण कोरोना संकट के बाद पटरी पर लौट रही दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को एक बार फिर से झटका लग सकता है। बड़ा संकट यह भी है कि इस टकराव का असर उस होरमुज की खाड़ी पर भी हो सकता है जहां से वैश्विक स्तर पर 21 फीसदी कच्चे तेल की सप्लाई होती है। बहरहाल, इस्राइल व ईरान के संघर्ष और उसमें अमेरिका के कूदने से पूरा मध्यपूर्व अनिश्चितता के भंवर में फंसता नजर आ रहा है। ऑपरेशन राइजिंग लायन शुरू करने से पहले भी इस्राइल हमास, हिजबुल्लाह व हूती विद्रोहियों से लड़ रहा था, इस नये मोर्चा खोलने से इस्राइली जनता की मुश्किलें भी और बढ़ गई हैं।

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